वो दोनों सखियां थी..जान से भी अज़ीज़ इक दूजे की अंखिया थी...एक थी रूप की मलिका तो दूजी
समझ से परिपूर्ण थी...फिर भी इस धरती पे वो सहेली की मिसाल बनी थी..वक़्त का पहिया ऐसा चला
कि वो दूर हो गई..किस्मत का लेखा तो देखिए..रूपवती पिया के दिल के करीब ना थी और समझ से
भरी वो पिया के दिल का हीरा थी..पिया को लुभाना कोई आसान नहीं होता..रूप से कही जय्दा समझ
का दरिया उस का भी बड़ा होता..पिया के तन-मन और रूह को जो छू ले वो गर्विता ही पिया का असली
गहना होगी...