पा कर इतना सुदर्शन रूप वो गर्विता हो गई... देख अपना अलौकिक रूप आईने मे वो अभिमान से
भर उठी...चाहने वाले उस को है बेशुमार,बस यह सोच कर उस की मुस्कान और गहरी हो गई..रूप
की मलिक्का हू,कितनो से ऊपर हू..यह गर्व उस को सीधा जमीं पे गिरा गया..रूप का जाल कब तक
चलता है..देह की खूबसूरती का कमाल भी कब तक रहता है..''मन की खूबसूरती जो जयदा होती तो
हज़ारो नहीं करोड़ो उस की इबादत करते..जो उस के रूप के दीवाने होंगे वो खुद भी गर्त मे गिरे
इंसान होंगे''...सुदर्शन रूप हो या गुलाबी रूप हो,चंद दिनों का मेहमान है...सीरत ही तो रूप की
असली पहचान है...