Friday 2 October 2020

 बंज़र धरती को हँसता-खिलखिलाता बगीचा बनाए गे..यह इरादा कर हम ने उस बंज़र धरा को चुन 


लिया..फूल तो इसी पे खिलाए गे,यह सोच कर हम ने धरा को अपना बना लिया...बहुत सख्त बहुत 


पत्थर मिली यह धरा...जहां भी जितनी कोशिश करते,हाथ छिल जाते वहां..फिर बाबा अपने की बात 


याद आई वहां...हार कर जीना है या जीत के सर उठा लेना है...बाबा की बात का मान रखना भी तो 


मकसद है मेरा..यह सोच कर इस बंज़र धरा को उस के खूबसूरत अंजाम देने का ठान लिया हम ने..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...