क्यों आज फिर से पलकों के किनारे मतवाले हो गए..इन आँखों के प्याले क्यों आज मदहोशी से भर गए...
बहुत भीगी-भीगी सी सौंधी सी खुशबू लिए,हवा आज क्यों खुशगवार है...इस सूरज की तपिश आज क्यों
मद्धम-मद्धम सी है...यह फूल हर मोड़ पे आज बेहद सलीके से क्यों खिले है...कुदरत के इस जादू पे
हम बेहद फ़िदा है..खुद को ही समझ रहे थे इक जादूगर..पर वो तो कुदरत है,जिस के जादू से हर तरफ
बहार का मौसम छाया है..खुशनसीब है हम जो कुदरत के इतने करीब आने का मौका हम को मिल पाया
है...