Thursday 8 October 2020

 कितना और रोना है..सारी उम्र क्या आंसू ही बहाना है...यह तो कुदरत का नियम है..कभी सुख है तो 


कभी दुःख ने देर तक रह लेना है...क्यों रो दिया कि सिक्के कम है..क्यों रोया कि अपने कम है..फिर 


रोया कि प्यार भी कम है...कोई मुझे समझता नहीं,इस बात का भी गम है...ओह..यह दुनियां का रेला 


है साथिया..कोई कब अपना है..यहाँ खुद ही खुद का होना होता है...जो नहीं हुआ अपना तो उस के लिए 


क्यों दुखी होना है..तक़दीर की लकीरों से कौन बच पाया है..जो है अभी आज वही तो बस अपना है...


चल उठ आंसू पोंछ अपने...खुद को देख आईने मे,दिल के अंदर हज़ारो रंग है जो सिर्फ तेरे अपने है..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...