चाँद मे दाग़ देखा..सूरज मे ताप देखा..धरती को हमेशा गुनाहों के पाप से भरा देखा..खुद को जो देखा तो
ख़ताओं के भार से दबा देखा..फिर क्यों उम्मीद रखी,सब का दामन गुनाहों के दर्द से बरी होता...इंसा
होना बुरा नहीं होता पर सब को उन्ही के रूप मे क़बूल करना ही इंसानियत का नाम होता.. कोई रोया
तो हम क्यों हंस दिए..कोई तड़पा तो हम क्यों मुस्कुरा दिए..कुछ नहीं कर सके तो खामोश ही रहिए पर
किसी के भी ज़ख्म पे नमक का थाल ना पलटिए....