कोई बाज़ार नहीं,कोई व्यापार नहीं...किसी और की ज़िंदगी से कोई सरोकार भी नहीं..फिर भी दरिंदो
ने उस की असमत को लूट लिया...जिस ने ज़िंदगी को अभी जाना भी ना था,उस को इसी ज़िंदगी से
बेगाना कर दिया...बेटी होना गुनाह है क्या...चंचल हिरणी की तरह कुलांचे भरना मना है क्या...सपनों
को खिलने से पहले रौंद दिया...हर घर की बेटी उदास है आज...जन्मदाता है सोच मे आज...जो जननी
है,इसी पुरुष को संसार मे लाती है...फिर इसी पुरुष द्वारा उस की असमत क्यों लूटी जाती है...