Tuesday 9 October 2018

अक्सर गुलाबों से जैसे,तेरी ही महक आती है...पाँव धरते है जहा,तेरे एहसास भर से मेरी दुनिया ही

संवर जाती है...मुस्कुराने की वजह जानने के लिए,क्यों लोग बैचैन रहते है....क्यों बताएं उन्हें कि

सिर्फ तेरे छूने भर से,मेरी इन आँखों मे चमक आ जाती है....रुखसार से जुल्फे उठाने की तेरी यह

अदा,हम तो जैसे पिघले तो बस पिघल ही जाते है....


Monday 8 October 2018

कोई रस्म नहीं,कोई रिवाज़ भी नहीं..बस माँ--बाबा की हिदायतों को मानते मानते परवरदिगार के 

सज़दे मे झुकते चले गए...उम्मीदे ही नहीं,शिकायते भी नहीं...जो दिया,जो मिला..उस के मुताबिक

कुदरत का शुक्रिया अदा करते चले गए...चाहते भी कुछ नहीं,ख्वाईशो का कोई मायने ही नहीं..कुछ

गिला उस मालिक से भी नहीं,कोई उम्मीद उन के बन्दों से भी नहीं...यह सुबह खुशगवार है,हर दिन

को उसी का दिन मान कर....बस सज़दे मे झुकते चले गए...

Wednesday 3 October 2018

तुम्हे गुज़रे ज़माना बीत गया माँ..यह दुनिया कहती है....कही किसी की यादो मे हो,कही किसी के

खवाबो मे हो...बेशक साथ नहीं पाया तेरा माँ,एक लम्बे अरसे तक..पर जितना भी पाया,तेरी बातो से

तुझ को इतना जाना कि तेरे गुस्से मे भी तेरी ममता को मैंने पाया...तेरी हर कही नसीहत आज भी

अपने पल्लू से बांधे हू...लोग कहते है कि मै दकियानूसी हू...पर माँ,तेरी सारी नसीहते अगर आज

भी दकियानूसी है,तो मै आज भी खुशकिस्मत हू,कि तुम मेरी माँ हो...तुम साथ आज भी हो,हर जनम

साथ ही रहना...

दर्द को छेड़ो गे तो वो ज़ख़्मी और हो जाए गा...रोने की वजह पूछो गे बरबस यह दिल और बरस जाए

गा...रातो के अंधेरो मे यह सिसकियां,तेज़ गहराया जाती है...तुझे याद कर के यह सारे ज़हान को ही

भूल जाया करती है....क्या कमी रह गई जो बादलों की गड़गड़ाहट से,आज भी डर जाया करते है....

बारिश की हल्की हल्की बूंदे..जब जब ठहरती है चेहरे पे...हम क्यों उदास हो जाया करते है...
दुनिया की भीड़ मे रहे तो भी दूर रहे....महफ़िलो मे जो गए कभी तो अफसानों से भी दूर रहे...जवाब

तलब करता रहा यह ज़माना, मगर ख़ामोशी का लबादा ओढे  हुए हर सवाल से दूर रहे...बेकार का वोह

तमाशा और झूठी हंसी मे लिपटा हर इंसान एक अजीब सवाल लगा...घुटन के उस माहौल मे हर कोई

बेगाना ही लगा...यह दुनिया रास नहीं आई हम को,इस भीड़ से परे बहुत दूर,बहुत दूर चले गए...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...