मुहब्बतें-इश्क मुश्किल ही रूहे-इबादत तक पहुँचता है..विरले ही इस मुहब्बत की डगर पे कामयाब
होते है..कितने है जो पाकीज़गी से मुहब्बत को निभा देते है..बहुतो की मुहब्बत सिर्फ जिस्म तक ही
सीमित होती है..कुछ सुंदर दिल की छाया मे कुछ वक़्त रुकते है..दिल भर गया तो किसी और दिल
की तलाश मे इक नया जिस्म ढूंढ़ते है..रूहे-इबादत मे जिस्म कहां दिखते है..यह जिस्म तो फ़ना हो जाया
करते है...जो निभा दे पाकीजगी से इस मुहब्बत को,वही रूहे-मुहब्बत का दावेदार कहलाता है...