वो कैसी जोड़ी थी...बालपन से संग खेले,संग बड़े हुए..खेल-खिलौने दोनों के इक जैसे थे...इक रोता
तो दूजा भी बिलख उठता..यह कौन सा नन्हा नाता था..दिनों का फेर ले आया उस अल्हड़ मोड़ पर..
इक दूजे से दूर हुए,कुछ बनने कुछ पाने को...ख्वाइशें बहुत नहीं है मेरी,फिर भी कुछ अच्छा ही बन
कर आना..मैं इंतज़ार करू गी तेरा...वक़्त तो पंख लगा कर दौड़ा..उस का मेहबूब उस का साजन
अपनी सजनी के पास ही लौटा..प्यार-इकरार के धागे इतने गहरे..बन गई जोड़ी,हो गए पूरे...दुआ से
भरा दोनों का आंचल..प्रेम के पग थे इतने प्यारे,थे दो जिस्म पर रूह से एक हुए वो न्यारे ...