यह नज़रें झुका कर,हर पल उस को सज़दा करना...हमारी इबादत का रुतबा ही था...वो बीच राह मिले
हम से और मुस्कराहट को हमारी मुहब्बत समझ बैठे...शोखी उन की नज़रो मे थी...हम से मिलने की
हसरत भी उन्ही की थी...हम जो खामोश रहे तो उन को लगा हम उन की मुहब्बत के कायल हो गए...
इस से पहले वो बात आगे ले जाते,हम ने उन की आशिकी का जवाब दिया...यह नज़रे तो हर पल उस
के सज़दे मे झुकती रहती है..और जहा तक हम जानते है,आप अभी तक सिर्फ इंसा है...खुदा तो नहीं...