Sunday, 25 October 2020

 क्यों आज फिर से पलकों के किनारे मतवाले हो गए..इन आँखों के प्याले क्यों आज मदहोशी से भर गए...


बहुत भीगी-भीगी सी सौंधी सी खुशबू लिए,हवा आज क्यों खुशगवार है...इस सूरज की तपिश आज क्यों 


मद्धम-मद्धम सी है...यह फूल हर मोड़ पे आज बेहद सलीके से क्यों खिले है...कुदरत के इस जादू पे 


हम बेहद फ़िदा है..खुद को ही समझ रहे थे इक जादूगर..पर वो तो कुदरत है,जिस के जादू से हर तरफ 


बहार का मौसम छाया है..खुशनसीब है हम जो कुदरत के इतने करीब आने का मौका हम को मिल पाया 


है...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...