Monday 5 October 2020

 वो शाम यक़ीनन बेहद सुंदर थी..कुछ हसीन सपनो को संग लिए उन दोनों की अमानत थी..अनछुए 


जज़्बात अरमान की शक्ल मे ज़िंदा थे...वक़्त की धारा मे वो दोनों मुसाफिर थे...वो इबादत के रंग मे 


ढली कोई प्रेम की मूरत थी...खड़ी थी प्रेम के ऊँचे से भी ऊँचे मुकाम पर,जहां उस की रूह पाक शुद्ध 


साफ़ थी...वो उस की रूह तक पहुंच जाए गा,इस यकीन के साथ वो साथ उस के ज़िंदा थी... अफ़सोस 


वो जिस्म और दिल के दरवाजे से आगे बढ़ नहीं पाया..उस के बाद कोई भी उस की रूह तक 


पहुंच ही नहीं पाया...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...