उस के प्यार मे वो इक ग़ज़ल बन गई...प्यार का कमाल रहा इतना कि बिन ब्याहे उस की दुल्हन बन
गई...हसरतें थी असीमित उस की.तो वो उसी के लिए बिस्तर पे, उसी की तवायफ बन गई...क्या था
सही और क्या था गल्त,जाने बिना उस के जीवन की रौशनी बन गई...वो बिगड़ैल था..घमंड मे चूर-चूर
था...बनू गी उसी की हमसफ़र,यह इरादा उस का बहुत मजबूत था...सुधारना उस को,उस का धर्म बन
गया...बिना किसी वादे उस को सिर्फ अपना बना लेना,उस को कितनी जगह अपना इम्तिहान भी देना
पड़ा...कोशिशें कामयाब थी..वो बिगड़ैल अब उसी का सुधरा प्यार है...कौन कहता है,प्यार मे ताकत
नहीं होती..गर नहीं होती तो वो आज सिर्फ और सिर्फ उसी का ना होता...