उड़ रहे है हवाओं मे,बिन पंख के...बहक रहे है कदम बिन शराब के..यह गेसू खुले भी नहीं पर महक
गए,यह कौन सा कमाल है..आंखे अधखुली सी है,शायद यह कुदरत का ही कोई सवाल है..दिल कह
रहा है,ना पूछ कोई सवाल कोई जवाब अपने आप से...खुली राहों पे निकल जा,खुले आसमान के तले..
कौन क्या कहता है,यह भी ना सुन..कोई पीछे से भले आवाज़ भी दे,वो भी ना सुन...जीने के तो सिर्फ
चार दिन ही है...दो खुद मे जी,दो उस की रहमतों मे गुजार दे...