Sunday 25 October 2020

 क्यों आज फिर से पलकों के किनारे मतवाले हो गए..इन आँखों के प्याले क्यों आज मदहोशी से भर गए...


बहुत भीगी-भीगी सी सौंधी सी खुशबू लिए,हवा आज क्यों खुशगवार है...इस सूरज की तपिश आज क्यों 


मद्धम-मद्धम सी है...यह फूल हर मोड़ पे आज बेहद सलीके से क्यों खिले है...कुदरत के इस जादू पे 


हम बेहद फ़िदा है..खुद को ही समझ रहे थे इक जादूगर..पर वो तो कुदरत है,जिस के जादू से हर तरफ 


बहार का मौसम छाया है..खुशनसीब है हम जो कुदरत के इतने करीब आने का मौका हम को मिल पाया 


है...

Sunday 18 October 2020

 बहारों की,खुशियों की उम्र बहुत लम्बी नहीं होती...बस यह मान कर हम ने, हर पल बहार का अपने 


आंचल से बाँध लिया...अब यह ख़ुशी का बंधा आंचल साथ-साथ हमारे चलता है...नूर देख हमारे इस 


चेहरे का ज़माना अक्सर पूछ लेता है,कौन सा खज़ाना पाया है आप की किस्मत ने जो नूर पे नूर आप 


पे छाया है...सिर्फ हम ने इतना कहाँ...मालिक जिस हाल मे रखता है,हम उसी मे ख़ुशी ढूंढ लेते है...


कल शायद फिर यह ज़िंदगी रहे या ना ही रहे,इसलिए रोज़ आप से मिल लेते है....

 साज़ भी है,आवाज़ भी है..महफ़िल मे आज भी किसी को तेरे आने की इंतज़ार भी है...जश्न की रात है..


हर कोई थिरकते क़दमों के साथ है..उम्मीदें सभी की रौशन है...ज़िंदगी को जीने के लिए,हर सांस 


अपने किसी खवाब के साथ है...नाउम्मीदी का दामन आज किसी के आस-पास भी ना है..कभी कभी 


सजती है ऐसी महफिलें,जहाँ जिंदादिलों की बारात होती है...हम ने इशारे से सभी को समझाया..''यह 


ज़िंदगी ज़िंदादिली का नाम है..मुर्दादिल भी कभी इस ज़िंदगी को जिया करते है''.....

 सिंगार सोलह ही क्यों..सिंगार अनमोल ही हो..जो भाये तेरे मन को वैसे ही बन जाए गे हम..झूमर बिना 


भी हम क्या लगते है...करधनी ना भी बांधे तो भी तेरे ही तो लगते है...आँखों मे कजरा ना लगाए गे तो 


क्या तेरे ना कहलाए गे...गेसू खुले या बांध ले इस गज़रे से तो क्या साजन के ना हो पाए गे...छम-छम 


करती पैजनियां ना बजे तेरे द्वारे तो क्या तेरी दुल्हन ना बन पाए गे...तुझे याद सिर्फ इतना दिला दे,वो 


रूप जो देखा था मेरा सादगी भरा तूने और तभी से मान लिया अपना मुझे तूने..तो आज किसलिए यह 


सिंगार करे...

 यह नज़रें झुका कर,हर पल उस को सज़दा करना...हमारी इबादत का रुतबा ही था...वो बीच राह मिले 


हम से और मुस्कराहट को हमारी मुहब्बत समझ बैठे...शोखी उन की नज़रो मे थी...हम से मिलने की 


हसरत भी उन्ही की थी...हम जो खामोश रहे तो उन को लगा हम उन की मुहब्बत के कायल हो गए...


इस से पहले वो बात आगे ले जाते,हम ने उन की आशिकी का जवाब दिया...यह नज़रे तो हर पल उस 


के सज़दे मे झुकती रहती है..और जहा तक हम जानते है,आप अभी तक सिर्फ इंसा है...खुदा तो नहीं...

 हर तरफ है सुगंधित ख़ुश्बू..हर तरफ दिख रहे है खुशियों के मेले...तूने भी देखे या दुःखो के सागर मे गोते 


अभी भी लगाए वैसे..पेट भर खाया,जी भर सोया...क्या इस के बाद, किसी गरीब का दिल तो तूने नहीं 


दुखाया ना...मशक्कत कर ले कितनी भी,गर किसी बेकसूर का दिल रुला दिया तो सब पा कर भी,सब 


कुछ गवा दिया...पानी है अपनी खुशियाँ तो किसी की राहों मे कांटा ना बन..अपने ही कांटे चुन ले,और 


ख़ुशी-ख़ुशी इस जीवन को जी ले...

Saturday 17 October 2020

 यह रात है या फिर चांदनी की बहार है...गुमशुदा है हम और अपनी ही तलाश मे खुद ही,इस चांदनी 


रात मे बाहर निकले है...अपने ही वज़ूद को तलाशते किसी अनजान मंज़र तक पहुंचे है...गुनगुना रहा 


है यहाँ कोई,क्या कोई हमारी तरह ही गुमशुदा बेक़रार है...कांधे पे किसी का साया महसूस पाया...यह 


कैसा मज़ाक है..मेरा ही वज़ूद मुझ से मिलने मेरे ही साथ आया..ओह चांदनी,तेरा शुक्रिया..तेरी इसी 


बहार से, मेरा अपना वज़ूद मुझ से मुखतिब इसी जगह पाया...

 रात को आना ही था..यह सोच कर आशियाना अपना,दीयो की कतार से सजा दिया...चिराग रौशन रहे 


ना रहे रात सारी...हम ने तो इंसानो पे भी भरोसा करना छोड़ दिया....दिए की फितरत तो देखिए ,बिन 


बाती वो जलता नहीं..दोनों का मेल कभी रुके नहीं,तेल का यह साथ उन से छूटता भी नहीं...इंसानो की 


फ़ितरत का कोई जवाब ही नहीं..ख़ामोशी पे बोलते है और पूछे कोई बात तो खामोश हो जाते है...पत्थर 


के बुत बने है तब तक,जब तल्क़ काम अपना कोई नज़र ना आता है...पत्थर भी पिघल जाया करते है,पर 


यह इंसान मतलब के सिवा बात भी ना करते है...

 ''यह जीवन-रेखा है बहुत छोटी..उम्र के ना जाने किस मोड़ पर यह छूट जाए गी''..तन्हा हो जाए गे आप 


बिन हमारे कि हम लौट के कब आए गे....इस से पहले वो इस बात पे कुछ कह पाते..हम जीवन की इस 


रेखा के लिए बेतहाशा हँसे..अब बारी थी उन के बयाने-उल्फत की...''आप की जीवन-रेखा आप के ही 


जैसी है..बेखौफ मुहब्बत से भरी लम्बी चलने वाली है..जोड़ दीजिए इस रेखा को हमारी जीवन-रेखा से..


मिल के चलने का वादा जब साथ किया है तो जीवन- रेखा को भी साथ हमारा देना होगा ना''...आप के 


इस मान से हम तो घायल हो गए..अब जीवन -रेखा को भूल जाइए,बस हमारा साथ निभाने चले आइए....

 ली जो अंगड़ाई तो सुबह खिल के चारो और गुल खिला गई...आईने ने देखा मुझे तो कुदरत की बात 


उसे समझ आ गई..सूरज की लालिमा क्यों नरम पड़ गई...यह नाज़ुक जिस्म सूरज के ताप से मुरझा 


ना जाए,यह सोच कर सूरज बादलो की ओट मे छुप सा गया...हम बिंदास है,मरज़ी के मालिक है..यह 


जान कर यह मौसम भी अपनी दीवानगी पे आ गया..बाहर बिखरे है हज़ारो फूल..लगता है हम को देख 


इन को भी हम पे प्यार आ गया..

 किसी वादे का मोहताज़ नहीं होता यह प्यार..किसी खास नज़र का तलबगार भी नहीं होता यह प्यार..


प्यार को सिर्फ जिस्म मे जिस ने भी ढाला,वहाँ कभी देर तक रुकता नहीं यह प्यार...झूठे वादे,झूठी सी 


कसमे और झूठ के धरातल पे खड़ा प्यार,प्यार नहीं सिर्फ दाग़ होता है...रूह को छूने के लिए प्यार को 


साँच की आंच मे तपना होता है...विरले है जो इस ताप मे तपना जानते है..वरना आज तू है तो कल कोई 


और होगा..और गज़ब उस पे यह कहना कि वो प्यार ही होगा...

 उड़ रहे है हवाओं मे,बिन पंख के...बहक रहे है कदम बिन शराब के..यह गेसू खुले भी नहीं पर महक 


गए,यह कौन सा कमाल है..आंखे अधखुली सी है,शायद यह कुदरत का ही कोई सवाल है..दिल कह 


रहा है,ना पूछ कोई सवाल कोई जवाब अपने आप से...खुली राहों पे निकल जा,खुले आसमान के तले..


कौन क्या कहता है,यह भी ना सुन..कोई पीछे से भले आवाज़ भी दे,वो भी ना सुन...जीने के तो सिर्फ 


चार दिन ही है...दो खुद मे जी,दो उस की रहमतों मे गुजार दे...

 हल्का सा यह सर्द गुनगुना मौसम..वल्लाह,क्या बात है..कुछ भी कहा नहीं मैंने और तुझे क्यों सुन गया..


माशा अल्लाह,यह तो बहुत बड़ी बात है...हम तो समझे तू पागल भी है और हां,दीवाना भी..पर कुदरत 


का कोई बेनाम अजूबा भी है..तौबा तौबा...तू तो दुनियाँ का आठवां नमूना भी है..मेरे कदमो से कदम 


मिला कर चल,यह तेरे बस की बात कहाँ...बिंदास जिए हमारी तरह,यह तेरे नसीब मे भी कहाँ...हम तो 


रोज़ गिनते है नियामते अपनी और तुम मिली हुई नियामतों पे भी शक करते हो...वाह अल्लाह मेरे,माटी 


कौन सी थी ऐसी पास तेरे जो अजूबा ऐसा तूने बना दिया मालिक मेरे...

 जो लिखे तेरी-मेरी कहानी..वो है''सरगोशियां मेरी''

जो लिख दे बेबाक किसी भी मुद्दे पे..वो है''सरगोशियां मेरी''

जो बयां कर दे दर्दे-दिल नादान प्रेमिका का..वो है''सरगोशियां मेरी''

जो प्रेमी के ज़ज्बात पिघला दे,शब्दों से अपने..वो है'सरगोशियां मेरी''

जो पिया का संदेसा सजनी तक पंहुचा दे.चंद लम्हो मे..वो है'सरगोशियां मेरी''

रूठे पिया को मना ले लरज़ते महकते शब्दों से..वो है''सरगोशियां मेरी''

बरसती रात को सुहाग की सेज़ बना दे..वो है''सरगोशियां मेरी''

दूर तल्क़..सदियों तल्क़ साथ देने का जो वादा कर ले..वो है''सरगोशियां मेरी''

रूह को रूह की ताकत से मिला दे..वो है''सरगोशियां मेरी''

सादगी का लबादा ओढ़े मगर पिया की रूह को भी पिघला दे..वो है''सरगोशियां मेरी''

कभी इस समाज के बेरंग रूप को भी बेनकाब कर दे..वो है''सरगोशियां मेरी''

हैवानों को भी प्यार से नसीहत देती..वो है''सरगोशियां मेरी''

तवायफ को भी अपना साथी मानने पे जो मजबूर कर दे..वो है''सरगोशियां मेरी''

दौलत की चमक से परे अपना परिशुद्ध प्रेम दर्शाती..वो है''सरगोशियां मेरी''

खामोश रहती है कभी-कभी,पर अपनी चुप्पी से भी,जो आप सब को लुभा ले..वो है''सरगोशियां मेरी''

किसी को यह शब्द अपने जीवन के ही लगे..बस यही जादू जो जगा दे..वो है''सरगोशियां मेरी''

यह कलम मेरी,यह स्याही भी मेरी..पर लफ्ज़ो को पन्नो पे लुटाती..वो है''सरगोशियां मेरी''

कल यह ''शायरा''रहे या ना रहे,पन्नो के यह शब्द यू ही हवा मे उड़ते रहे..वो है''सरगोशियां मेरी''

Friday 16 October 2020

 मन का सकून क्या रंग लाया..हमारी आँखों ने कजरा फिर से आँखों मे लगाया...गहरी मुस्कराहट फिर 


आई इन लबों पे और यह दिल खुल के फिर से मुस्कुराया...कोई खास ख़ुशी नहीं मिली मगर,जो भी 


मिला उस के लिए इन हाथों ने सर संग झुका कर,उस को शुक्राना लफ्ज़ निभाया...चेहरे पे नूर बहुत ही 


खिल के आया,यक़ीनन उस ने हम पर कुछ तो नियामत का परदा गिराया...नन्हीं-नन्हीं बातों से यह दिल 


खिल-खिल कर उसी के दरबार चला आया...कोई करे ना करे उस को सज़दा,हम ने तो ख़ुशी से उस के 


दर को इबादत के गहरे रंग से रंग डाला...

 ढाई अक्षर प्रेम के,सदियों से सिखा रहे थे उसे..परिशुद्ध प्रेम की महिमा तक समझा रहे थे उसे..देह का 


मेला इस परिशुद्ध प्रेम मे कहाँ आता है..देह घुल जाए जब इस मट्टी मे तभी तो प्रेम मुकाम तक आता है..


रूह जब भी रूह को पुकारे गी,बस वो तुझी को ही पुकारे गी...पर अब लगता है वो अभी भी माटी का 


इक ऐसा बुत है,जो प्रेम के ढाई अक्षर का सिर्फ एक अक्षर ही पढ़ पाया...हम ने ढाई अक्षर सिद्ध किए 


और बारीकी से इस के शब्द लिखे...आज हम है परिशुद्ध प्रेम की सब से ऊँची पायदान पे और वो अभी 


सीख रहा है बचे डेढ़ अक्षर प्रेम के...

Thursday 15 October 2020

 चाँद मे दाग़ देखा..सूरज मे ताप देखा..धरती को हमेशा गुनाहों के पाप से भरा देखा..खुद को जो देखा तो 



ख़ताओं के भार से दबा देखा..फिर क्यों उम्मीद रखी,सब का दामन गुनाहों के दर्द से बरी होता...इंसा


होना बुरा नहीं होता पर सब को उन्ही के रूप मे क़बूल करना ही इंसानियत का नाम होता.. कोई रोया 


तो हम क्यों हंस दिए..कोई तड़पा तो हम क्यों मुस्कुरा दिए..कुछ नहीं कर सके तो खामोश ही रहिए पर 


किसी के भी ज़ख्म पे नमक का थाल ना पलटिए....


 कितनी चमक है इस आसमां मे आज...यह सूरज प्यार की लो से दमका है आज..कुछ बहुत खास 


फैसला होने वाला है आज...सुन रे सजना मेरे..उदासी का लबादा उतार दे ना आज..खुशियां बस 


दस्तक देने को है..निराशा के घोर बादल बस जाने को है...रौनक हमारे चेहरे पे बहुत ही खास है आज..


तू सुने ना सुने,पर वो तो सुन रहा है सब कुछ आज...उस की और मेरी बातें तुझ को कभी समझ ना आए 


गी...धीमे से कह दिया उस के कानों मे, फरियाद का अपना वही अंदाज़...शाम ढले और चाँद हमारे 


अंगना ना उतरे,ऐसा तो नहीं होगा आज... 

 फिर से सज़े गी पायल..फिर बालों मे गज़रा महके गा..फिर से चंचल होंगे नैना,फिर तेरी शोख नज़र 


का पहरा हम पर होगा...मुलाकात की वो पहली बेला फिर से लौट के आए गी...साँसे बहुत है पास तेरे..


साँसे बहुत है पास मेरे...जीवन मधुर फिर से बन जाए गा..झरनों का पानी कब रुकता है.गर रुकता है 


तो फिर से चलता भी है...आशा का भरा-पूरा दीपक अंगना आज जलाया है..तेरी उम्मीद पे खरे उतरे..


यह वचन शिद्दत से आज निभाया है...

Wednesday 14 October 2020

 बुरा वक़्त-अच्छा वक़्त..सब निकल जाता है..जो तुझे तेरी खामियां बता दे,ऐसा मसीहा विरला ही मिलता है..


जो दिल पे लगी चोट पे मरहम लगा दे सच्ची,ऐसा दोस्त कहां मिलता है...खुद ही खुद को संभालना होता 


है..दुनियां तमाशबीनों की है..खुद ही गिरना है तो खुद ही उठ जाना है...सिर्फ उठना ही नहीं,ज़िंदगी की 


जंग भी अकेले ही लड़ना है..जीत हासिल कर और फिर सब के साथ मुस्कुरा..यही वादा खुद से निभाना 


है..हिम्मत टूटी तो सब टूटा...दिखा दे इस दुनियां को,अकेले जंग लड़ना हम को भी आता है...

 रात गहरी सी और सितारे भरे हुए आसमां मे बहुत सारे...फिर भी उस ने खुद का आंगन सिर्फ दिए से 


रौशन क्यों किया...हर सितारा उसी का अपना था,फिर किस लिए सहारा उस ने दिए का लिया...क्या 


कुछ गिला उस को किसी सितारे से था या यह सिर्फ उस की खुद्दारी का कोई पैमाना था...कुछ बताना 


उस की फितरत ही ना थी...मन की गांठे मन मे रखना उस की खास आदत जो थी...दिए जल उठे उस 


के आंगन मे,यह रौशन सा फ़साना उस के दिल के अंदर ही तो था...

 राख़ का वो कौन सा ढेर था जिस मे बिखरे ज़ज्बात अभी भी सुलग रहे थे...हाथ ना लगा इस राख़ को 


ना जाने कौन सा ज़ज्बात बिखर जाए गा..सुना है कोई मासूम इस मुहब्बत मे क़ुरबान हो गया..मासूम 


था इसलिए शायद राख़ मे तब्दील हो गया...मुहब्बत मे उस की पुकार कोई सुन नहीं पाया होगा...एक 


मशाल हाथ मे लिए वो अपनी मुहब्बत के पास,यक़ीनन आया भी होगा...बेवफा रही  होगी मुहब्बत उस  


की,तभी तो वो मासूम मशाल सहित राख़ का ढेर बन गया होगा..ना राख़ होगी ठंडी कि जज्बातों का 


महल अभी भी राख़ मे दबा होगा...

 खेल-खिलौने और संगी-साथी छूट गए बाबुल के द्वारे...अट्हास करते वो बिंदास ठहाके छूट गए बाबुल 


की दहलीज़ के वारे..सहज-सरल मन चल पड़ा किसी अनजान रिश्ते के द्वारे...कौन है यहाँ अपना तो 


कौन पराया...मन क्या जाने इन रिश्तो के ताने-बाने...घूँघट की आड़ मे जिस को देखा वो रूप बहुत ही 


अनजाने थे...पर अब यह सब मेरे अपने थे..यही कहा था मुझ से माँ ने...बहुत कुछ छोड़ा तो यह सब 


पाया,जीवन-धारा कितनी बदली...मन ने फिर अपने मन को ढाढ़स बंधवाया..आँखों का अश्क एक ही 


निकला जो बाबा के पास पहुंचाया...

 पहाड़ों के पास पास से गुजरती वो अल्हड़ गौरी शयामा थी..अपने ही शिव की तलाश मे वो रात-रात भर 


कंटीली राहो से गुजरी थी..कभी रही भूख से बेहाल तो कभी उस को मिलने को तरसी थी...क्या वो उस 


को पहचानती थी..क्या वो उस को जानती थी..आँखों से नहीं वो तो उस की रूह की खुशबू से पहचानती 


थी...यह कौन सी राहें है जो खत्म नहीं होती...यह कैसे फासले है जो तय नहीं होते..शिव को पाने के लिए 


 कंटीली राहों पे आज भी चल रही है वो..रूह से रूह का मिलना इतना आसां भी नहीं,यह बखूबी 


जानती समझती है वो...

 वो दोनों सखियां थी..जान से भी अज़ीज़ इक दूजे की अंखिया थी...एक थी रूप की मलिका तो दूजी 


समझ से परिपूर्ण थी...फिर भी इस धरती पे वो सहेली की मिसाल बनी थी..वक़्त का पहिया ऐसा चला 


कि वो दूर हो गई..किस्मत का लेखा तो देखिए..रूपवती पिया के दिल के करीब ना थी और समझ से 


भरी वो पिया के दिल का हीरा थी..पिया को लुभाना कोई आसान नहीं होता..रूप से कही जय्दा समझ 


का दरिया उस का भी बड़ा होता..पिया के तन-मन और रूह को जो छू ले वो गर्विता ही पिया का असली 


गहना होगी...

 तक़दीर से ज़्यदा और वक़्त से पहले किसी को कुछ नहीं मिलता..भगवान् के फैसले हमेशा सही समय पे ही होते है..धैर्य के साथ उस समय की प्रतीक्षा करे...जीवन अनमोल है इस को खूबसूरती से जिए..खुद को भगवान् मानने की गल्ती ना करे..

Tuesday 13 October 2020

 यही स्वर्ग है तो यही नरक भी है..सोच कर हम ने इस ज़िंदगी के हर रंग को,प्यार से गले लगा लिया...


ना सोचा कभी किसी का बुरा बस खुद के सुख-दुःख को अपने गले खुद ही लगा लिया..किस के पास 


क्यों है हम से जयदा,किसी के पास क्यों है गिले-शिकवे जयदा...बेमानी है यह सारी बाते,कुछ कमियां 


तो हम मे भी है..यह मान कर सब कुछ उस ऊपर वाले पे छोड़ दिया...ना तुम हो भगवान् ना कोई और 


खुदा तो तुम ने हम ने..कैसे खुद को ही सही साबित खुद ही कर लिया..ना उलझ स्वर्ग-नरक के चक्कर 


मे,कौन है जो दूध का धुला पाक-साफ़ है इस दुनिया मे...

 यह पांव थिरके बिन पायल के..यह हाथ उठे दुआ मे,बिन वजह के...मुस्कान होठों पे खिल उठी,किसी 


अपने को याद कर के..मीठी यादे याद आज आ गई,बिन वजह के..बहुत खुश है आज,वो भी बिना किसी 


खास वजह के...उस मालिक का इक इशारा हम को इतना समझ आया कि भूल गए अपने हर गम को..


लोग समझे दीवाना-मस्ताना हम को,हम को तो इस ज़िंदगी को खुल के जीने का सबब ग़ुरबत मे ही 


समझ आया...अब यह दिल ख़ुशी मे कोई गीत गुनगुनाए,वो भी बिन किसी वजह के...हां,यारा..यही  


तो ज़िंदगी है..तू भी गुनगुना संग मेरे कि ज़िंदगी तो सिर्फ चार दिन की है....

 यह भी क्या बात है...ढूंढ़ने चले खुशियां जयदा पर चैन मन का गवा दिया..जो है आज अपना,उस को तक 


भुला दिया..ना ढूंढ ख़ुशी कल के लिए..जो मिला है उतने मे जी सब की ख़ुशी के लिए..मांगने से यह ख़ुशी 


कब  मिलती  है..जब वो चाहे तभी मिलती है..खुद को गिरा दिया तो क्या किया,सकूँ ही तो गवा दिया ..


उस की मरज़ी से एक पत्ता भी ना हिलता है और तूने दुनियां को अपनी ही मुट्ठी मे कैद करने का सपना 


खुद ही देख लिया..यह भी कोई बात है...

Saturday 10 October 2020

 खुश रखना खुद को..यह भी एक कला है..सिक्को से जयदा खुद को बेइंतिहा प्यार करना,यारा..यही 


तो अद्भूत प्यार है..गज़ब पे गज़ब तो देखिए ना..खुद से प्यार करो तो धोखा नहीं मिलता ना...किसी और 


को खुश रखो तो वो तुनक-मिज़ाज़ी अपनी बार-बार दिखाता है..अपने आप को कितना भी प्यार करो,वो 


प्यार भी कमाल होता है..खुद को संवार लो,खुद को आईने मे हज़ारो बार भी निहार लो..यह प्यार वैसे 


ही कायम रहता है..ना करो मिन्नतें,ना उठाओ नखरे..खुद से खुद का प्यार क्या किसी नियामत से कम है...

 किसी ने कहा बुरा तुझ को और तू बिफ़र गया...अपना आपा खोया और उसी को उसी की भाषा मे 


जवाब दिया...इंसाफ कभी इंसान नहीं किया करते...तेरे लिए जो भी होगा उस को कोई कब रोक पाए 


गा...मशाल जब खुद के हाथ मे हो तो कौन तेरी रौशनी चुरा सकता है...दुनियाँ हर रोज़ हम को गिराने 


की कोशिश मे लगी रहती है...तेरी तक़दीर तुझी से कौन छीन सकता है...वक़्त से पहले और इसी 


तक़दीर से जयदा तुझे कभी ना मिल पाए गा..फिर चाहे वार पे वार भी कर ले,आपा भी खो ले...कुछ 


भी ना हो पाए गा...

 सर उठा के जीना कि यह किस्मत बहुत इम्तिहान लेती है...मिला देती है कभी कभी,इतने खुदगर्ज़ 


इंसानो से और कसौटी हमारे ईमान की परखी जाती है...मुट्ठी की लक़ीरों की कदर करना..यही तो 


है जो तुझे तुझ से परिचित करवाती है..बाकी तो यह दुनियां तमाशबीनों की जयदा है..तेरे दिल के घाव 


जरा से भी दिख जाए,झट नमक उठा लाती है...ऊपर से प्यार जताती है पर अंदर से तुझे दुखी देख खूब 


ज़शन अपने घर मनाती है..खुद पे रख के चल अपना ही विश्वास,किस्मत कब किस की बदल जाए..यह 


तो किस्मत ही बताती रहती है...

 यह कैसा कमाल है..भीगी है दोनों आंखे..एक है ख़ुशी का आंसू तो दूजा गम के अहसास से है भीगा..


किसी को ख़ुशी दे कर एक आंख ने ख़ुशी का अश्क जताया है..पर दूजी आंख का नीर इस बात से टूटा 


है..वो किसी को आज दे कर ख़ुशी खुद मे अकेले रोया है..बरबस दोनों आंखे ख़ुशी के सितारों से चमक 


उठी..कोई भी तो दूर नहीं,यह तो दिल के पागलपन का, कश्मकश का अजीब मेला है...मोती दोनों ही 


संभाल लिए कि ख़ुशी-दूरी जीवन का अनमोल तोहफा है...

Thursday 8 October 2020

 भरी महफ़िल मे वो जोर से चीखा..''तवायफ नहीं है यह,हमारी बेगम है''....सन्नाटा छा गया महफ़िल मे..


घुंगरू चुप हो गए एकबारगी से...रिश्ते का यह कौन सा खेल रहा..तवायफ़ को बेगम क्यों कहा...मंज़र 


यह कौन सी मुहब्बत का था...घुंगरू और ढोलक की थाप पे यह बारातियों का कैसा हज़ूम था...क्यों कर 


माना उस ने एक तवायफ़ को बेगम अपनी...इस दलदल से वो उस को ले जाने आया था...निकाह के 


पाक बंधन का वो पुजारी था...सब के सामने तवायफ़ शब्द की धज्जियां उड़ा दी उस ने...किस ने कहा 


फरिश्ते धरती पे होते नहीं...बादशाह-बेगम के रूप मे वो इसी धरती के मेहरबां बने...

 वो कहते है हम से.''.तुम ने हमारे दिल के हज़ारो टुकड़े कर दिए...कदर नहीं की हमारे प्यार की और 


बेरुखी दिखा अपनी राह चल दिए''...दलील नहीं दे गे हम..सफाई भी भला क्यों दे गे हम..हम से मिलने 


से बहुत पहले,आप के दिल के हज़ारो टुकड़े तो वैसे ही बिखरे थे..हम तो अपने प्यार के सच्चे रंग से,उस 


दिल को जोड़ कर एकसार करने की पुरजोर कोशिश मे थे...पर आप तो दग़ाबाज़ी की कला मे इतने 


माहिर रहे कि जिस दिल को हम एकसार कर रहे थे..आप उसी दिल से निकाल कर कुछ टुकड़े गैरों 


मे बाँट रहे थे...बेवफा है आप पहले से,जानते थे हम...मगर जिस को आदत हो दिल को हर मोड़ पे 


देने की,उस की इबादत भी कब तल्क़ करते रहते बार-बार हम...

 जिस शहर मे हम आए है,लोग उस को तेरा शहर कहते है...कैसा है यह शहर तेरा,जहां इंसा नहीं 


पत्थर के बुत रहते है...बेरुखी से भरे..चिंता से मरे..उम्मीद की लो से कोसों परे...बहता संगीत इन मे 


नज़र नहीं आता...मीठे झरने की तरह मीठा बोलना तक नहीं आता...संगीन जुर्म किया हो जैसे,चेहरे 


खौफनाक है बिलकुल वैसे...लगता है कुछ अरसे हम को यहाँ रुकना होगा...जनून इन के पागल दिमाग 


का सही करना होगा..फ़रिश्ते तो यह कभी ना बन पाए गे...मालिक के बन्दे ही कहलाए,इतना नेक काम 


तो तेरे शहर के लोगों के लिए कर ही जाए गे...

 इक ठंडी हवा का झौंका आया और जलते दियों को हिला गया...मौसम हसीं हुआ और दिलों मे फूलों 


का खिलना शुरू हुआ...मुरझा गए वो फूल जो बहुत ही नाज़ुक थे...मगर खिले वो फूल जो ज़िंदगी से 


भरपूर थे...बेतरबी से बिखरे थे शाख-पत्ते..पेड़ों पे मौजूद थे सलीके से सज़े खूबसूरत पत्ते...मुसाफिर 


आते गए और पेड़ों की घनी छाँव मे रुकते-ठिठकते रहे...तब समझ आया इस बात का उस को..घनी 


छाँव और खिलते फूल-पत्ते मुसाफिरों का मन मोह लेते है..रोनी सूरत लिए मरे चेहरे किस को सकून 


देते है... 


 उस की हंसी बहुत सुंदर थी.....

उस का दिल उस से भी सुंदर था...

वो इस दुनियां से परे दूजे लोक की थी..

किसी ने पूछा उस से,कैसी हो...

वो बोली,कुदरत के रंग-रूप जैसी हू...

पूछा,कुदरत को कैसे जानती हो...

फिर वो हंसी..कुदरत तो मेरा साथी है...

बेगाना नहीं,मेरे बालपन से जयदा सदियों का साथी है...

पूछा फिर उस ने,कुदरत से कोई शिकायत तुम को है...

वो फिर से हंसी..शिकायत का मौका तो उस ने दिया नहीं...

खिलखिलाती बोली वो इस बार...

तुम इंसा बहुत दगाबाज़ हो..

लालच के भार से भरे हो....

ईर्ष्या जलन मे सब से आगे हो...

दौलत की खातिर बिक जाते हो...

दौलत के लिए जान भी दे देते हो...

शिकायत मुझे कुदरत से नहीं...

तुम सब इंसानो से है....

प्यार के आगे नहीं बिकते हो...

प्यार का मोल भी नहीं समझते हो...

तुम से अच्छे जीव-जंतु है..

जो प्यार समझते है...

दया की भाषा समझते है....

पूछा उस ने डरते डरते,तुम को इस दुनियां से क्या लेना है....

दो बून्द बहे अब उस के नैनो से,कहा.....

यह दुनियां मुझे क्या दे सकती है..

जिस के पास ईमान नहीं,ईश्वर का धयान नहीं..

खुदा की इबादत के लिए वक़्त नहीं...

ऐसी दुनियां मुझ को क्यों दे सकती है....

वो फिर चली गई,आसमां के सार मे विलीन हो गई...

मैं इंतज़ार उस का रोज़ करता हू.....पर वो रोज़ अब आता क्यों नहीं..............



 खुली आँखों से जो देख रही थी सपने वो,बंद आँखों मे सब कैद कैसे होते...सपने तो बस सपने ही होते 


है..यह मान लेती वो कैसे...कुछ तो करना होगा,शिखर तक जाना है तो खुद को ही अपना गुरु कहना 


होगा...खुद पे विश्वास और खुद ही खुद का सहारा बनना...यह सीख जो सीखी तो पूरा भी तो उसी को 


है करना...कदम जो चल पड़े आगे वो पलट कर बंद द्वार ना जाए गे..कोई साथ है,शायद नहीं...मुस्कुरा 


कर अपनी राह पे चल के, मंज़िल अपनी तो खोज पाए गे...वो नज़ारा होगा कैसा..यह तो लोग ही बताए 


गे ......

 इतने दर्द के पीछे,इस ज़िंदगी मे खूबसूरती है कितनी...समझ पाए गा..या अपने ही झमेलों मे मर-खप 


जाये गा..चेहरा ही है रोनी सूरत तो कर भी क्या पाए गा..मालिक ने जितना भी दिया है उसी को प्रसाद 


मान उस का,फिर देख क्या कमाल होता है...बरकत फैले गी चारो तरफ..ज़िंदगी तेरी फिर उसी की 


इबादत मे गुजर जाए गी...देख के अपने से ऊपर को,जलन और दुःख से किसी दिन मर जाए गा...चार 


लोग आए गे और तुझे शमशान तक छोड़ आए गे..उस वक़्त भी कोई तेरे लिए ना रोए गा..जब जीते जी 


तू खुद ही रोया तोअब कौन तेरे लिए कौन वक़्त अपना बर्बाद करे गा..

 कितना और रोना है..सारी उम्र क्या आंसू ही बहाना है...यह तो कुदरत का नियम है..कभी सुख है तो 


कभी दुःख ने देर तक रह लेना है...क्यों रो दिया कि सिक्के कम है..क्यों रोया कि अपने कम है..फिर 


रोया कि प्यार भी कम है...कोई मुझे समझता नहीं,इस बात का भी गम है...ओह..यह दुनियां का रेला 


है साथिया..कोई कब अपना है..यहाँ खुद ही खुद का होना होता है...जो नहीं हुआ अपना तो उस के लिए 


क्यों दुखी होना है..तक़दीर की लकीरों से कौन बच पाया है..जो है अभी आज वही तो बस अपना है...


चल उठ आंसू पोंछ अपने...खुद को देख आईने मे,दिल के अंदर हज़ारो रंग है जो सिर्फ तेरे अपने है..

Wednesday 7 October 2020

 सूरज का इक छोटा सा टुकड़ा,चल रहा है संग मेरे...आने वाली है ढेरों खुशियां,आंगन मे मेरे...पलकों 


के शामियाने खिल उठे...दिल मे गीत उम्मीदों के मुस्कुरा उठे...सर से पांव तक जैसे महक महक गए..


दस्तक दी है इस सूरज ने तो यक़ीनन कुछ तो खास होगा...नहीं तो यह आज ही क्यों साथ मेरे आता...


दिन की शुरुआत ऐसी है तो माशा अल्लाह,पूरा दिन आगे क्या होगा...संग मेरे तू भी मुस्कुरा कि यह 


उजाला सूरज का फिर कब कहां होगा...

 वो कैसी जोड़ी थी...बालपन से संग खेले,संग बड़े हुए..खेल-खिलौने दोनों के इक जैसे थे...इक रोता 


तो दूजा भी बिलख उठता..यह कौन सा नन्हा नाता था..दिनों का फेर ले आया उस अल्हड़ मोड़ पर..


इक दूजे से दूर हुए,कुछ बनने कुछ पाने को...ख्वाइशें बहुत नहीं है मेरी,फिर भी कुछ अच्छा ही बन 


कर आना..मैं इंतज़ार करू गी तेरा...वक़्त तो पंख लगा कर दौड़ा..उस का मेहबूब उस का साजन 


अपनी सजनी के पास ही लौटा..प्यार-इकरार के धागे इतने गहरे..बन गई जोड़ी,हो गए पूरे...दुआ से 


भरा दोनों का आंचल..प्रेम के पग थे इतने प्यारे,थे दो जिस्म पर रूह से एक हुए वो न्यारे ...

 खूबसूरत नहीं हू मैं..यह मान कर उस ने आईने के सौ टुकड़े कर दिए...हर टुकड़े मे अपना ही अक्स 


फिर नज़र आया...झर-झर निकले अश्क और ज़िंदगी बोझ लगने लगी...उस ने शिकायत की उस 


मालिक से,क्यों किया तुम ने ऐसा...नज़र आने लगी हर और निराशा...''एक दरवाज़ा बंद होता है तो 


कितने और दरवाज़े खुलते है''...कोई चाहता है उस को चुपके से,इस से बेखबर थी वो...निराशा के 


गहरे बादलों मे वही था जो पास उस के आया..''खूबसरत दिल की मालकिन हो,तुम्ही मे मुझे सारे 


जहां का प्यार नज़र आया..खूबसूरत चेहरे बहुत होंगे,मगर तुम सा खूबसूरत दिल कही ना होगा''..


फिर छलके उस के नैना,पर इस बार खूबसूरत थे..दोनों के पागल नैना...

Tuesday 6 October 2020

 आ चल बादलों के उस पार चले...कोई ना देखे हमे,इतनी दूर निकल जाए...तेरी बाहों मे सिमटे एक बार 


उस ज़न्नत को देख आए...जहां प्यार मौत के बाद भी बसता है...जहां साँसों की रुखसती के बाद भी,यह 


दिल बेधड़क धड़का करता है...भीड़ नहीं होगी वहां,प्यार को पूरी तरह निभा देने का हौसला सब मे कहां 


होता है...उस ज़न्नत की नन्ही से दुनियां के बादशाह से मिल लेते है..अपने प्यार को इक दूजे से बांध के 


सदियों कैसे रखना है..आ उन्हीं से मिल कर सीख लेते है...आ सजना मेरे,बादलों के उस पार चले....

 उस के प्यार मे वो इक ग़ज़ल बन गई...प्यार का कमाल रहा इतना कि बिन ब्याहे उस की दुल्हन बन 


गई...हसरतें थी असीमित उस की.तो वो उसी के लिए बिस्तर पे, उसी की तवायफ बन गई...क्या था 


सही और क्या था गल्त,जाने बिना उस के जीवन की रौशनी बन गई...वो बिगड़ैल था..घमंड मे चूर-चूर 


था...बनू गी उसी की हमसफ़र,यह इरादा उस का बहुत मजबूत था...सुधारना उस को,उस का धर्म बन 


गया...बिना किसी वादे उस को सिर्फ अपना बना लेना,उस को कितनी जगह अपना इम्तिहान भी देना 


पड़ा...कोशिशें कामयाब थी..वो बिगड़ैल अब उसी का सुधरा प्यार है...कौन कहता है,प्यार मे ताकत 


नहीं होती..गर नहीं होती तो वो आज सिर्फ और सिर्फ उसी का ना होता...

Monday 5 October 2020

 वो शाम यक़ीनन बेहद सुंदर थी..कुछ हसीन सपनो को संग लिए उन दोनों की अमानत थी..अनछुए 


जज़्बात अरमान की शक्ल मे ज़िंदा थे...वक़्त की धारा मे वो दोनों मुसाफिर थे...वो इबादत के रंग मे 


ढली कोई प्रेम की मूरत थी...खड़ी थी प्रेम के ऊँचे से भी ऊँचे मुकाम पर,जहां उस की रूह पाक शुद्ध 


साफ़ थी...वो उस की रूह तक पहुंच जाए गा,इस यकीन के साथ वो साथ उस के ज़िंदा थी... अफ़सोस 


वो जिस्म और दिल के दरवाजे से आगे बढ़ नहीं पाया..उस के बाद कोई भी उस की रूह तक 


पहुंच ही नहीं पाया...

 देह की माटी को जब देह से जुदा किया तो ख्वाइशें लुप्त हो गई...रूह को समेटा जो आकाश मे तो 


रूह तो जैसे मुस्कुरा उठी...बंधन जब सब छूटे तो अहसास हवा हो गए...तब ना यह दुनियां दिखी और 


ना ही खुदगर्ज़ लोग नज़र आए...कितनी आज़ादी है माटी से परे रूह की ज़न्नत मे...कोई गिला करता 


नहीं,कोई शिकवा होता नहीं...ना दौलत का शोर है,ना प्रेम का कोई मोड़ है...रूह हुई निश्छल निश्छल 


यही तो इस रूह का बेशकीमती अंदाज़ है...

 अरसे बाद मिली वो मुझ से...पहले की तरह आंख उस की फिर नम थी...आदतन हम ने कहा,''क्या रोना 


अब भी है तुम्हारी ज़िंदगी..कभी तो मुस्कुराया करो..कभी तो खुद से प्यार किया करो''...बीच मे रोका 


और टोका उस ने...''आज यह आंसू गम के नहीं,ख़ुशी की बेला के है..जिस को कभी खोया था वो है  


आज पास मेरे है..फूल खिले है मेरे गुलशन मे..तू है जान मेरी,यह आंसू बरस गए ख़ुशी से मेरे कि तू 


खास सहेली जो है मेरी''....अब एक आंसू हमारा भी निकला,जो हम दोनों की ख़ुशी का इक सच है...

Sunday 4 October 2020

 सुबह की यह लालिमा और यह नैना अब नई उम्मीद से भरे हुए...

सपनो को पूरा करने की ख्वाईश से गहरा संकल्प लिए हुए...

मेहनत को साथ लिए,खुद अपना रास्ता बनाते हुए...

बिना डर,बिना सहारे..अकेले अपनी डगर पे निकल पड़े..

कोई साथ है या नहीं,जाने बिना मंज़िल को पाने निकल पड़े...

हिम्मत को साथ लिया और ईश्वर का नाम संग जोड़ लिया...

मुश्किलें तब आसां होती है,जब हौंसले बुलंद होते है...

डर के जीना भी कोई जीना है..सर उठा के जी...

यही तो तेरे इम्तिहान का सब्र और परिणाम होना है....

 यह नैना नींद से भरे हुए..

यह नैना सपनों से भी भरे हुए...

यह नैना आंसू की धारा से भरे हुए..

यही नैना सैलाब की परतो से ढके हुए...

नैना जो देख कर भी सब,अनदेखा कर गए..

यह नैना जो कभी मचल मचल गए...

नैनो की परिभाषा बहुत लम्बी है..

पर अभी यह नैना बहुत ही थके हुए...

नैना जो बस बंद होने को है..

नैना जो बस नींद की आगोश मे जाने को है....

 टूटे तार जब दिल के तो उस ने आशियाना ख़ामोशी का बना लिया...एक तरफ बैठा था बादशाह तो 


दूजी तरफ उस की रानी को बिठा दिया...ना तो वो बादशाह था असली, ना रानी का कोई वज़ूद था...


बस इक खवाब जो देखा था कभी उस ने,उस को यू ही अपने घर के आंगन मे सजा दिया...वो सोचती 


रही,वो अपने बादशाह की बेगम है और बादशाह उस को झूठी आशा देता रहा..करता रहा ना जाने 


कितने झूठे वादे उस से और उस का भोला सा मन उस को अपना खुदा मानता रहा...

 मुहब्बतें-इश्क मुश्किल ही रूहे-इबादत तक पहुँचता है..विरले ही इस मुहब्बत की डगर पे कामयाब 


 होते है..कितने है जो पाकीज़गी से मुहब्बत को निभा देते है..बहुतो की मुहब्बत सिर्फ जिस्म तक ही  


सीमित होती है..कुछ सुंदर दिल की छाया मे कुछ वक़्त रुकते है..दिल भर गया तो किसी और दिल 


की तलाश मे इक नया जिस्म ढूंढ़ते है..रूहे-इबादत मे जिस्म कहां दिखते है..यह जिस्म तो फ़ना हो जाया 


 करते है...जो निभा दे पाकीजगी से इस मुहब्बत को,वही रूहे-मुहब्बत का दावेदार कहलाता है...

 मौसम ने ली हल्की सी करवट तो प्यार का मौसम परवान चढ़ गया...अपूर्व सुंदरी ने सोचा कि यह 


मौसम उस के रूप के साथ और खिल गया...महक गया जिस्म उस का और सपनो का मेला दिल के 


आर-पार हो गया..चाहने वाले बहुत है उस के,यह जान कर उस का गुमान दुगना हो गया..अहंकार जो 


भरा इतना तो चाहने वालो का सरूर और बढ़ गया..नादान थी बहुत वो..किसी का चाह लेना कुछ मायने 


नहीं रखता...हज़ारो चाहने वाले हो साथ मगर कोई दूर तक साथ देने वाला कोई नहीं होता...मगरूर तो 


वो आज भी है शायद कल का अंजाम उस के दिमाग मे अभी तक नहीं आया...

 इन खूबसूरत वादियों मे भी ऐसे दिल मिलते है..हम इन्ही को निहारने यहाँ चले आए...कुछ अधूरे से 


ख़्वाब इन के भी है,यह देख अचरज मे पड़ गए..इंसानो की बस्ती से दूर,यह वादियाँ बहुत सुंदर है..


साँसों को खुल के जीने के लिए इन के करीब आ गए...खुशबू के ढेरे है या कुदरत के कमाल..देख इन 


की सुंदरता हम खामोश रह गए...स्पर्श करे गे तो यक़ीनन यह मुरझा जाए गे,बस यह सोच इन को 


बहुत दूर से निहारते ही रहे...


 यह पल यह लम्हा..जाने वाला है..यह सोच कर उस ने उस लम्हे को दिल-रूह की दीवारों मे कैद कर 


लिया...अब ज़माना बेशक चाहे इस पल को छीनना,उस ने तो इस पल पे कब्ज़ा कर लिया...टूटती आशा 


और बिखरे सपने,इन का अब वज़ूद कैसा...जो पल रूह मे समा गया उस के बाद अब दुःख और कैसा...


खूबसूरत है अब सारा आसमां और अब क्या चाहिए...सर से पांव तक बेशक़ीमती हो गए..शिकायत के 


मायने कही खो गए...


Friday 2 October 2020

 कोई बाज़ार नहीं,कोई व्यापार नहीं...किसी और की ज़िंदगी से कोई सरोकार भी नहीं..फिर भी दरिंदो 


ने उस की असमत को लूट लिया...जिस ने ज़िंदगी को अभी जाना भी ना था,उस को इसी ज़िंदगी से 


बेगाना कर दिया...बेटी होना गुनाह है क्या...चंचल हिरणी की तरह कुलांचे भरना मना है क्या...सपनों 


को खिलने से पहले रौंद दिया...हर घर की बेटी उदास है आज...जन्मदाता है सोच मे आज...जो जननी 


है,इसी पुरुष को संसार मे लाती है...फिर इसी पुरुष द्वारा उस की असमत क्यों लूटी जाती है...

 बंज़र धरती को हँसता-खिलखिलाता बगीचा बनाए गे..यह इरादा कर हम ने उस बंज़र धरा को चुन 


लिया..फूल तो इसी पे खिलाए गे,यह सोच कर हम ने धरा को अपना बना लिया...बहुत सख्त बहुत 


पत्थर मिली यह धरा...जहां भी जितनी कोशिश करते,हाथ छिल जाते वहां..फिर बाबा अपने की बात 


याद आई वहां...हार कर जीना है या जीत के सर उठा लेना है...बाबा की बात का मान रखना भी तो 


मकसद है मेरा..यह सोच कर इस बंज़र धरा को उस के खूबसूरत अंजाम देने का ठान लिया हम ने..

Thursday 1 October 2020

 वही आसमां..वही सूरज..वही सुबह की लाली...वही पक्षियों का चहकना..मोगरे के फूलों का वैसे ही 


खिलना...पर क्यों लग रहा है,यह सब बहुत खूबसूरत है..शायद यह दिल खुश है बहुत आज,बेवजह ही...


तभी तो यह सुबह सब से अलग और सब से जुदा है...मालिक मेरे,तू जो भी दे...दिल की इस ख़ुशी और 


सकून से जयदा और क्या होगा...फिर भी तुझे शुक्रिया ना कहे तो यह तो तेरा अपमान होगा...शुक्रिया..

 यह नींद भी क्या गज़ब सा हिसाब है...सारे गम भुला देती है यह..सारे दर्द से निजात देती है यह..सीधा 


सपनों की नगरी मे पंहुचा देती है यह...खवाब कभी बेहद खूबसूरत होते है..खवाब जो कभी-कभी डरा 


भी देते है..नींद जो अपनी आगोश मे ना ले तो सब कुछ खुली आँखों से दिखा देती है यह...यह गहरी 


नींद का ही कमाल है जो हंसती-मुस्कुराती सबह से मिलाने की कला जानती  है..दुआ देते है सभी को,


गहरी नींद का सकून सभी को मिले..और कल की सुबह सभी को खुशहाल मिले...

 आ अब घर लौट चले...

उम्मीदों के द्वार फिर खोल चले..

साँझ होने हो है,दिन जाने को है..

मंज़िले अपनी खुद ही तय कर ले..

कोई अपना नहीं इस जहान मे..

फिर किस से साथ की उम्मीद करे...

जितना दिया उस मालिक ने,उसी मे क्यों ना खुश रहे..

संघर्ष ही तो जीवन है,इस बात को मान चले..

पाँव मे छाले पड़े तो गम ना कर...

रास्ते बस आसां होने को है..

कोई शिकायत मुझे तुझ से नहीं..

तेरे साथ आरज़ू जीने निकल पड़े...

धीमे धीमे चल,हम साथ है तेरे...

इक बात तो सुन ले चलते चलते...

ज़िंदगी जो भी दे,पर यह बहुत खूबसूरत तो है...


 झूठ एक होता तो सह लेते..कुछ और जयदा होते तो भी सर आँखों पे ले लेते...पर तेरे झूठ पे  फिर से 


विश्वास करे..तौबा तौबा...हम तो सोचते रहे कि तुम सिर्फ दीवाने हो..हमारे ही नहीं कितनो के दीवाने 


हो..किसी को मुहब्बत कह दिया तो किसी को प्यार का नगमा सुना दिया...और हम से मिले तो हमारे 


ही होने का दावा कर दिया...ना तुझ को चलाया अपनी राहो पे,ना तुझ को चलाया बंदिशों के तले...सोचा 


ईमान होगा तो खुद ही हमारी राहो पे लौट आओ गे..और वो दिन कभी तो आए गा,जब ज़मीर तेरा मेरी 


राहो का मोहताज़ हो जाये गा ....

 चल मेरे साथ कि यह ज़िंदगी बहुत खूबसूरत है..आ मेरे साथ,तुझ को दिखाए  कि दुनियां कितने दर्द से 


भी भरी है..सिर्फ अपना ही ना सोच,और भी बहुत है गमों से भरे..हां,यह भी सच है,और भी है बहुत जो 


बिन बात खुश है बहुत..जो मिला उसी मे जी लिए,जो ना मिला उस के लिए शिकायत से नहीं भरे..यारा,


दुखी होने से क्या दुःख दूर हो जाते है...बहुत दूर तक जहां यह नज़र जाती है..यह आसमां के परिंदे जिन 


के पास कल के लिए कुछ भी तो नहीं...फिर भी देख,चहक रहे है जैसे ख़ुशी बनी हो सिर्फ इन्ही के लिए..

 पा कर इतना सुदर्शन रूप वो गर्विता हो गई... देख अपना अलौकिक रूप आईने मे वो अभिमान से 


भर उठी...चाहने वाले उस को है बेशुमार,बस यह सोच कर उस की मुस्कान और गहरी हो गई..रूप 


की मलिक्का हू,कितनो से ऊपर हू..यह गर्व उस को सीधा जमीं पे गिरा गया..रूप का जाल कब तक 


चलता है..देह की खूबसूरती का कमाल भी कब तक रहता है..''मन की खूबसूरती जो जयदा होती तो 


हज़ारो नहीं करोड़ो उस की इबादत करते..जो उस के रूप के दीवाने होंगे वो खुद भी गर्त मे गिरे 


इंसान होंगे''...सुदर्शन रूप हो या गुलाबी रूप हो,चंद दिनों का मेहमान है...सीरत ही तो रूप की 


असली पहचान है...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...