यह रात है या फिर चांदनी की बहार है...गुमशुदा है हम और अपनी ही तलाश मे खुद ही,इस चांदनी
रात मे बाहर निकले है...अपने ही वज़ूद को तलाशते किसी अनजान मंज़र तक पहुंचे है...गुनगुना रहा
है यहाँ कोई,क्या कोई हमारी तरह ही गुमशुदा बेक़रार है...कांधे पे किसी का साया महसूस पाया...यह
कैसा मज़ाक है..मेरा ही वज़ूद मुझ से मिलने मेरे ही साथ आया..ओह चांदनी,तेरा शुक्रिया..तेरी इसी
बहार से, मेरा अपना वज़ूद मुझ से मुखतिब इसी जगह पाया...