Thursday 1 October 2020

 पा कर इतना सुदर्शन रूप वो गर्विता हो गई... देख अपना अलौकिक रूप आईने मे वो अभिमान से 


भर उठी...चाहने वाले उस को है बेशुमार,बस यह सोच कर उस की मुस्कान और गहरी हो गई..रूप 


की मलिक्का हू,कितनो से ऊपर हू..यह गर्व उस को सीधा जमीं पे गिरा गया..रूप का जाल कब तक 


चलता है..देह की खूबसूरती का कमाल भी कब तक रहता है..''मन की खूबसूरती जो जयदा होती तो 


हज़ारो नहीं करोड़ो उस की इबादत करते..जो उस के रूप के दीवाने होंगे वो खुद भी गर्त मे गिरे 


इंसान होंगे''...सुदर्शन रूप हो या गुलाबी रूप हो,चंद दिनों का मेहमान है...सीरत ही तो रूप की 


असली पहचान है...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...