Thursday 31 October 2019

प्रेम के महीन नाज़ुक धागों को जब पिरोया बेहद शिद्दत से,बरसो बाद बना वो धागा रूह के पवित्र

बंधन मे..पूजा की थाली मे रखा फूल समझ क़र जो हम ने,कुदरत का आदेश हुआ लिख अब प्रेम

को,पूरी शिद्दत से..बरसो लिखना,सदियों लिखना...अनंत प्रेम की अनंत यह गाथा..शायद कभी कोई

तो होगा,जो समझे गा इस प्रेम की पावन गाथा..कलयुग हो,बेशक हो..प्रेम की गाथा पढ़ते पढ़ते शायद

जग समझे इस की महिमा..प्रेम से ही लौटाए गे इसी जग को,इसी प्रेम की सूंदर प्यारी भाषा..
बेहद सरल मीठी बोली के मालिक रहे बरसो तक...लोग फायदा उठाते रहे बरसो तक..हर बात पे खुद

को दोषी समझ लेना..हर छोटी बात पे सुबक सुबक रो देना..तन्हाई मे भी खुद ही को दोषी ठहरा देना..

बरसो बाद यह ख्याल आया,क्यों ना थोड़ा सा खुद को खारा कर ले,समंदर के पानी की तरह...जब ठान

लिया तो बस ठान लिया..आज यह आलम है,घोल लिया थोड़ा सा समंदर खुद के मीठे पानी मे..जीने के

लिए जितना काफी है..अब तन्हा होते नहीं,बस शोख अदा से चलते है मीठे-खारे पानी को संग-साथ लिए..

Wednesday 30 October 2019

प्यार की भूलभलैया मे गुम होंगे मगर खफा तो फिर भी है..जितनी ख़ताये की है तुम ने,सजा के

हक़दार तो फिर भी हो..सहज सरल होना कुदरत का तोहफा है,आत्म-सम्मान से जीना अलग कहानी

है..आसमां से तारे ले आओ,इस को वाज़िब नहीं मानते..तोहफों से लाद दो हम को यह भी नहीं कहते..

प्यार की इबादत मे रंग जाओ हमारी तरह..यू ही हम राधा-कृष्णा की गाथा नहीं लिखते..
दोस्तों...  ''सरगोशियां..इक प्रेम ग्रन्थ'' मे यह शायरा,लेखिका आप सब का तहे-दिल से स्वागत करती है..''मेरी सरगोशियां''इस प्रेम ग्रन्थ मे लिखे जाने वाले हर शब्द को आप सभी ने जो प्यार और अपनापन दिया है / दे रहे है..यह शायरा आप सभी को हाथ जोड़ कर शुक्रिया कहती है...साथ मे यह गुजारिश भी करती है कि मेरे लिखे शब्दों मे कभी आप को कोई कमी नज़र आए तो भी बताना ना भूलिए गा..दोस्त भी तो हू आप सब की.. मेरा हर लफ्ज़ आप के दिलो मे सीधे से उतर जाए,मेरी पूरी कोशिश रहती है..प्रेम,प्यार और मुहब्बत के करोड़ो रंगो से सजी मेरी यह ''सरगोशियां'' आप को रोज़ हर रोज़ इस के नए नए रूप से परिचित करवाती रहे गी..और आप सभी की प्रतिक्रिया का इंतज़ार भी करे गी ''''''' मेरी सरगोशियां''''आप की अपनी शायरा..
बेशक सितारों के झुरमुट मे चाँद नहीं है आज..मगर सितारों का मेला क़ाबिले-तारीफ है..दूर तक

नज़र जहाँ भी रूकती है,सितारों की महफ़िल ही दिखती है..गौर से कभी देखा नहीं इन को,चाँद को

घिरा देखा बस इन्ही की आगोश मे..खूबसूरती पे इन्ही की हम फ़िदा हो गए..चाँद की इंतज़ार करना

ही भूल गए..झुरमुट के किनारे-किनारे हम दूर तक इन्ही को देखते चले गए...
''तुम जैसा कोई नहीं''कहने वाले अक्सर मुहब्बत मे..हमारा खास दिन भूल जाया करते है..खास तारीख

को खास मुकाम कहने वाले,अक्सर तारीख भूल जाया करते है..जो पाक नहीं  वो मुहब्बत खास हो भी

कैसे सकती है..जब दिल की चाह है दौलत रुतबा पाना, तो मुहब्बत की तारीख याद कहां रह सकती है..

एक खड़ा है मुहब्बत के उसी मोड़ पर तो दूजा दौलत शोहरत पाने की होड़ मे ग़ुम है..कौन सा दिन और

कौन सी तारीख..उन को हमारे सिवा और भी हज़ारो काम है..
प्रेम की इंतिहा जहां भी होती है..समर्पण को साथ ले कर चलती है..समर्पण जो इबादत है,समर्पण जो

इक सजदा है..समर्पण इक काजल है,पर समर्पण कलंक नहीं है..काजल जो प्रेम की नज़र उतारता है..

कलंक है वहां जहां इश्क इक सौदा है..जो समर्पण को मांग अपनी मे भरे...जिस के लिए साथी उस का

कृष्ण रहे..मगर ऐसा होता नहीं..जब साथ-साथ दोनों साथ चले,समर्पण को दोनों इबादत मान चले..

वो प्यार ही पाक है..मुहब्बत जहां बस्ती है,मीठी गुफ्तगू के तले...
प्यार का मतलब समझने के लिए,जरुरी है प्यार को पहले समझा तो जाए...प्यार कोई बेजान किताब

नहीं,जिस को सिर्फ फुर्सत मे पढ़ा जाए..जब सारे काम खतम हो जाए,तब वक़्त मिलने पर साथी को

वक़्त दिया जाए..''बेहद प्यार है आप से''यह कह कर उस को बहला दिया जाए..साथी को तवज्जो ना

देना,सिर्फ यह सोच कर...अब तो यह मेरा है..ख्याल ख्याल का फर्क है,हम अपना वक़्त काट कर आप

को वक़्त देते रहे और आप...सब निबटा कर हम को वक़्त देते रहे...

Tuesday 29 October 2019

खुद को खुद से प्यार करने का वादा किया और सब कुछ भूल गए...खुद ही राधा है अब और कृष्णा भी

खुद ही बन गए..पूजा के धागों मे आज भगवान् को पूर्णतया समर्पित हो गए..इस शक्ति को रूह से

सदा ही माना मगर आज.. अपने बदले रूप से खुद से इन को सब कुछ कह डाला..जो ख़ुशी हासिल की

हम ने आज,रूह की गहराई से अपने भगवान् को बता डाला..खुद से प्यार कर के आज जाना हम ने,

किसी के प्यार की जरुरत नहीं हम को..समय और कदर खुद को दे कर,खुद को अपना प्रेम बनाए गे..
दर्द की बेहद इंतिहा से गुजरे है हम..क्या कहे वो इंतिहा थी या दिल के टूटे टुकड़ो की आवाज़..धीमे

धीमे जले या एक बार ही खुद को जला दे..रौशन था जहां जब जलते दीपक की लो मे, तो हम ने

बेहद ख़ामोशी से दर्द अपना जला दिया..सकूँ पाया इतना कि वज़ूद खुद का बदल डाला..जब बेकदरी

ही पानी है तो खुद को ही क्यों ना सलाम करे..बदलने के लिए तो इक लम्हा ही काफी है..जहां जज्बातों

को बार-बार हर बार रौंदा जाए तो सोचा क्यों ना अब खुद को ही बदल दिया जाए.....
हमारी हर बात को हवा मे उड़ा देना..खास पूजा को भी तवज्जो ना देना..रिश्ते को बेशक कोई नाम ना

दो,मगर पूजा का मान तो रखा होता..पूछने पे हमारे बात घुमा देना और प्यार का झूठा दावा करना..

समझते है सब कुछ मगर धीमे-धीमे खुद को बहुत पीछे ले जाना..मुहब्बत या तो होती है या फिर नहीं

होती है..इस के बीच दरमियाँ ना कुछ होता है,ना कुछ मिलता है..तन्हा रहना बहुत आसान है मगर यू

बात बात पे बात बदल देना,सहना आसान नहीं अब हमारे लिए..
लिखना है बिंदास,लिखना है बेबाक..लिखते लिखते डरना कैसा..मौत का खौफ ही नहीं जब रहा वैसा..

रूप बदलते लोगो को देखा,प्यार नहीं पर प्यार जताते देखा..वादे किए किसी और से मगर,संग किसी

और के जीते देखा..संग साथी जी रहे है जीवन पर दुखड़े किसी और से रोते देखा..प्रेम प्यार के बंधन

की दुहाई दे कर,मतलब अपना किसी और से साधते देखा..पन्नो की यह स्याही सूखने कभी ना देंगे..

नस्लें आए नस्लें जाए,मुहब्बत के गीत यही से पढ़ते जाए...
सतयुग के प्रेम के पन्नो को जो खंगाला. तो प्रेम का रूप बहुत अलौकिक पाया..इक दूजे के लिए रूह से

समर्पित पाया..एक को चोट लगी तो घायल दोनों को पाया.रूह के तार जुड़े थे इतने कि इक दूजे की सूरत

मे कोई फर्क तक नज़र नहीं आया..यह कलयुग का प्रेम,जहां प्रेम से जयदा दौलत-रुतबे को भारी पाया..

एक ग़ुम है रुतबा पाने के लिए,नाम कमाने के लिए और रुतबा हासिल करने के लिए..ना वक़्त है अपने

साथी के लिए..साथ तब चाहिए जब,पाना है साथी का साथ..यह प्रेम नहीं,सिर्फ जरुरत है..लिखे गे

कलयुग को भी इन्ही पन्नो पर..क्यों कि लिखने के लिए,सदा नहीं रहे गे इन पन्नो पर..

Monday 28 October 2019

आसमां को छूना है तो खुद को सोने की तरह तपाना तो होगा..रंजिशों से परे खुद को खुद ही बनाना

होगा..मंज़िल का तो अभी नाम ही मालूम नहीं..मगर पहुंचना है शिखर तक,यह ख़्वाब तो खुद के

अंदर जगाना होगा..जज़्बा ज़िंदा रखे गे तो ही खुद को उठा पाए गे..जहां भी जाए गे,माँ की यह बात

साथ-साथ ले कर जाए गे..''कामयाबी मिलती उन्ही को है,जो दिल से पाक रहते है..खुद को उठाने के

लिए,दूजो को ना गिराया करते है..रहना सदा धरा पे ही,चाहे आसमां की बुलंदियों को भी पा लो'' माँ,हम

कही भी जाए गे,तेरी सीख़ कभी ना भूल पाए गे..
कंगना...जो अक्सर हमारी मुहब्बत मे खलल डालते है..चूड़ियों को अपने इर्द-गिर्द ना आने देते है..

यह करधनी अब तेरी जरुरत नहीं लगती मुझ को..खनक इस पायल की साजन को बुरी लगती है,

जब यह खन-खन से उन को दुखी करती है..चाहत के रंग मे डूबे दो दिल,किसी का खलल ना चाहते

है..ज़िंदगी जो गुजर जाए तेरे अशियाने के तले,महक जाए जो जिस्म तेरी मुहब्बत के तले..इस के

सिवा किसी और का खलल ना चाहिए मुझे..
''सितारों से परे भी क्या कोई दुनियां होती होगी'' सुन के इसे हम जो हंसे तो रुक नहीं पाए..देख कर

हमारी हंसी बोले वो,सितारों का तो पता नहीं..पर मेरी दुनियां को सजाने तुम इक सितारा बन कर,

कैसे कब क्यों चले आए..हम ने उन को इक गहरा राज़ बताया..सुनो जानम,जो छोड़ आए थे तुम

हम को पिछले दौर मे,अधूरा जो रह गया साथ पुराने दौर मे..शिरकत तभी तो की है हम ने ज़िंदगी मे

तेरी,खुदा ने खाया तरस और पूरी की मन्नत तेरी-मेरी..
जो भी किया शिद्दत से किया..प्यार को आसमां की बुलंदियों का नाम दिया..हम प्यार की अलग मिसाल

बने,खुद को अपने प्यार मे शीशे की तरह उतार लिया..पूछते है वो अक्सर हम से,तुम क्यों हो सब से जुदा..

क्यों हो इक नदिया की तरह,कभी चंचल तो कभी इक शांत सतह..हम बोले,प्यार की इंतिहा जो देखी है

तो इबादत का रुतबा भी,हमारा देख लेना..नज़र अपनी मे यू ही रखना ..ना खुद से करना जुदा हमे..

नफरत का लावा गर बह निकला,तो डूब जाए गा सारा जहां..कि हम जो भी करते है शिद्दत से ही करते है.. 

Sunday 27 October 2019

ज़िंदगी देती रहे बेशक लाख मुश्किलात,मगर दीप की लौ की तरह हर पल साथ तू है मेरे..तूफान आए

आते चले गए,तू रहा हर पल साथ मेरे..खुशबू से तेरी आज भी मेरा यह जिस्म महकता है..तेरे ही प्यार

मे पगे शोख अदा से चलते है..तेरी ख़ामोशी की यह भाषा सिर्फ मुझ को ही समझ आती है..दुनियाँ क्या

जाने,सपनो मे भी तेरा आना-जाना रहता है..रूह को मेरी इतना भी कमजोर ना समझ लेना,दुनियादारी

को समझने की परख अब पास है मेरे..
बहुत उजाला है आज मगर दिल तो तेरी बातों से झिलमिल झिलमिल है..सारा जहां रहे बेशक खुद

मे मगर हमारा इरादा तो तुझ को सताने का है..अब यूँ बेवजह ना मुस्कुराइए,कातिलाना अंदाज़ तो

हमारा भी है..कितने ही उजाले आज रहे जहाँ भर मे,रौशन खुद को करने के लिए साथ तेरा जरुरी है..

खुशियाँ ही खुशियाँ बिखरी है चारों तरफ,जो मंज़िल जाती है तेरी तरफ...हमारा रास्ता तो सिर्फ इतना

ही है..

Saturday 26 October 2019

दीपक से दीपक को जलाया तो उजाला हो गया..कुछ नन्हे-मासूम हाथो ने जैसे ही सर झुकाया,तो

परवरदिगार भी हैरान हो गया..ख़ुशी से चमक उठी कुछ जोड़ी आंखे,यूँ लगा फ़रिश्तो ने हम को 

अपना नूर दिखाया..महक रहे है ख़ुशी से इतना,क्या पा लाया सोच रहे है इतना..काश,सारी दुनियाँ

इतनी ही खूबसूरत होती..ना कोई बेहद गरीब होता,ना कोई जरुरत से जयदा अमीर होता..सब के घर

सदा खुशियों के दीपक जलते..छुप-छुप के कोई आंसू अपने ना छिपाता...
कलम हमारी लिखती है,बना मुहब्बत को,प्यार को,प्रेम को इतना हसींन..लफ्ज़ो को उड़ा आसमान मे

इतनी दूर,जो दिल से है बेज़ार..जो टूटे है मुहब्बत के बाजार..जो प्यार से है महरूम,जो बुझे है किसी

पुराने दीपक की तरह..मर-मर भी मर ना सके,जीने की ख़्वाहिश भी पूरी कर ना सके..डर-डर के इतना

डरे कि प्यार की डगर भूल गए..कलम हमारी सन्देश देती है,भूल जा कल हुआ था क्या..भूल जा किस

ने तोडा था दिल यह तेरा..प्यार को अब बना इबादत अपनी,जी ले सारी साँसे जो अधूरी थी कभी..
''कही हम से आप को प्यार तो नहीं हो गया'' पूछा उस से हम ने..हम तो धरा पे है,धरा से अलग..जो

साथ नहीं किसी के चल सकता,प्यार भी किसी से कर नहीं सकता..जुड़े है बस ऐसी जगह जहाँ वक़्त

भी पहुँच नहीं सकता..फ़रमाया उस ने''मेरा भी अपना इक जीवन है,धरा पे हू मगर धरा पे सब से जुड़ा

हू..देख कर आप को विचलित नहीं,मगर कदमो मे झुकता हू'' ... देख ऐसा सच्चा इंसान खुदा को

हम ने शुक्रिया कहा..चल रही है दुनियाँ जब इन जैसो से,तो बिंदास हम सब लिख सकते है..



Friday 25 October 2019

आसमाँ की बुलंदियों को गर छूना है तो बेखौफ तो लिखना होगा..प्रेम की भाषा सब को समझाने के

लिए इक प्रेम-ग्रन्थ तो लिखना होगा..हवस से परे,मुहब्बत के लफ्ज़ो को पाक तो रखना होगा..सोच

से परे जो रूहे-मुहब्बत होती है,सदियों से जो चलती आई है,सदियों तक चलती जाए गी..समर्पण-

इबादत जो समझ गया,सज़दा साथी का जो करना सीख़ गया..सही मायने मे मुहब्बत का अर्थ जान

गया..तू मुझ से परे मै तुझ से परे,मगर दिल-रूह तो साथ जुड़े..इस रिश्ते का नाम जो समझा,वही है

बना मुहब्बत के लिए..
बसे हो जब रूह मे तो कैसे कहे पास नहीं हो तुम..जब पास ही हो तो क्यों कहे,ख़ास नहीं हो तुम..हंस

दिए सोच कर तुझे..बात को घुमा देना तुम्ही से सीख रहे है हम..याद क्यों करे,जब याद ही हो गए हो

तुम..माशाअल्लाह..जवाब नहीं तेरा..कायल हो गए कब से तेरे..घायल हो गए सिरफिरी बातो से तेरे..

कुछ भी हो,बहुत ख़ास हो तुम..जिस ने बनाया तुम को,उस के शुक्रगुजार है हम..सब कुछ अब तुझी

से सीख कर,तेरे ही हो गए हम..

Thursday 24 October 2019

सब कुछ दिया,सब कुछ किया..प्यार की पराकाष्ठा तब भी समझ ना पाए तुम..ना कुछ माँगा,ना

कुछ चाहा..फिर भी मुझे अपना ना समझ पाए तुम..जीने को तो हर कोई जी लेता है,मगर जो जिए

प्यार मे अपने ऐसा नसीब सब को कहाँ मिलता है..कहने को बहुत कुछ था,पर अब सब सपना है..

तुम कहाँ और हम कहाँ..मिलने का अब क्या सोचे कि तुम तो खुद के ही खुदा हो गए..और हम तुझ

को खुदा माने खुद से ही जुदा हो गए..
उन्हों ने फरमाया मैं खुश हू अपनी ज़िंदगी मे,आप अपनी ज़िंदगी मे आबाद रहे..दुआ देते है आप को

दुआ हमारी क़बूल करे..मुस्कुरा दिए पर साथ मे रो दिए..अजीब मुहब्बत है आप की..बोलिए तो,किस

बात को भूले तो किस को याद रखे..बसे है जब हर सांस मे आप तो अब किस नाम की और सांस ले..

वाजिब है  कहना आप का,हम ने तो सदा ख़ुशी ही चाही आप की..ज़िंदगी अपनी मे गर खुश है आप,

हम भी खुश है साथ आप के..जाते-जाते यह तो बताते जाइए,कितनी साँसे दे गे अब अपने नाम से..
रुक जाइए जरा..मुहब्बत-प्यार का मतलब तो समझते जाइए जरा..अगर हर जगह दगा होती,तो

यक़ीनन यह मुहब्बत ख़ाक होती..और गर यह ख़ाक होती तो ना ज़िंदगी कही आबाद होती..हल्की

सी खुमारी मे डूबा हुआ यह जहाँ सारा,याद करता है अक्सर मुहब्बत का जनून सारा..क्यों लगता है

आप को कि मुहब्बत जनून नहीं होती..सुनिए जरा,गर यह जनून नहीं होती तो आप की हम से

मुलाकात क्यों होती...
दर्दे-मुहब्बत हो या दास्तानें-इश्क...क्या क्या ना लिखा हम ने इस मुहब्बत के लिए..लगता है अभी भी

बहुत बहुत कुछ है ऐसा,जो लिखना बाकी है..यह जहां बहुत बड़ा है,हर इंसा अपनी तरह का है..यहाँ हर

कोई इस मुहब्बत को कहां समझा..किसी के लिए यह इक बदनुमा दाग़ है तो किसी के लिए मुहब्बत

बेकार है..कोई इसी मुहब्बत मे शिद्दत से डूबा तो कोई इस मे संग साथी के समर्पित हुआ..हम लिखते

जाए गे मुहब्बत को आखिरी सांस तक,''सरगोशियां''को इक प्रेम ग्रन्थ बना जाए गे..आने वाली हज़ारो

नस्लें मुहब्बत को समझे,हम तो इस को अपने पन्नो पे छोड़ जाए गे..
नज़ाकत और नफासत..मुहब्बत और शराफत..इज़्ज़त और झुकावट..तक़दीर से यह मिला हम को..

ढूंढ़ने जब निकले दुनियाँ के बाज़ार मे,कुछ मिला..मगर सब कुछ नहीं मिला.. जो होते है बुलंदियों

पे वो अक्सर गरूर से भर जाया करते है..नज़ाकत हो तो नफासत को भूल जाया करते है..शराफत

से जो मुहब्बत को ताउम्र निभा जाए,दुनियाँ के इस बाज़ार मे ऐसे शख़्स कहां होते है..मुहब्बत को

जो यह सभी नाम दे,ऐसे नाम कहां मिलते है..

Wednesday 23 October 2019

यह मुहब्बत की दुआएं कहां कहां बसेरा कर जाए गी..कितनी सदियों से चल रही है,कितनी सदियों

तक चलती जाए गी..निर्मल मन साथ लिए,यह कभी ना रुक पाए गी..देख खुद को,किस मुकाम से

किस मुकाम तक तुम को ले जाए गी..मुहब्बत नाम है बहुत नामो का..जहां खवाब है.मन्नतें है.छू

जाने वाली ख्वाइशें है...डर मत कि बुलंदियों पे अक्सर पाक मुहब्बत ही ले जाया करती है..साँसे कब

तक है कौन जाने..मगर दुआएं सदियों सदियों तक साथ चला करती है..

''सरगोशियां'' खामोशियों के महीन धागों मे लिपटी एक प्रेम-गाथा..
''सरगोशियां'' लफ्ज़ो की अदायगी का पुरज़ोर लहज़ा..
''सरगोशियां'' जो कह ना सके फिर भी सुन लिया..
''सरगोशियां'' पाक-पावन प्रेम का एक मासूम ग्रंथ..
''सरगोशियां'' अनकहे प्यार की बोलती कहानी..
''सरगोशियां'' सदियों के प्यार की बेमिसाल दास्तां..
''सरगोशियां'' कोई रिश्ता भी नहीं,फिर भी तेरे है..
''सरगोशियां'' मुहब्बत को दुआओ मे तब्दील करती एक कहानी..
''सरगोशियां'' जो मिट जाए,मगर उफ़ ना करे..
''सरगोशियां'' मौत का खौफ भी नहीं जिसे..

Tuesday 22 October 2019

दुनियाँ से जाने से पहले,इतना लिख कर जाए गे..तुम कहते हो मुझ को''सदियों मे पैदा होती है तुम

जैसी दुल्हन''.हम ना रहे गे, बाद हमारे अल्फ़ाज़ यह सारे महके गे दुनियाँ मे सारे..इत्मीनान से फिर

पढ़ना सब कुछ..देखे गे ऊपर से सब कुछ,प्यार तुम्हारा और लगाव हमारा..फिर ना बिछुड़े गे कभी

दुबारा,साथ साथ जी कर-साथ साथ मर जाए गे..सदियों का वादा ले कर,साथ साथ फिर दुनियाँ मे

आए गे...
जग दे रहा है मान हमारे लफ्ज़ो को..कितना लिखा,यह जान खुद है हैरान..कलम को कभी उस नज़र

से देखा नहीं,यह बहुत कुछ हम से लिखवाती रही..जब भी लिखा,बेखौफ लिखा..डर कर कभी जिए नहीं..

बचपन की पहले होश से जो लिखा तो ताउम्र लिखते जाए गे..आज यू ही मन किया,कलम अपनी को

खुद ही सलाम किया..शर्त रख दी सामने,झुकाना ना कभी मान मेरा..कि हम तो बने ही है सिर्फ लिखने

के लिए...
रफ्ता-रफ्ता कहां महक रहे है..सदियों से तेरे प्यार मे निखरे-निखरे ही तो है..तूने मुझ को अभी भी

कहां जाना,इंद्रधनुष से बने तेरा ही जग महका रहे है..बरसते है बादल जब-जब तूफान से,बिखरता

है इंद्रधनुष तब-तब आसमान मे..ख़ुशी सदा तेरी ही चाही मैंने,बेशक संग साथ नहीं रहना मैंने..क्या

हुआ जो साथ बसे नहीं,क्या हुआ जो इस जन्म मिले नहीं..तेरी खुशियां देख-देख खुश होती हू..प्यार

का अनंत रूप बाँट कर जी लेती हू..क्यों कि राधा हू,इस लिए सब कुछ ना पा कर भी,खुश रहती हू..
पल को पल से जोड़ा और इक रिश्ते का आशियाना सा बना लिया..हर उस महकती सांस को उसी सांस

से जोड़ा और मुहब्बत को अमर कर दिया..कौन जाने यह ज़िंदगी कभी मिलन की घड़ियाँ झोली मे

दे या ना दे..पर हम ने तो तेरी सूरत अपनी रूह मे इस कदर बिठा ली..आंखे बंद करे तो भी तू है,आंखे

खोले तो भी तू है..समर्पण कहाँ कुछ माँगता है,वो तो सिर्फ बलिदान देना ही जानता है..तेरी ख़ुशी मे

मुस्कुरा दिए और तेरे दर्द मे खुल के रो दिए..

Monday 21 October 2019

चाँद मुखातिब है मुझ से फिर इक बार..क्यों जलता है मुझ से,ऐसा भी क्या है मुझ मे जो नहीं है

तेरे पास..''प्यार की इंतिहा समझने के लिए हुआ हू मुखातिब तेरे साथ..क्या है यह प्यार''खिलखिला

कर हम जो हँसे,चाँद बौखला गया..सुनो चाँद..जब प्यार ही प्यार सब तरफ नज़र आए, मगर सूरत

कोई ना नज़र आए तो समझ लीजे,प्यार की इंतिहा उफान पे है..यह सुन चाँद,बादलों की ओट मे समा

गया..और हम तो हम है,चाँद की इसी अदा पे मुस्कुरा दिए..
लफ्ज़ो का जादू जब-जब बिखरता है इन पन्नो पे,बाबा की दुआ याद आ जाती है...लफ्ज़ जब-जब

भी पन्नो पे ताकत बनते है क्यों माँ का आशीष याद आता है..बेशक लिखे मुहब्बत या तन्हाई या

लिख दे जुदाई..आँखों मे दुआओ का साथ नज़र आता है..ना जाने कितने लफ्ज़ो को लिखा आज तक

हम ने,भण्डार इन का ख़त्म नहीं होता..पहुंचे गे जब अपने मुकाम पर,तब भी इन्ही दुआओ का साथ

हमारे साथ होगा..

Sunday 20 October 2019

जाने की बात ना कीजिए,अभी अभी तो आप आए है..ज़िंदगी मे बहारे ले कर आप आज ही आए है..

गुस्ताखी ना करे गे कोई आप की शान मे,रुक जाइए अभी अभी तो हमारी ज़िंदगी को सवारने आप

आए है..''आप के पास गर अभी आए है तो ज़िंदगी के सारे दौर,आप ने कहाँ बिताए है..नज़ाकत हमारी

को यू ना पुकारिए,जैसे आए है वैसे लौट भी जाए गे''अब तक बेज़ार थे तुम बिना,कैसे बताए कि दौर

मे सारे हम बहुत रोए है..शायद कमी आप की थी,कभी पहले ऐसे ना मुस्कुराए है..
यह आंखे यह पलके..क्यों झुकती है बार-बार तेरा सज़दा करने के लिए..तेरी ही आगोश मे है,लगता

है ज़न्नत के किसी दौर मे है..कौन कहता है यह साँसे रुक सकती है..जब तल्क़ यह आगोश है,साँसे

खूबसूरती से महक सकती है..दिल धड़कना बंद कैसे कर सकता है,फिजाओं मे फूल जब हम से ही

खिलते है..हज़ारो दिलों की धड़कनों मे बसे है,किसी परी की तरह जग मे बसे है...मासूमियत को अब

तक समेटे है तो भला यह साँसे कैसे रुक सकती है...

तपती रेत पे जो उतरे तो लफ्ज़ और निखर आए..यह पाँव के छाले गहरी टीस के साथ दो बून्द अश्क

भी ले आए..आंखे बेशक नम है आज मगर इन्ही आँखों मे खवाब भी हज़ारो नज़र आए आज..बिख़र

के अब टूटना कैसा जब जाना है जल्द ही उस पार...खुशबू तो अब भी फिज़ाओ मे रस घोल रही है..

शायर बनना इतना आसान नहीं कि शायर को दुनियाँ भुला देती है वक़्त के साथ..मगर हम वो

हस्ती है जिस को यह दुनियाँ याद करे गी,हमारे चले जाने के भी बाद...
प्रेम की इंतिहा मे जो डूबे,संसार सारा भूल गए..ऐसा क्या मांग लिया जो तुम यू खामोश हुए और फिर

बदल गए..बेरुखी का अंदाज़ समझ हम को भी आता है..जो तुम्हारे लिए आज भी जीवन छोड़ दे,क्या

यह समझ आता है..मगर ऐसा नहीं करे गे हम,सज़ाय-मौत खुद को नहीं दे गे हम..बरसो बाद मिले जो

किसी मोड़ पर,खुद का चेहरा मेरे चेहरे पे पाओ गे तुम..मुहब्बत कितनी खास थी,बरसो बाद ही समझ

पाओ गे तुम..दुआ करते है खुश रहो अपनी उसी दुनिया मे,जिस के लिए हम आखिरी सांस तक तेरी ही

खुशिया मांगे गे..हमारा क्या है,राधा जो बने तो किसी और से नाता कहाँ जोड़े गे ...

Saturday 19 October 2019

दोस्तों ..''सरगोशियां'' मे आप का तहे-दिल से स्वागत है,मगर कुछ चुनिंदा लोग ऐसे भी है जो मेरी सरगोशियां से जुड़े तो है मगर अपनी प्रतिक्रिया इतनी अशोभनीय लिखते है,कि क्या कहू..उन सभी से मेरा विनम्र निवेदन है कि अगर आप प्रेम प्यार के इन पाक लफ्ज़ो को जानना ही नहीं चाहते या आप का दिमाग ही कुलषित है तो कृपया सरगोशियां मे ना आए..जो इंसान शायरी को समझ ही नहीं सकता,जो मेरी मेहनत के लिखे शब्दों को इज़्ज़त नहीं दे सकता..उन को मैं कहती हु कि अपनी ही दुनिया मे लौट जाइए..मेरी सरगोशियां सिर्फ शुद्ध प्रेम को दर्शाती है,जिस मे साथ है प्रेम का हर रूप..अगर आप मेरा, मेरे शब्दों का अपमान करने आए है तो आप मेरे दोस्त कहलाने के लायक ही नहीं है..शायरा हू..एक लेखिका भी हू..जो मन से ह्रदय से कोमल भावनाएं रखते है..मेरी भावनाओ का उपहास करने की इज़ाज़त नहीं देती मेरी यह ''''सरगोशियां'''''....शुभकामनाएं सभी के लिए...
जलील होने के लिए नहीं,दुनियाँ से इज़्ज़त हासिल करने के लिए...प्रेम की सही परिभाषा सभी को

बतलाने यहाँ आए है..प्यार प्रेम और मुहब्बत,देह से जुड़ा कोई नाम नहीं..लोगो ने इस प्यार को क्यों

बदनाम किया,देह से बांध कर क्यों घिनौना नाम दिया..जुड़ते है जब उल्फत के धागे,समर्पण मे प्रेम

जब झुकता है..देह होती है पावन तब जब प्यार किसी रिश्ते मे ढलता है..बेनाम रिश्ते भी कभी कभी

राधा-कृष्णा बन जाते है..मगर मन जब साफ़ नहीं,तो सदा के लिए ख़त्म हो जाते है...
आज इक नए जज्बे को साथ लिए,सरगोशियों मे चले आए है..सब का साथ मिले ना मिले मगर खुद

को तराशने फिर से आए है..लफ्ज़ तो वही होगा'''प्यार'' का रूप भी वही होगा,मगर खुद को ढाल दे

गे शिद्दत से इन मे इतना कि दुनियाँ कभी ना कभी नाज़ करे गी हम पे इतना..डरते नहीं खुद की

आज़माइश पे,खौफ भी नहीं कि क्या हम खरे उतर पाए गे अपनी कवायत पे..मंज़िल को अब पाना

है हर हाल मे..शुद्ध प्रेम को,गूढ़ मुहब्बत को अपनी मेहनत से पेश करे गे..अपनी सरगोशियों पर..
कायनात की बहारों को छोड़ कर,तमाम हसरतो से दूर बहुत ही दूर..रेगिस्तान की धरा पे निकल आए

है..शायद अब यह बेहद जरुरी था...लक्ष्य अपने को पूरा करने के लिए,पांवो का तपती रेत पे जलाना

बेहद जरुरी है..कुछ पाने के लिए खुद को यह जताना जरुरी है,मंज़िल यू ही नहीं मिला करती..इस के

लिए अब शब्दों का गूढ़ अर्थ खुद को समझाना बहुत लाज़मी है..छू कर बाबा के चरण,इन शब्दों मे

इतना ग़ुम हो जाए गे..जब तक खुद को साबित ना कर दे,इन्ही शब्दों की दुनिया मे जीवन बिताए गे..
आसमाँ गर धरती से मिल पाता...रात-दिन जो साथ साथ रह सकते..शाख से टूट कर ग़ुंचे गर जो

फिर खिल पाते..जो नियति ना कर पाई वो इंसा भला कैसे करते..तक़दीर मे जो जुदाई का गम लिखा

है तो साथ-साथ जीने का खवाब क्यों देख पाते..कृष्ण जब खुद राधा के ना हो पाए,बेशक प्रेम के शुद्ध

धागे अनंत काल तक बंधे पाए...प्यार तक़दीर से कहाँ मिलता है,कुदरत का करिश्मा हो तो पत्थर मे

भी नीर बहा करता है..
सदा के लिए दुनियाँ मे कोई जीने नहीं आता..बार-बार जीवन की नसीहतें बताने,ताउम्र साथ नहीं

रहता..लोग कहते है''हमारी दुआओ मे बहुत ताकत है''जिस जिस को भी दी मन से हम ने,आसमाँ 

की बुलंदियों को छुआ उस ने..बाबा का कहा और माँ का सुना,शायद इतना रंग लाया..बाबा की दुआ

मे घुले कच्चे दूध की तरह और माँ को मिले हम किसी फरिश्ते की तरह..जो माँ ने हम को बताया

जो उस की आँखों ने सिखाया,नहीं भूले है आज तक माँ संस्कार तेरे..साथ जब उन का छूट गया हम

से,तो हम भी कौन सा वरदान लिए रहे गे सदा किसी के भी लिए..






हज़ारो फूल बिखरे हो इस गुलिस्तां मे,सभी को माली कहां मिल पाते है..बेतरबी से बिखरे फूल को

अक्सर सच्चा पारखी ही समझ पाता है..झंझोड़ कर जो रख दे,वो फूल की कीमत से अनजान होता

है..सवारने के लिए फख्त प्यार ही काफी होता है..मुरझा के जो फूल गिर जाए धरा पे,वो फिर दुबारा

ना खिल पाता है..बेशक कितनी हवाएं ज़िंदा करना चाहे उस को,वो फिर से डाल पे कहां खिल पाता

है..रफ्ता रफ्ता छोड़ देता है दुनिया,किसी को कानो-कान खबर भी ना होने देता है..








चार कदम भी साथ ना चल पाए तुम..हवाओ का रुख अभी देखा भी ना था कि उजाड़ कर रख दिया

सब...क्या है प्यार,क्या है प्रेम और मुहब्बत कहाँ कहाँ साँसे मांगती है..रूह को जब रूह सकून दे,यह

मुहब्बत भी वही रुक जाती है..दौलत,रुतबा और शक्लो-सूरत से इस मुहब्बत का क्या लेना-देना होता

है..कृष्णा बहुत काले थे मगर राधा का रूप बहुत मनमोहक था..उस प्रेम-लीला का अथाह अखंड रूप

तुम कहाँ जान पाओ गे..आज इस दुनिया मे प्रेम सिर्फ ढोंग है,शुद्ध प्रेम की मिसाल किस ने समझी..जब

कि यहाँ दिल को ही तोड़ दिया जाता है...

Friday 18 October 2019

दोस्तों..मेरी कलम से निकले असंख्य शब्दों को आप सभी न मान दिया..सम्मान दिया..शायरी..जो आप का दिल जीत ले,जो आप को मुस्कुराने पे मजबूर कर दे..कभी दर्द महसूस करने पे रुला भी दे..कभी रूमानी बना दे..हर शब्द जो आप के दिल-रूह के करीब हो..मेरे लिखे शब्दों का आप रोज़ इंतज़ार करे..दोस्तों..आप की दी सराहना मेरे लिए अमूल्य है..प्रेम प्यार मुहब्बत की चाशनी मे लिपटे शब्द कब कहाँ आप को मेरी ''सरगोशियां''से जोड़ दे..कौन जाने..''मेरी सरगोशियां''मे आप जयदा से जयदा जुड़े और मुझे हौसला-अफजाई दे..एक शायरा और लेखिका होने के साथ-साथ मैं आप की दोस्त भी हू..मेरी शब्दों को पढ़ कर कर,मुझे मेरी राहो पे सफलता दे...आप सभी की शुभकामनाओं की मुझे भी जरुरत रहे गी..आभार.धन्यवाद..शुक्रिया दोस्तों..आप का दिन शुभ हो..

Thursday 17 October 2019

सब कुछ भूले,सब कुछ हारे..जीत आज मुहब्बत की कर के,अपने जीवन मे कुछ पाने लौटे..फक्र है

खुद की इबादत पे हम को,फक्र है अपनी पाके-मुहब्बत पे हम को..इस को हर पल साथ लिए,लक्ष्य

की और अपने चल दिए..कुछ मासूम दिलों को फिर से पाया,उन की खिदमत मेरा साया..वो जिन्हो

ने हम को आसमां की परी बनाया..इज़्ज़त बख्शी,रुतबा दिलवाया..वक़्त हमे दे कर सब ने, हम को

हमारे होने का एहसास दिलाया..वक़्त कोई तभी दे पाता है,जब नाता दिल से निभाया जाता है..
शुद्ध प्रेम की परिभाषा ना जाने कितनी बार लिखी..हर बार यह अधूरी सी लगी..जाना आज देह से नहीं

बंधा यह प्रेम,तूने मुझ को ना समझा..इस बात का अब कोई गिला नहीं..तिरस्कार कितना भी कर लो,

झूठ के धागे कितने बुन लो..फिर भी शिकायत कभी नहीं..सृष्टि के रचयिता को सब कुछ कह डाला,

अलौकिक प्रेम अपना कर डाला..रूह को पुकारे गे हर जन्म के साथ..अपना लक्ष्य फिर से साधा,और

सच मे बंध गए खुद के साथ..अब तपस्या का रूप धरा जो हम ने,किसी का भी नहीं अब कोई नाम..

Wednesday 16 October 2019

दर्द तेरे दिल का समझने के लिए,दिल मे तेरे दस्तक देना भी जरुरी था..''मुझे क्या गम होगा''तेरा यह

कहना,मुझे यही से सब कुछ समझ जाना काफी था..कुछ रिश्तो के कभी कोई नाम नहीं होते,सब कुछ

जानने के लिए कोई पहचान जरुरी नहीं होती..कभी परियों के देश से कोई आ जाता है तो कभी कोई

इंसानी-धर्म निभा कर खुद को फरिश्ता कायम कर जाता है..खुशियाँ बाँटने के लिए,रिश्ते नाम नहीं

चाहते...दस्तक दिल पे भी दी ऐसे,कि साँसों के निकलने से पहले तुझे दर्द से परे नई ज़िंदगी दे जाए..

Tuesday 15 October 2019

अक्सर जब भी मौसम रूमानी होता है,यह मुहब्बतें जन्म लेती है..बेखबर ज़माने से अपने मीत से मिला

करती है...मौसम के बदलते ही यह फिर ग़ुम हो जाया करती है..कौन सा मीत कहाँ का मीत,सब भूल

जाय करती है..हवाओं के रुख से यह मुहब्बतें गायब भी हो जाया करती है..कृष्णा-राधा ,शिव-पार्वती

 की लीला से परे यह इंसानी धर्म भी कहाँ निभाया करती है..मुहब्बत का नाम सिर्फ साथ देना है,दुःख

हो या सुख प्यार तो निभाना है..आखिरी सांस तक उस मुहब्बत को निभाना है,जैसे राधा-कृष्णा को ही
पाना है..
एहसास जब तल्क़ तुझे होगा मेरी मुहब्बत का,हम तो इन राहो मे बहुत आगे तक निकल जाए गे..

अब क्या मांगे तुम से-क्या कहे तुम से..वो सब कुछ पाया जो शायद भगवान् से भी ना कह ना पाए

थे..अर्थ समझना इस मुहब्बत का आसान ना था..बिना शक किए तुझ पे कुर्बान होना भी आसान ना

था..तेरे दिल की गिरह खोली हम ने,यह भी कुछ आसान ना था..खुद ही अकेले मे रो दिए,तुझे बताना

भी इतना आसान ना था..खुशकिस्मती अपनी पे सराहते है,यह भी समझाना तुझे आसान नहीं है...
धड़कन दिल की धीमे होने चली है और अब तक तेरी कोई खबर ही नहीं है..हवाओ से पूछ रहे है,किधर

है रुख जनाबे-आली का..फिजाओं ने बताया वो तो मसरूफ है ज़िंदगी की क़वायतो मे..खोजे कहाँ कहाँ

उस को,तेज़ी है चाल मे उस के इतनी कि रंजिशों से परे इक दुनियाँ है उस की..इक बरखा ही तो है,जिस

के शिकंजे मे वो अक्सर लिपट जाता है...वो उस पे मेहरबाँ नहीं होती कि हम से मिलाने का सही रास्ता

सिर्फ बरखा देती है..दिल अब उदास होने को है कि अब तक तेरी कोई खबर ही नहीं है..

Monday 14 October 2019

क्यों खनक गई यह कांच की चूड़ियाँ आधी रात को..मिलन अधूरा ना रहे,पायल खुद ही रुखसत हो

गई बिन आवाज़ के..करधनी साथ मे पायल के, मुझे यह सन्देश दे गई..तेरी ख़ुशी मेरी ख़ुशी..ना रह

अब तू बंधन के किसी जाल मे..धीमे धीमे झुमके चले अपनी ही दिलकश चाल मे..मुबारक सभी ने

 दी चलते चलते,कहाँ सिर्फ इतना...इतनी पाक-मुहब्बत देखी नहीं कभी,सज़दे मे अब झुके कैसे कि

समर्पण की बेला मे अब हमारी जरुरत कहाँ रही..
''''सरगोशियां''''प्यार-मुहब्बत के बेहद मीठे लफ्ज़ो को हवाओ मे उड़ाती मेरी सरगोशियां...कभी विरह के धागो को अनकहे लफ्ज़ो मे समेटती मेरी सरगोशियां...तो कभी गिले-शिकवे दर्शाती मेरी यह सरगोशियां...इबादत का पाक रूप-रंग लिए आप सभी को,इबादत का अर्थ समझाती मेरी यह सरगोशियां..किसी मोड़ पे मिल जाए गे यू ही कभी,यह यकीन देती मेरी सरगोशियां...समर्पण को भी खुशबू के अनोखे रंग मे ढालती मेरी यह सरगोशियां ...रिश्ते की बेवफाई को नकारती मेरी यह सरगोशियां..दोस्तों,मेरी सरगोशियां...हर रूप मे आप सब के सामने आतीआप सभी के साथ की उम्मीद लिए..आप की शायरा.. है..हर रूप को अब सभी का दुलार-प्यार मिल रहा है..शुक्रिया मेरे दोस्तों...शुक्रिया..तहे-दिल से शुक्रिया...
कह रही है चांदनी सो जाओ ना,चाँद तो आज परदे मे है...वो बेखबर मुझ से ही है,बादलो की ओट मे

है..गुफ्तगू करे गा क्यों,नींद के झोकों मे है...इल्तिज़ा करते है चाँद तुम से,बार-बार छुपते हो क्यों

बादलो की ओट मे..बात कैसे माने भला,चैन आता नहीं तुझे देखे बगैर..गर वो है तेरी चांदनी,तो

हम है तेरे हमनशीं..हमनशीं से जयदा हम है तेरे हमनवा,हमकदम...बाहर आइए जरा बादलो की

ओट से,इक झलक देख तेरी सो जाए गे मदहोश से...
राधा ने कृष्ण को नहीं पाया..फिर भी वो प्रेम,वो प्यार युगो युगो तक कायम है..क्या प्यार सिर्फ साथी को हासिल कर लेने का ही नाम है..कृष्ण तब भी सिर्फ राधे के थे,अनंत काल तक राधा के रहे गे..प्यार की परिकाष्ठा सिर्फ राधा के प्रेम मे थी..जो पूरी तरह अपने कृष्णा को ही समर्पित थी और कृष्ण...राधा मे ही बसते रहे और राधा अपने कृष्णा मे..अलौकिक प्रेम कथा को समर्पित है,मेरी यह ''''सरगोशियां'''

Sunday 13 October 2019

सजना-सवांरना किस लिए,जब प्यार तेरा हर पल साथ है..गहनों की जरुरत ही क्या,जब तेरी महकती

हुई मुस्कान साथ मेरे है...पायल और बिछुआ भाते नहीं,तेरे साथ से इन का कोई वास्ता ही नहीं..माथे

पे बिंदिया सजाए क्यों,तुझे रोज़ निहारना ही जब मेरा मकसद है...यह गज़रा यह फूल,सजाए किस लिए

जब तेरे कदमो मे हम ने यह सब बिछाने है..अब तुझी से कैसा दिखावा करना,जो बसा है दिल और दिल

की धड़कन मे..उसी के लिए सादगी का गहना पहन कर जीना,कि जब प्यार तेरा हर पल साथ है मेरे.. 
बेवफाई करने की खता ना करे गे,हम और तुम..खता हो गई फिर ना मिल पाए गा, तुम को मुझ को..

सात जन्म का प्रेम अलौकिक ...जिस सुंदर मन से तुम ने प्यार किया,जिस काया को अपने साथ

लिया..युगो युगो तक मन यह सुंदर होगा साथ तेरे,काया का तो पता नहीं कब ढल जाए,तेरी-मेरी...

साथ निभाने आउ गी दूर तक,मुझे तेरी भोली अँखियो का सदक़ा..जितनी गहराई है तेरी इन आँखों

मे,उस से जयदा प्यार रहे गा मेरा गहरा..आज़माइश सिर्फ वही करे गा,जिस ने जोड़ा तेरा मेरा नाता..

Saturday 12 October 2019

समर्पण की बेला मे आज..ख़ामोशी की भाषा के साथ..जीती मुहब्बत झुक गया प्यार..प्रेम दे रहा

फिर से इन को, अलौकिक रिश्ते का वही पुराना सुंदर नाम..झुकती आंखे बहकती पलके,उठने को

अब भी नहीं तैयार...भरपूर देख लू तुम को सजना,आस भरी है दिल मे आज..लाज-शर्म से निकले

गर, तभी बने गी पूरी बात..शरारत ना करना इतनी,कि कह ना सके आज फिर दिल की बात...टूट

के चाह तू मुझ को इतना,रिश्ता अलौकिक बने दुबारा से फिर इक बार...
प्रेम..प्यार और मुहब्बत..इन शब्दों को बारीकी से खंगाला तो फर्क सब मे कुछ-कुछ नज़र आया..

प्रेम..देह से परे मगर अलौकिक से भरे..प्यार..समर्पण की पराकाष्ठा तक पहुँचता, एक नायाब

रिश्ते मे ढलता नया स्वरूप...मुहब्बत..समर्पण को आखिरी सांस तक ईमानदारी से निभाने का

नाम...हम ने सब को इक स्वरूप दिया,अब यह आप सब पे छोड़ा,किस ने कौन सा रूप चुना..

जीना प्यार मे मरना प्यार मे..प्यार ही प्यार..प्रेम मुहब्बत अब तेरे साथ..
चल मिल के दोनों,सात जन्म साथ-साथ रहने का वादा कर ले..ना तुम मुझ से आगे, ना मैं तुम से

पीछे..कदम चले जब साथ साथ,ना कोई रूठे ना कोई मनाए...तेरी दुनियाँ मेरी दुनियाँ,वारी वारी जाऊ

मैं तुम पे इतना..दुनियाँ फर्क ना कर पाए,तू मुझ मे है या मैं तुझ मैं हू...राधा बनु सदा मैं तेरी,तू कृष्णा

आज भी है मेरा और रहे गा सातों जन्म मेरा..डूबे है गहरा इतना तेरी मुहब्बत मे,कि सात जन्म अब कम

लगते है..अनंत काल से अनंत काल तक,तू मेरा हो और मैं तेरी रहू...
तेरी याद किसी भी झरोखें से ना आए,सारे किवाड़ बंद कर दिए हम ने..हर खिड़की को सलीके से बंद

किया और इत्मीनान से सोने लगे..अब यहाँ हवा का भी कोई आना-जाना नहीं है..गुजारिश है आप से

इत्मीनान से खुद को मसरूफ रख लीजिए,आप को अब हम भी ना याद आए गे..धक् धक् यह कैसी,

दिल के इस दरवाजे पे अब कौन सी दस्तक तेरी..उफ़..कहाँ कहाँ बसते है आप,जिस्म के हर  कोने मे

क्यों समाए है आप..देखिए जनाब,सकून अब आप का भी उड़ाए गे..कैसे करते है काम,यह भी कमाल

कर के दिखाए गे हम..

Friday 11 October 2019

ऐ मुहब्बत तू मेरी ज़िंदगी मे बेशक कभी दस्तक ना दे,फिर भी तुझे लिखे गे मुहब्बत से,मुहब्बत की

तरह..क्यों कि वादा किया है इस जग से इन पन्नो से,तुझ को बिखेरे गे पूरे जहान मे...कोई भी अनजान

ना रहे मुहब्बत की रवानगी से..हम ने बस राधा कृष्णा की मुहब्बत को जाना है,माना है..जो पावन रूप

है मुहब्बत का..इस दौर मे ऐसी मुहब्बत कौन करता है,सो हमारे लिए मुहब्बत का पन्ना इस जन्म के

लिए कोरा है...
ना पूछ मुझ से मेरी रज़ा क्या है..बस पूछ खुद से आज तेरी सजा क्या है..जमीं पे क्यों रुके हो,

आसमाँ पे महकना है बहुत मर्ज़ी है मेरी..कदमो मे फूल मेरे बिछा,दर्द की इन्तिहाँ से गुजरी हू अभी..

खलल ना डाल मेरी खुशियों मे,कुदरत की मर्ज़ी अब साथ है मेरे..दुनियाँ को बहुत पीछे छोड़ कर इस

दुनियाँ मे आए है..जहाँ सकून की तलाश ज़िंदगी है मेरी...उठक-पटक से भरा जीवन मेरा,कागज़ के

पन्नो पे लिखा जाए गा अब नाम मेरा..
क्यों कहे ज़िंदगी तुझ से नाराज़ है..क्यों कहे किसी बात से अनजान है..यह राहें-वफ़ा जो पास पास

है,यह खुशबुओं के मेले रूह के नज़दीक है..क्यों कहे तुझ से कि जीना भूल गए है..नादान है मासूम

है,पर चारों और से खबरदार है..कोई कुछ भी क्यों ना कहे,अपनी ही धुन मे अब बहने को तैयार है..

खुल रही है राहें,मिल रही है साँसे..कुदरत का करम जब साथ है तो यही कहे गे,ज़िंदगी तुझ से अब

नाराज़ नहीं है...
वादियों का असर कुछ ऐसा हुआ हम खुद से बेखबर हो गए..रोना-धोना किस के लिए करे,जब किसी

के लिए बेक़दर हो गए..कलम ने दिया सहारा हम को और हम इन की गहराई मे सिमट गए..अब

लिखते है मुस्कान को साथ लिए,बेशक लिखे मुहब्बत या फिर जुदाई..बोया बीज प्यार का खुद मे,

खुद को पाया खुद मे बन के...खुद ही कृष्णा खुद ही राधा,प्यार प्यार का अलौकिक वादा..रूह को

कब से बांध लिया,सुबह रात तक थाम लिया..अब ना तन्हाई है,ना कोई इंतज़ार है..बेकद्री का जख्म

लिए,खुद ही खुद मे जीते है..

Thursday 10 October 2019

गाथा राधा-कृष्णा की पढ़ते पढ़ते हम उस अलौकिक प्यार मे खो गए..उस प्यार की क्या मिसाल दे

हम तो उन की प्रेम कहानी मे बस गए..इतना बसे कि भूल गए,यह दुनियाँ उस लोक से परे है बहुत

परे..यहाँ इतने अलौकिक प्रेम की कदर कहाँ होती है..कोई राधा यहाँ रूठी हो तो कृष्ण को उस को

मनाने की फुर्सत ही कहाँ होती है..दौलत कमानी है,रुतबा बनाना है..गरूर भरा है जिस मे इतना वो 

कृष्ण कहाँ होगा..यहाँ राधा मर भी जाए तो भी कृष्ण को उस की कदर का एहसास तक ना होगा..
ऐ जश्ने-बहारे ज़िंदगी,आज तुझी पे हम कुर्बान हो गए..पाके-मुहब्बत को समेटा दिल मे और लफ्ज़ो

की दुनियाँ मे आ आए..क्या खोया क्या पाया,दर्द को भीतर ही समाए मुहब्बत को बिखेरने ,दुनियाँ को

सन्देश देने सब से पहले आ गए..खुद से प्यार अब और करने लगे...राधा-कृष्ण को याद करते करते

उन की प्रेम-गाथा लिखने फिर अपने पन्नो पे आ गए..ख़ुशी ख़ुशी सब कुर्बान किया और आंसू उन्ही

वादियों मे छोड़ आए...आज प्यार की परिभाषा तो वही है,पर परीक्षा देने फिर पन्नो पे निकल आए...
नाज़ करते है अपनी कलम पे,जो हर जगह हर कदम साथ मेरे चलती है..लिखे चाहे सुख लिखे चाहे

दुःख,लिखे बेशक मुहब्बत या लिखे दर्द का गहरा पैमाना..इस का वादा है मुझ से,साथ कभी ना छोड़े

गे..कितने लफ्ज़ लिख डाले हम ने,कितने पन्ने भर डाले हम ने..कभी साथ ना छोड़ा इस ने...बहुत

दूर तक चलना है मुझ को,बहुत बहुत कुछ लिखना है मुझ को..आसमां को छूना है मुझ को,बेशक

साथ कोई भी छोड़े..कलम साथ जब है मेरे,दुआ साथ है अब भी मेरे..फिर क्यों डरना,नाज़ करते है

कलम हम तुझ पे..
मुहब्बत को सींचे गे तब तल्क,जब तल्क साँसे ना निकल जाए..इबादत करे गे उसी मुहब्बत की,जो

पहली बार हुई और हज़ारो सवाल छोड़ गई...हर सवाल का जवाब उसी खुदा से मांगे गे,जब उस ने

करम किया था मुहब्बत का वरदान देने का..सोचते है वरदान गर खुदा का था तो हज़ारो सवाल किस

लिए...समझने के लिए जब कुछ ना बचा,तो इबादत करे गे उसी मुहब्बत की जो पहली बार हुई...
टूटे तारे की कसम,मुहब्बत को मुहब्बत मान कर ताउम्र निभा दे गे...ना कभी रूबरू होंगे तुझ से,ना

गुफ्तगू कभी होगी..मुहब्बत का एक ही कायदा है,निभाओ तो दिल-रूह से..बेरुखी कब तक सहे गे और

बेवफाई तो बिलकुल ना सहे गे...तेरे सिवा किसी और को ना देखे गे,मरते मर जाए गे पर हाथ से खुद

को,किसी को छूने भी ना दे गे..तेरा कायदा मुहब्बत का..मुझ को तो पता नहीं...हम ने आज़ाद किया

तुम को कि तेरी बेवफाई सहना मेरे बस की बात नहीं..तू किसी और का हो,कोई तेरा हो..यह सहना मेरे

लिए मुमकिन ही नहीं..
हवस ही गर प्यार है तो यक़ीनन इस दुनिया मे बहुत प्यार है..इश्क गर रूह से है तो यक़ीनन यह

दौलत का भण्डार है..कितने होंगे जो सिर्फ रुहे-इश्क करते होंगे..अक्सर जिस्म की आड़ मे प्यार को

प्यार नाम दिया जाता है..आज तू है तो कल कोई और होगा,जिस्म की आग दहकने का नाम प्यार

होगा..प्यार सिर्फ एक एहसास है,जो जुड़ता है बस रूह से और सदियों रहता है सिर्फ उसी रूह से...

Wednesday 9 October 2019

लफ्ज़ो को चुना उन लफ्ज़ो के लिए,जो सब से करीब हमारे थे...सपनो से जुड़े,अपनों से जुड़े..कभी

लिख लिख के खुद पे कहर ढाते रहे..लब कभी इन्हो ने हमारे सिले,थरथरा कर खुद ही खुद पे मिटे..

नाम ज़माने मे हासिल करने के लिए,यह साथ हमारे साथ चले..चुन चुन के कितना इन को लिखे,

यह सभी तो हमारे करीब रहे...लाड-दुलार जब भी इन पे जयदा आए,ख़ामोशी से पढ़ लेते है इन को..

फिर कोई और कुछ याद ना आए...
अल्हड़पन से भरा वो बचपन का प्यार तेरा,आज भी कभी कभी याद आ जाता है...मेरे घर के आंगन मे

तेरा अपनी साइकिल से चले आना,टिंग टिंग की आवाज़ से सुबह सुबह मुझ को जगाना..मेरी नींद मे

खलल डाल मुस्कुरा कर वापिस घर अपने लौट जाना..घर की छत से मुझ को मासूम इशारे देना,गली

के नुक्कड़ पे मेरे इंतज़ार मे घंटो खड़े रहना..आज भी नहीं भूले तेरा वो अल्हड़पन,वो मासूम सा

बचपन..अब कहाँ मिलती है ऐसी मासूमियत,जो बरसो बाद भी याद दिला दे अपना बचपन...

Tuesday 8 October 2019

हर बात पे रो दे,ऐसे तो अब नहीं है हम..मुस्कुरा दे जो अपने आप पे,बला के खुद्दार है हम..कभी

लिखा मुहब्बत पे,कभी लिखा बगावत पे तो कभी खुद पे चार लफ्ज़ लिख दिए...दुनियाँ समझी

हम को दीवाना,पर हम तो बस आसमाँ मे बेखौफ उड़ दिए..अब गिरे धरा पे या छू ले आसमाँ को,

यह कुदरत की मर्ज़ी होगी...पर लिखे गे तो सिर्फ मुहब्बत को,दुनियाँ को इक पैगाम देने के लिए..

मुहब्बत ही तो है जो जोड़ती है दिलो को,मुहब्बत ही तो है जो पहुँचती है ज़न्नत तक..समझ समझ

की बात है,इरादा गर नेक है तो मुहब्बत दुआ है..इरादा गर पाप है तो मुहब्बत ख़ाक है...

Saturday 5 October 2019

ख़ामोशी हमारी कितनी गहरी होगी,इस को तुम कभी ना समझ पाओ गे...तेरे झूठ की खबर कुछ

कुछ पहले थी मगर बदल दे गे तुझ को,ऐसा गुमा खुद पे था...मुहब्बत का कोई वादा तुझ से ना

माँगा था,खुद पे यकीं बहुत जयदा था...उसी यक़ीं पे खुद को संभाले है,वरना तूने तो झूठ का साथ

अब तक ना छोड़ा है..ज़िंदगी मे तेरी किस किस का आना-जाना है,पहले जाना होता तो पास तेरे ना

आते...खड़े है आज भी उसी मोड़ पे,जहां से तेरी राहें जुदा हो चुकी है मुझी से...तड़प अब कितनीं गहरी

तेरी होगी,यह तुम भी ना समझ पाओ गे..
अब किस बात का रोना जब दिल ख़ाली ख़ाली है..मुहब्बत के निशाँ है मौजूद अब भी,दुनियाँ को पाक

मुहब्बत की राह दिखाने के लिए..हर मुहब्बत नाकामयाब हो ऐसा भी नहीं होता..जहां दोनों वफ़ा करे

वहां इश्के-दास्ताँ मुकम्मल होता है..दूर तक जाने के लिए इश्के-वफ़ा बेहद जरुरी है..सिर्फ कह देने भर

से रिश्ता उड़ान नहीं भरता..तू नहीं अब और सही,इस तर्क पे प्यार कहाँ टिकता है..चोरी हो या चुपके

से ,हवा बेवफाई की बहुत दूर तक भी आ जाती है..आज़ाद किया हम ने तुम को,मुहब्बत आज भी

हमारे लिए इबादत का इक खालिस सिक्का है..

Friday 4 October 2019

सीधे सीधे बेइज़्ज़त किया होता तो अफ़सोस ना होता..दूर जाना था चले जाते,किस ने रोका था...कोई

बंदिश कभी रखी नहीं हम ने,कोई गिला भी नहीं किया हम ने..पर यू चुपके से हमी को अपनी ज़िंदगी

से रुखसत कर देना,इस को बेवफाई ही कहते है..हिम्मत होती गर तो सर उठा कर साथ छोड़ा होता..

पर हम भी गज़ब है..मुहब्बत को आज भी लिखे गे,दुनियां के लिए..इबादत मरते दम तक करे गे,उसी

पाक मुहब्बत के लिए..एतबार तुझ पे ख़तम हुआ है,मुहब्बत पे नहीं..पहली सांस से जो हुई थी शुरू,वो

लिखे गी मुहब्बत को अपनी आखिरी सांस तल्क़..यही है हम,सब से अलग सब से जुदा...
हसरतों को यू ना दफ़न कर कि ज़िंदगी बहुत बची अभी बाकी है...दौलत शोहरत कमाने के लिए,वक़्त

की धार अभी काफी है..अँधा-धुंध की इस दौड़ मे कितने अपने पीछे छूट जाए गे..ना भरोसा कर उन

सब पे,कौन साथ देने तेरे साथ आए गे...ख्वाइशों का क्या है,हर सांस के साथ बढ़ती है...जो खुद पे

काबू रखे,ज़िंदगी अक्सर वही बसती है...धान के खेत मे मुहब्बत जो रचती है,वो भला कमरे की बंद

दीवारों मे कहां टिकती है...इसलिए तो कहते है,हसरतों को यू ना दफ़न कर...ज़िंदगी अभी बाकी है...

सीप जब मोती बन कर ढली,कुदरत का एक गज़ब करिश्मा बनी..गहराई की सतह मापी कहां गई,

जब गहराई खुद मोती से बनी..ना थी चमक-दमक ना कोई चकाचौंध,खामोश बहुत थी सरल सरल..

सहज सहज....उजाले सब को देते देते,खुद कंचन से हीरा बनी.. महकता जीवन सब को दे कर,वो

ज़न्नत की महारानी बनी..दुनिया समझी परियो की रानी,पर वो थी बस सरल सरल-सहज सहज..

सब को जीवन देने वाली,गज़ब गज़ब,सब से अलग...

Thursday 3 October 2019

मुहब्बत जब भी बेवफा होती है,ज़िंदगी वही खामोश हो जाती है...तलाश जब कोई नए साथी की होती

है,मुहब्बत वही दम तोड़ देती है..कहानी फिर दुबारा कहां बनती है,जब साथ चलने के लिए यही

मुहब्बत बेरुख हो जाया करती है..समर्पण बार-बार नहीं होता,सज़दा करने के लिए दिल बार-बार

नहीं झुकता..ख़त्म जब सब होता है,आसमां रोता है यह जमीं टूट जाती है..आकाश से गिरता है सैलाब

इतना कि सांस जो टूटी फिर कभी लौट के नहीं आती है... 
शक्लों-सूरत और जिस्म से क्या लेना देना है...मुहब्बत को तो रूह मे ही फ़ना होना है..यह शक्ल यह

जिस्म पाक मुहब्बत के मायनों मे कहां आते है..जज्बातो को जगह देने के लिए अक्सर दिल ही सामने

आया करते है...दिल के धड़कनें से दिल आवाज़ सुना करते है..जिस्म का प्यार यक़ीनन हवस का नाम

होता है..जो मिट जाना है,वो पाक कहां होना है..रूह तो सदियों से साथ चला करती है..साथी साथ चले

बेशक ना चले..रूह सिर्फ रूह को तलाश कर,उस को इबादत मे ढाल लिया करती है...
दर्द मे आप भी है,दर्द मे हम भी है...भूल किसी से कुछ नहीं हुई लेकिन बेखबर अपने आप से हम दोनों

ही है...दिन मे रोते नहीं,रात भर सोते नहीं..करवटें जितनी भी ले,तुझे याद करते थकते नहीं..चाँद भी

कोई इशारा देता नहीं,खुद को ढांप कर बादलों से हम को कुछ जताता नहीं..सूरज अब तपता नहीं,बस

भेज इन भरे बादलों को अब हम को बहकाता नहीं..जानता है वो,दर्द मे आप भी है दर्द मे हम भी है...
चल रहा है मौसम पतझड़ का पर बहार गुलशन मे कायम है..तिनका-तिनका बेशक आर-पार होता

रहे लेकिन फूल फिर भी मुस्कराहट पे कायम है..कांटे कब तक चुभे गे,सरहद पार बस होने को है...

मजबूती जड़ तक है इतनी गहरी,आंधी बेशुमार भी आए वो जगह से अपनी हिल नहीं सकती..क्या

कीजिए फूल का, जब माली की मर्ज़ी जुडी है फूल से..महक से लबालब भरा है फूल कि माली की राह

नज़दीक आने को है...

Wednesday 2 October 2019

''''आदि भी तुम अनंत भी तुम..तुम ही तुम बस तुम ही तुम''''--स्वीकार कर लहर समंदर मे समा

गई..किनारे-किनारे चलती रही सदियों तल्क़,अंत उसी मे समा गई..जान उस के प्यार को समंदर

ने लहर को अपना लिया..जो भरा था खुद नीर से,एक आंसू उस के भी आ गया..लहर-समंदर अब

साथ है,बेशक कितनी और लहरे उन दोनों के आस-पास है..वफ़ा दोनों मे है,जीने-मरने के वादे भी

कुछ खास है...'''आदि भी तुम अनंत भी तुम..तुम ही तुम बस तुम ही तुम''''
वल्लाह..इन पन्नो ने आज लहरा कर कहा मुझ से,मुहब्बत हो गई हम को आप से...क्या करे आप

जो लिखते है,फ़िदा हम आप पे हो जाते है..हम मुस्कुरा दिए..''ध्यान से सुनो जरा..गलतफहमी मे

ना रहो जरा..ना लिखते है तुम्हारे लिए,ना लिखते है हमारे लिए..मुहब्बत को हम लिखते है,इस

मुहब्बत को आबाद करने के लिए..पुश्त दर पुश्त पढ़े गी दास्तां मुहब्बत की..इश्क फिर ढूंढ ले गा

अपने हुस्ने-राह को,और यह हुस्न फिर होगा फ़ना अपने ही इश्क की पनाह मे''...



खवाबों का प्यार है हकीकत का नहीं...कितना पाक है,खबर मुझ को भी नहीं...बदलता है रूप हर

बार यू ही..कभी कृष्ण हो तुम राधा होती हू कभी..शिव बन साथ होते हो मेरे,पार्वती बन साथ हमेशा

रहती हू कभी...तेरे थकते कदम को सहारा देने के लिए,तुझे हर बात याद दिलाने के लिए.साए की

तरह बिलकुल साथ होती हू कभी..दर्द और विरह के बादल हमेशा कहां रहते है..जो तुझे आसमां की

बुलंदियों तक पंहुचा दे,यह प्यार खवाबों का कुछ भी कर सकता है...

Tuesday 1 October 2019

राहें पथरीली हो या घने बादल बरसते रहे..तुम साथ रहो गे तो डर किस बात का,जब साथ तमाम

सितारे हमारे हमसफ़र हमनवां बने...धूप-छाँव होगी कभी..कभी तू उलझे गा मुझ से बिन बात ही

सही..रूठूँ गी जब कभी,बस जल्दी से मना लेना तू मुझ को कभी..वादा ना करे गे कोई इक दूजे से

कभी...ज़िंदगी बस हंसती रहे हम दोनों पे यूं ही..साथ चले है सदियों तक के लिए,बिछुड़ जाए भले

फिर से जन्म लेने के लिए कभी...
छुआ नहीं,देखा नहीं ..मिले भी नहीं कभी...रूह ने बस रूह को पुकारा और प्यार खुद-ब-खुद हो गया..

दर्द की इंतिहा हुई इतनी कि रिश्ता इक पावन सा जुड़ गया...इबादत की घड़ियों मे जो पुकारा उस को

बून्द भर जल की तरह वो मुझ मे शामिल हो गया..इज़हारे-इश्क किया हम ने सामने खुदा के,और

पाक प्यार हमारा हो गया...कोई क्या कहता रहे या क्या ना कहे,जब खुद खुदा ने स्वीकार हम को कर

लिया...
अजी सुनिए जरा,दिल हमारा आप के पास है..संभाल के रखिए जनाब..तेज़ी से चल रहे है आजकल

आप के कदम,ऐसा ना हो कही राह मे फिसल जाए आप...खूबसूरत चेहरे बहुत मिले गे आप को,जी

लुभाने के लिए..करीब भी आना चाहे गे आप के,आप से आप को अलूफ करने के लिए...यह बात और

है मुहब्बत की मिसाल हम जैसी...कोई ना होगी..ख्याल रखिए,यह बात दिल की है जो हमारे-तुम्हारे

बीच ही होगी..बेवफाई ना कीजिए कभी हम से जनाब,मर जाए गे बिन आप के..ख्याल रखिए जनाब..
कहा माना उस ने मेरा और पाँव हमारे थिरक गए...यू लगा जैसे आसमाँ मे हम उड़ गए...जी करता

है आज खुद को खूब सँवारे,निखारे इतना कि होश उन के उड़ा दे...दिन बेशक चल रहे है जुदाई के,

सांस लेने की फुर्सत कहाँ है मशगूल है अपनी तन्हाई मे...वादा कोई नहीं किया लेकिन फासला कम

हुआ कहाँ  है..वो मुझ मे है,मैं उस मे हू,कहने को साथ कोई नहीं है...बहार दोनों के पास है,बेशक दिन

चल रहे है जुदाई के...
दूरियां गर प्यार को मिटा सकती तो लोग प्यार भला क्यों करते...जुदाई गर बार-बार राह मे आती

रहती तो क्या वफ़ा मिट जाती..गुफ्तगू का सिलसिला भी कभी टूट जाए, उम्मीदें ख़त्म नहीं होती..

आंख बंद करने से जो दिखाई दे,दिल पे हाथ रखे तो धड़कन भी उसी की सुनाई दे..उस की थकान

से जब खुद का जिस्म बोझिल हो जाए,यक़ीनन प्यार अभी कायम है..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...