वो शाम यक़ीनन बेहद सुंदर थी..कुछ हसीन सपनो को संग लिए उन दोनों की अमानत थी..अनछुए
जज़्बात अरमान की शक्ल मे ज़िंदा थे...वक़्त की धारा मे वो दोनों मुसाफिर थे...वो इबादत के रंग मे
ढली कोई प्रेम की मूरत थी...खड़ी थी प्रेम के ऊँचे से भी ऊँचे मुकाम पर,जहां उस की रूह पाक शुद्ध
साफ़ थी...वो उस की रूह तक पहुंच जाए गा,इस यकीन के साथ वो साथ उस के ज़िंदा थी... अफ़सोस
वो जिस्म और दिल के दरवाजे से आगे बढ़ नहीं पाया..उस के बाद कोई भी उस की रूह तक
पहुंच ही नहीं पाया...