Sunday 18 October 2020

 साज़ भी है,आवाज़ भी है..महफ़िल मे आज भी किसी को तेरे आने की इंतज़ार भी है...जश्न की रात है..


हर कोई थिरकते क़दमों के साथ है..उम्मीदें सभी की रौशन है...ज़िंदगी को जीने के लिए,हर सांस 


अपने किसी खवाब के साथ है...नाउम्मीदी का दामन आज किसी के आस-पास भी ना है..कभी कभी 


सजती है ऐसी महफिलें,जहाँ जिंदादिलों की बारात होती है...हम ने इशारे से सभी को समझाया..''यह 


ज़िंदगी ज़िंदादिली का नाम है..मुर्दादिल भी कभी इस ज़िंदगी को जिया करते है''.....

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...