Thursday 8 October 2020

 उस की हंसी बहुत सुंदर थी.....

उस का दिल उस से भी सुंदर था...

वो इस दुनियां से परे दूजे लोक की थी..

किसी ने पूछा उस से,कैसी हो...

वो बोली,कुदरत के रंग-रूप जैसी हू...

पूछा,कुदरत को कैसे जानती हो...

फिर वो हंसी..कुदरत तो मेरा साथी है...

बेगाना नहीं,मेरे बालपन से जयदा सदियों का साथी है...

पूछा फिर उस ने,कुदरत से कोई शिकायत तुम को है...

वो फिर से हंसी..शिकायत का मौका तो उस ने दिया नहीं...

खिलखिलाती बोली वो इस बार...

तुम इंसा बहुत दगाबाज़ हो..

लालच के भार से भरे हो....

ईर्ष्या जलन मे सब से आगे हो...

दौलत की खातिर बिक जाते हो...

दौलत के लिए जान भी दे देते हो...

शिकायत मुझे कुदरत से नहीं...

तुम सब इंसानो से है....

प्यार के आगे नहीं बिकते हो...

प्यार का मोल भी नहीं समझते हो...

तुम से अच्छे जीव-जंतु है..

जो प्यार समझते है...

दया की भाषा समझते है....

पूछा उस ने डरते डरते,तुम को इस दुनियां से क्या लेना है....

दो बून्द बहे अब उस के नैनो से,कहा.....

यह दुनियां मुझे क्या दे सकती है..

जिस के पास ईमान नहीं,ईश्वर का धयान नहीं..

खुदा की इबादत के लिए वक़्त नहीं...

ऐसी दुनियां मुझ को क्यों दे सकती है....

वो फिर चली गई,आसमां के सार मे विलीन हो गई...

मैं इंतज़ार उस का रोज़ करता हू.....पर वो रोज़ अब आता क्यों नहीं..............



दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...