Saturday 17 October 2020

 ली जो अंगड़ाई तो सुबह खिल के चारो और गुल खिला गई...आईने ने देखा मुझे तो कुदरत की बात 


उसे समझ आ गई..सूरज की लालिमा क्यों नरम पड़ गई...यह नाज़ुक जिस्म सूरज के ताप से मुरझा 


ना जाए,यह सोच कर सूरज बादलो की ओट मे छुप सा गया...हम बिंदास है,मरज़ी के मालिक है..यह 


जान कर यह मौसम भी अपनी दीवानगी पे आ गया..बाहर बिखरे है हज़ारो फूल..लगता है हम को देख 


इन को भी हम पे प्यार आ गया..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...