बंज़र धरती को हँसता-खिलखिलाता बगीचा बनाए गे..यह इरादा कर हम ने उस बंज़र धरा को चुन
लिया..फूल तो इसी पे खिलाए गे,यह सोच कर हम ने धरा को अपना बना लिया...बहुत सख्त बहुत
पत्थर मिली यह धरा...जहां भी जितनी कोशिश करते,हाथ छिल जाते वहां..फिर बाबा अपने की बात
याद आई वहां...हार कर जीना है या जीत के सर उठा लेना है...बाबा की बात का मान रखना भी तो
मकसद है मेरा..यह सोच कर इस बंज़र धरा को उस के खूबसूरत अंजाम देने का ठान लिया हम ने..