मन का सकून क्या रंग लाया..हमारी आँखों ने कजरा फिर से आँखों मे लगाया...गहरी मुस्कराहट फिर
आई इन लबों पे और यह दिल खुल के फिर से मुस्कुराया...कोई खास ख़ुशी नहीं मिली मगर,जो भी
मिला उस के लिए इन हाथों ने सर संग झुका कर,उस को शुक्राना लफ्ज़ निभाया...चेहरे पे नूर बहुत ही
खिल के आया,यक़ीनन उस ने हम पर कुछ तो नियामत का परदा गिराया...नन्हीं-नन्हीं बातों से यह दिल
खिल-खिल कर उसी के दरबार चला आया...कोई करे ना करे उस को सज़दा,हम ने तो ख़ुशी से उस के
दर को इबादत के गहरे रंग से रंग डाला...