Saturday 17 October 2020

 उड़ रहे है हवाओं मे,बिन पंख के...बहक रहे है कदम बिन शराब के..यह गेसू खुले भी नहीं पर महक 


गए,यह कौन सा कमाल है..आंखे अधखुली सी है,शायद यह कुदरत का ही कोई सवाल है..दिल कह 


रहा है,ना पूछ कोई सवाल कोई जवाब अपने आप से...खुली राहों पे निकल जा,खुले आसमान के तले..


कौन क्या कहता है,यह भी ना सुन..कोई पीछे से भले आवाज़ भी दे,वो भी ना सुन...जीने के तो सिर्फ 


चार दिन ही है...दो खुद मे जी,दो उस की रहमतों मे गुजार दे...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...