Saturday, 17 October 2020

 रात को आना ही था..यह सोच कर आशियाना अपना,दीयो की कतार से सजा दिया...चिराग रौशन रहे 


ना रहे रात सारी...हम ने तो इंसानो पे भी भरोसा करना छोड़ दिया....दिए की फितरत तो देखिए ,बिन 


बाती वो जलता नहीं..दोनों का मेल कभी रुके नहीं,तेल का यह साथ उन से छूटता भी नहीं...इंसानो की 


फ़ितरत का कोई जवाब ही नहीं..ख़ामोशी पे बोलते है और पूछे कोई बात तो खामोश हो जाते है...पत्थर 


के बुत बने है तब तक,जब तल्क़ काम अपना कोई नज़र ना आता है...पत्थर भी पिघल जाया करते है,पर 


यह इंसान मतलब के सिवा बात भी ना करते है...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...