Saturday 17 October 2020

 यह रात है या फिर चांदनी की बहार है...गुमशुदा है हम और अपनी ही तलाश मे खुद ही,इस चांदनी 


रात मे बाहर निकले है...अपने ही वज़ूद को तलाशते किसी अनजान मंज़र तक पहुंचे है...गुनगुना रहा 


है यहाँ कोई,क्या कोई हमारी तरह ही गुमशुदा बेक़रार है...कांधे पे किसी का साया महसूस पाया...यह 


कैसा मज़ाक है..मेरा ही वज़ूद मुझ से मिलने मेरे ही साथ आया..ओह चांदनी,तेरा शुक्रिया..तेरी इसी 


बहार से, मेरा अपना वज़ूद मुझ से मुखतिब इसी जगह पाया...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...