Thursday 8 October 2020

 खुली आँखों से जो देख रही थी सपने वो,बंद आँखों मे सब कैद कैसे होते...सपने तो बस सपने ही होते 


है..यह मान लेती वो कैसे...कुछ तो करना होगा,शिखर तक जाना है तो खुद को ही अपना गुरु कहना 


होगा...खुद पे विश्वास और खुद ही खुद का सहारा बनना...यह सीख जो सीखी तो पूरा भी तो उसी को 


है करना...कदम जो चल पड़े आगे वो पलट कर बंद द्वार ना जाए गे..कोई साथ है,शायद नहीं...मुस्कुरा 


कर अपनी राह पे चल के, मंज़िल अपनी तो खोज पाए गे...वो नज़ारा होगा कैसा..यह तो लोग ही बताए 


गे ......

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...