Wednesday 31 July 2019

चलते रहे ताउम्र अकेले तो आज सहारे या साथ की जरुरत क्यों...सिखाया सभी को अकेले चलना तो

खुद के लिए आज इतने अश्क क्यों...लगता है आँखों मे भरा है कितना पानी...शायद सावन का मौसम

इन मे भी है...यू कहां रोते है हम,जब सब को हंसाने का वादा सब से किया करते है हम...अपनी मुस्कान

से दिलो को जीता है,फिर आज खुद से खफा होना क्यों...
कांटे तो उलझने डालते रहे राहो मे मेरी...पग पग चुभते रहे पावों मे मेरी..कभी जुदा किया अपनों से,

तो कभी परायो से दर्द उधार देते रहे..खून जितना रिसा इन घावों से,हम उतना अपने पांव धरती पे

जमाते रहे...हंसी दे कर दूजो को,हम अपना गम सब से छुपाते ही रहे..बहुत हुआ..कह दिया अब इन्ही

कांटो से,आओ अब तो दोस्ती कर लो हम से..तुम्हारे चुभने के लिए अब जिस्म मे कही जगह नहीं मेरे..
फैसले पे ही फैसला रुका है,तेरी रजामंदी से...ज़िंदगी क्या दे रही है चुनौती एक बार फिर से...चुनौती

भी कुछ ऐसी,बंधे है फ़र्ज़ और रुतबे के ज़ाल मे...दौलत को तो एक बार सिरे से नकार भी दे,दूरी का 

वो नासूर झेलना अब बस मे नहीं मेरे...जाना है इस पार या फिर उस पार,जज्ब करना है खुद को खुद

ही के साथ...फैसला ले गे जरूर मगर,तेरी रजामंदी से.. 

Tuesday 30 July 2019

बहुत घनेरे बादल है आज..कितना गरज़ कर बरसे गे..कुछ कुछ कहता है यह मौसम,साथ तेरे को आज

तरसे गे..बरसने को है मोटी मोटी बूंदे,पूरा दिन ही बरसे गी..तेरा शहर है जितना भीगा,उतना तन-मन

मेरा भीगा है...आँचल है सारा ही भीगा,गेसुओँ ने कांधे पे डेरा डाला है..पायल कर रही रुनझुन रुनझुन,

कंगना हाथो पे भारी है..लौट के आज़ा अब तो साजन,यह मौसम कुछ कुछ कहता है...
दोस्तों..सावन के मौसम मे..आप की इस शायरा की...कुछ अनमोल प्रस्तुति..कैसी लगी ? अपनी प्रतिक्रिया लिखना मत भूलिए गा...शुक्रिया..आभार..
यादों का यह सिलसिला...कब कहां ख़त्म होता है..प्यार की भीगी चाशनी मे नशा याद का होता है..

दिल पे हाथ रखा तो दिल भी धक् धक् करता है..सोचा यह तो है पास तेरे,फिर यह क्यों धड़कता है..

फिर इसी याद ने याद दिलाया,दिल तेरा तो बदल गया..यह जो पास धड़क रहा,दिल तो उस साजन

का है..अदला-बदली के मौसम मे,प्यार हुआ बस प्यार हुआ...

Monday 29 July 2019

शब्दों की पाकीज़गी का यह जादू..बिखरे है कभी अश्क़ो की तरह,छा गए कभी किसी पे मुहब्बत की

तरह...पावन मन जिस का रहा, इन शब्दों से वो प्यार सीख़ गया...दिल जब जब दर्द से भरा,इन्ही

शब्दों से उबर गया..खोना-पाना क्या होता है,जज्बातो का सिहर जाना कैसा होता है..मेरे शब्द सब

से कुछ कहते,समझे ना समझे...पर सब के दिल को बरबस छू लेते ...
कभी यह ज़िंदगी मज़ाक ही ना बन के रह जाए,इतना ख्याल जरूर रखना...परदे मे रहना अच्छा है,

मगर तस्वीर सामने तो आए...मासूम से सपने कभी कभी,यू ही इंतज़ार करते करते टूट जाया करते

है...अधखिले फूल अचानक से मुरझा भी जाया करते है...सावन फिर कितना भी क्यों ना बरसे,फूल

ज़मीं मे समां जाया करते है...कितना समझाए कि जो अँधेरे मे फिर गुम हो जाए,वो रोशनी के लिए

फिर बाहर नहीं आया करते..
झूठ और सच की जंग मे,हम तेरे पूरे सच का इंतज़ार करे गे...जो सच मे हमारा अपना है,उस को

यक़ीनन एक दिन पहचान ले गे...बहकावे इतने भी मत देना कि सच को जब जान ले गे,तब सच

मे तेरी ज़िंदगी से बेहद दूर चले जाए गे...पछतावे की आग मे कितना भी जलो गे,हम लौट के फिर

ना आए गे...मासूम है,मगर दीवाने इतने भी नहीं कि तेरे झूठ के साथ तुझ को निभा जाए गे..जितनी

ख़ुशी दी है तुझे ,हमारे गम मे उतना ही परेशां हमेशा के लिए हो जाओ गे..
मुहब्बत मे डूबी हुई वो तेरी नशीली आंखे...आवाज़ की वो खनक रूह मे हमारी डूबती हुई...कुछ नशा

हुआ तेरे प्यार का,कुछ गरूर हुआ अपने आप का..धरती पे चल रहे है ऐसे कि ज़िंदगी बदल रही हो

जैसे..कुछ वादे खुद से कर दिए,कुछ वादे बेहद ख़ामोशी से तुझ से भी कर दिए...तेरी यह चुप्पी अब

हम को भाने लगी है..कि इसी से ही तेरी मुहब्बत हमारे पास आने लगी है..
 बरस रहा है सावन आज आंगन मे मेरे...देख रहे है दूर से कुछ मासूमो को भीगते हुए...बचपन कितना

प्यारा होता है,बेखबर सब से खुद मे डूबा रहता है...उलझनों से परे,तेरे मेरे झगड़ो से परे..मिल कर फिर

एक हो जाता है...हम तो बैठे है कुछ सपनो की उड़ान लिए...गुनगुना रहे है कोई नगमा ख़ुशी से भरा..

क्या पता यह सावन कल हो,ना हो..पर यह नगमा याद दिलाए गा,यह मासूम और हमारे आज के सपने

की उड़ान का खूबसूरत सा यह  मंजर..

लय भी एक,ताल भी एक..सुर संगम पे आ कर ठहरा इक मधुर प्यारा सा गीत...कोई बोला है

यह कविता,कहा किसी ने लगती है यह इश्के-दास्तां..नज़र मे किसी के आया हुस्ने-बाला का इक

चेहरा...कुछ कुछ होता सुन कर तुझ को,पढते रहे तुझी को सारी रात..हम ने ख़ामोशी से तोडा इसी 

गीत का प्यारा सा राज़...गीत नहीं यह तो है शायर के खवाबो का नन्हा सा संसार...

Sunday 28 July 2019

दे कर तुझे हर वो ख़ुशी..भर के तेरा दामन दुआओं से सभी..इक दिन लौट जाए गे अपने खुदा के पास..

यादें जो मेरी कभी तुझे सताए तो,उन्ही खुशियों मे मुझे ढूंढ लेना..जो सिरे से आखिर तक हम तुझे दे

कर जाए गे..हम ने जो पाया तुझ से,उस का शुक्राना हर पल के हिसाब से ताउम्र देते जाए गे..जन्मो

का साथ कितना मिलता है,यह तो खुदा की मर्ज़ी है..ज़िंदा है जब तक,प्यार और विश्वास को हर पल

निभाते जाए गे..
प्यार की कीमत समझने के लिए,दिलो-दिमाग का खुलना जरुरी होता है..प्यार पे शक करना प्यार की

तौहीन होता है...खुल जाना प्यार मे इबादत का इक पाक रंग होता है..ज़नाज़ा तो उस प्यार का उठा

करता है जो हवस के नाम पे अपने साथी को लूटा करता है...कुर्बान होना या कुर्बानियां देना,क्या सब

को समझ आता है..शायद यह दुनिया बहुत बुरी है,जहा प्यार सिर्फ मकसद पूरा होने तक ही जरुरी माना

जाता है...
तेरे साथ है,तुझ से आगे नहीं..कदम हर अपना तेरे पीछे रखे गे,तेरी बेहतरी के लिए..तुझे सहारा नहीं

दे गे मगर,साथ चले गे तेरी बढ़ोतरी के लिए...कोई गरज़ नहीं तुझ से,बस तरक्की के रास्ते तेरे खुलते

रहे... यू ही महकाते रहे गे तेरा जीवन,तेरी ख़ुशी के लिए..दुनिया सदा झुकती रही हमारे कदमो मे,पर

हम सब के एहसानमंद रहे यह सोच के..कुदरत ने बनाया जिस मिट्टी से हमें,वो काम तो आई किसी

जरूरतमंद के लिए...
वो धीमे से तेरा मुस्कुरा देना..नन्ही सी बात पे घंटो मुझे हंसा देना..मेरे रोके से फिर भी ना रुकना,तू

जान है मेरी यह बोल कर मुझे और और नज़दीक ले आना...ज़न्नत का नशा कैसा होता है,यह तुझ से

मिल कर मैंने जाना है..बेजान तारो को बहा दिया इसी सावन मे,ले जा नदिया साथ अपने गर्दिश के

सितारों को..इसी मुस्कान के लिए हम दुआए माँगा करते थे..कबूल होगी ऐसे सोचा भी ना करते थे..
खामोशियां टूट चली है अब,गुफ्तगू की राह पे...वो करीब आ रहे है,मेरे मेहरबां बन के...मुलाकातों का

सिलसिला ना टूटे कभी,वो नज़र फेर ले हम से ऐसा ना होगा कभी...खुद पे बहुत यकीन है हम को,जान

की बाज़ी हर पल तैयार रहे गी उन के लिए..यूं तो नहीं कहते कि मुहब्बत लाजवाब होती है..जब आ जाए

निभाने पे,हर रस्म तोड़ जाती है..खुदा किसी को किसी से जुदा ना करे,गर करे तो साँसों को मद्देनज़र

रख के ही करे..
ख़्वाबों की दुनिया कितनी खूबसूरत होती है...जो चाहा हो दिल ने,वो आसानी से मान लेती है...ना डर हो

जहा ज़माने का,ना खौफ हो किसी के दूर जाने का...हज़ारो रंग जो भर दे जीवन मे,सपनो के महल रोज़

बनते रहे हर हसींन पल मे...खुद से प्यार होने लगे धीरे धीरे,खुद मे ही कोई आ जाए धीरे धीरे...सहेज के

रख ले किसी को अपने सीने मे,ताउम्र ना जाने दे रिश्ता बना ले बस अपने मे...
तू है नायाब सितारा आसमां का..मैं हू जर्रा छोटा सा इस धरती का..तेरे आसमां मे संग तेरे है,सारे

सितारे..मैं हू धरती पे खड़ा इक आवारा सा जर्रा...कहां छू पाउ गा तेरा दामन,भटक रहा सदियों से

मैं अकेला बेचारा..धरती आसमां कहां मिल सकते है..लाख कोशिश करे,नाकामयाब ही रहते है..जर्रा

तो आखिर जर्रा है,तेज़ हवाओ से बिखर जाए गा..मगर लुप्त होने से पहले,इक नज़र अपने आसमां को

देखना जरूर चाहे गा..

Saturday 27 July 2019

क्यों मन है आज कि इन पन्नो पे बिखर जाए...लिखे इतना,पता ना चले कि रात कब गुजर जाए...

राते जो अक्सर हम को आंसुओ का भरपूर खज़ाना देती आई है..कभी जो मन ना भी हो,फिर भी

जबरन रुलाती आई है...कभी पन्नो की स्याही उड़ेली इस ने ,तो कभी पन्नो को ही बर्बाद कर डाला..

चुपके से आज यही पन्ने कहते है,अलविदा कर दे आंसुओ को..प्यार बिखेर दे इन पे अपने जज्बातो के..

गजरा जब भी खुला,महक से दुनिया महक गई...खुशबू के डेरे ऐसे रहे,तन मन जैसे खिल से गए..

आंखे चमकी झिलमिल तारो जैसी,रोना जैसे भूल गए..खुद को देखा जब जब हम ने,आईना बोला

अब सजने की क्या जरुरत है...नूर तेरा अब कहता है,चाँद को अब तेरी जरुरत है..गरूर तोडा तूने

उस का,अब चांदनी को भी तेरे साथ की जरुरत है..
साफ़ कांच की तरह मन है तेरा..मासूम सा दिल जिस मे भरा है शुद्ध प्रेम का प्याला...जहान बहुत

बड़ा है,हर इंसान अपनी तरह का है..कुछ चेहरे देखे बेहद खूबसूरत,काया का भरमाया रूप भी देखा...

अहंकार भरा था इतना कि दुःख-संताप से नफरत का अँधेरा घिर आया..दौलत के नशे मे चूर अपने

मन का कालापन कहां नज़र आया..फिर भी यह दुनियां है कुदरत की,तेरे जैसा इक इंसान बनाया..

शीश नवाया हम ने उस पे,श्रद्धा से कुदरत को आदाब बजाया..
सावन को देखा आज बहुत नज़दीक से..महसूस किया बेहद करीब से...लोगो से सुना था गरज़ता है

जब सावन तो चीत्कार मच जाती है..सहम जाती है दुनियां,तबाही मच जाती है...कौन यह जाना कि

सावन की भी अपनी कोई मर्ज़ी है..किस ने माना कि उस को भी किसी की जरुरत है...सब ने चाहा कि

वो उन की मर्ज़ी से रहे,मन हो या नो हो वो बरसता ही रहे..सावन की मर्ज़ी को हम ने रखा सर-आँखों पे,

बरसा वो आज खुद के मन से,और हम ने बलाए ली उस की बेहद प्यार से...

Thursday 25 July 2019

वो इक हवा का झोका, जो तुझ को छू कर भी गुजर जाए..वो तेरी हर सांस,जो मुझे छू कर महक बन

जाए..तेरे साथ जुड़ा वो हर इंसान,मेरा भी नाता-रिश्ता बन जाए...प्यार की सीमा कितनी है,यह तुझे

कैसे समझा पाए गे..तू साथ है तब भी तू दूर है..तब भी.इन निगाहो की चिलमन तेरे इर्द-गिर्द ही तो

है..नींद मे है तब भी..सपनो मे है तब भी..और सुबह जब आंख खुले तो तेरे दरवाजे की दस्तक पे भी

मैं हू..अब यह ना पूछ कि प्यार की सीमा बता दे कितनी है...
चुन चुन के तेरा हर सपना तेरे इश्के-किताब मे रखे गे..बुन बुन के अपना हर सपना अपनी पूजा की

थाली मे रख दे गे...बहुत नाज़ुक है मेरे सपने,चिड़िया के मासूम पंखो की तरह..कभी ठेस ना लगाना कि

 फिर से बुन ना सके कभी...पूजा मे जो फूल रख दिया हम ने,बाबा की नज़रो मे है...वो संभाले गे किस

तरह,बाबा की मर्ज़ी पे है..

Wednesday 24 July 2019

मेरे सपनो की नगरी मे ''माँ ''तुम अक्सर आती रहती हो..मैं खुश हु तब भी तुम मुझे लाड दे जाती

हो..रो दू कभी किसी बात पर,क्यों समझाने आ जाती हो..बाबा ने जब जब जो समझाया,हम सब

करते आए है..ख़ुशी भरना हर उस जीवन मे,जिस से तेरा नाता हो..बदले मे कुछ मत लेना,मान बाबा

का रख लेना..''माँ'' तेरी लाडो,सपने मे तुम को आज पास बुलाती है..कुछ बाते कहनी है तुम से,बाबा को

जा कर तुम्हे बतलानी है...
नज़र का यह अनोखा अंदाज़ और फिर मौसम के कहर का बहकता सैलाब...क्या ले गया,क्या दे गया...

हिसाब-किताब क्या रखे,यादाशत पे तो जैसे ताला लग गया...जी चाहता है कर दे मौसम के हवाले

सारे पैगाम...खुशियों को बिखेरे इतना कि सहेजते सहेजते थक जाए वो हाथ...समंदर मे भर दे इतने

मोती कि निकाले वो जितनी बार,हमारी याद मे मुस्कुराए वो मोती देखे जितनी बार.... 
साँसों को बांधे रखना सिर्फ तेरे लिए...और वो कहे कि कर ले प्यार किसी और से,अपनी ख़ुशी के लिए..

तुझे हक़ है तू जिए अपनी मर्ज़ी के लिए..साथ मे कह देना यह भी,मुझे तेरी बहुत जरुरत है मेरे लिए ...

तेरे हर सितम को हंस कर सह जाए गे..प्यार कोई खेल नहीं,ज़िंदगी छोड़ने से पहले यह एहसास तुझे

दिला जाए गे...मजबूत बहुत है मगर,पत्थर तो नहीं आंसू गिराते है पर कुछ बताते नहीं,तेरे लिए...
आंखे बंद कर के बस आप बैठ जाइए..रास्ते हम खुद बनाए गे..सपनो का महल जो कल दिखाया था

आप को..बंद आँखों मे ही आप को दिखाए गे..आप की उम्मीदों से कभी जय्दा सकून आप पाए गे..

दिलकश है या जानलेवा,यह सब आप आंखे खुलने पे ही समझ पाए गे..कहने या बताने की अब और

जरुरत क्या,महल आप का ही है..हम तो सिर्फ दरबान बनने चले आए है...

Tuesday 23 July 2019

रुनझुन रुनझुन पायल मेरी,दे रही है साज़ ना जाने कितने आज...बरस रहा है सावन जरुरत से जय्दा

आज...सावन से पूछा क्या है आज कुछ खास...बरसा रहा है मीठा पानी,क्यों किस से मिलने की है

आस..बात उसी से करने हम पहुंचे सावन के पास..भिगोया तब उस ने ऐसा हम को खिल गई सूरत

बन गई बात..पायल मेरी खूब ही भीगी,खास बन गई आज की रात...
हसरतो की क्या मंशा है और तेरी चुप्पी के क्या कहने...रूहे-लिबास जो पहना है तूने,उस के वज़ूद

की जरुरत क्या है...धागे जो बांधे है बहुत इत्मीनान से तूने, खोले गा गाँठें भी तू, उतनी ही इत्मीनान

से..बंधन मे किस के साथ कौन बंधा,कुदरत ने खुद तय किया बहुत ही इत्मीनान से..हम जो अब सो

रहे है बहुत इत्मीनान से...चुप्पी हम हमारी होगी और तू तड़प जाए गा हमारे ही इम्तिहान से..

Monday 22 July 2019

हम थे नन्हा सा जर्रा,जिस को आप ने आसमान पे बिठा दिया...कुछ खास नहीं है हम मे,सौ बार

आप से कह दिया..सुनने को आप राज़ी ही नहीं,हम सिर्फ मामूली सा किरदार है...बस एक ही चीज़

जो हम मे है,कि हम दिल किसी का दुखाते नहीं..जुबान के सच्चे है,दिल मे कुछ छुपाते नहीं..बाबा के

लाडले है जो कह दिया,ताउम्र उस को निभाते भी है...
दूर दराज़ तक फैली है तेरी मुहब्बत की चादर..फिर भी क्यों पूछते हो मुझ से,दूर मुझ से कभी चले

तो ना जाओ गे...आसमां से आगे कोई और आसमां है,धरती के तले कौन सा और तला है...कितने

नादान हो जो यह भी नहीं समझते कि मेरी हद है कहां तक...तेरे नाम से जो शुरू होती हो,तेरे नाम

के साथ ख़त्म हो जाती हो...ऐसी है मुहब्बत मेरी,दूर दराज़ तक जो फैली हो ...
यह लफ्ज़,यह अल्फाज़ क्या कमाल है..कभी रुला देते है जाऱ जाऱ तो कभी ख़ुशी दे कर भी रुला देते

है...बरसो पुरानी यादो को रख सामने, दिल के टुकड़े टुकड़े कर देते है तो कभी उन्ही लम्हो से कुछ

खास लम्हे चुरा कर मुस्कुराने पे मजबूर कर देते है...वक़्त तो चलता है हमेशा अपनी चाल से,हम

नादान ही कुछ समझ ना पाते है...आ ज़िंदगी,तुझे फिर लगाते है गले,कि तुझे नाराज़ कर के हम

ज़न्नत की खुशियों को कहां प्यार कर पाते है..

Sunday 21 July 2019

जिक्र तेरा चला तो फिर भर आई आंखे...बरसो बाद खुली तेरी बाते तो हम क्यों रो पड़े..सोचते रहे

शायद अब तेरी यादो से बाहर आ चुके है...मगर शायद दिल का यह भ्रम है...''बरसो मे पैदा होती है

तेरे जैसी दुल्हन,कोई मेरी कमियों के साथ मुझे इतना निभा दे''..इन लफ्ज़ो के मायने फिर क्यों याद 

आ रहे है..खामोश कितना भी रहे,तेरी बातो को आज फिर क्यों दोहरा रहे है...
शाम तो शाम ही है....जो रोज़ आती है और चली भी जाती है..खूबसूरती का जामा पहने किसी को

नया रिश्ता भी दिलाती है..कोई इस से खफ़ा ना हो जाए,सौ बार रूमानी बरसात मे भिगोती भी है...

जीवन से बेज़ार इस शाम के आने पे खुद को,बेबस समझा करते है...जब मन को ना दे पाए कोई ख़ुशी

तो अक्सर शाम को दोष दिया करते है...यह शाम ही तो है,जो रात के आने से पहले,मुहब्बत के रंग

भी सज़ा दिया करती है....
नज़र का उस मोड़ तक जाना,जहा तेरी दुनिया का बसेरा होना...दूर खड़े हो कर तुझे देखना,पर तेरी

खुद की दुनिया को ना छूना...तू खुश है बस इसी एहसास से अँखियो को तेरे आँगन मे रखना और

फिर खुद की दुनिया मे लौट आना....यही अंखिया जो सुख मे तेरे हंस दे गी और तेरे दुखी होने से तेरे

दर्द को झट से पी ले गी..जब तक तू सोचे गा कि कौन सा गम तेरे पास आने को था,यह आंखे उसी

दम तेरा गम को खुद मे पी ले  गी...

Saturday 20 July 2019

दर्द की पराकाष्ठा को दर्शाती..मेरी यह शायरी,कितना आप सब के दिलो को छू लेती है...नहीं जानती..यह शायरा आप सभी का आभार,अभिनन्दन और शुक्रिया अदा करती है..और आप सभी की प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा करती है...शुक्रिया दोस्तों...
ज़ख़्म कभी अपनों ने दिए तो कभी बेगानो ने..ज़ख़्म जो कभी छोटे थे तो कभी गहरे थे..ख़ामोशी से

सब सहते रहे..तक़दीर ने जो लिखा ,उस को नियति मान भुगतान करते ही रहे..जो ज़ख़्म आज

किस्मत ने दिया,वह है बहुत ही गहरा..इतना इतना गहरा कि जो कभी भी ना भर पाए गा..फर्क अब

इतना है,सहने की सीमा अब पार हुई..अब तो यह मेरी चिता के साथ ही जल कर खाक हो जाये गा

ना अब फिर से जन्म लेने का इरादा है,ना भूले से इंसानो की दुनिया मे बसने का फिर कोई खवाब है...

Friday 19 July 2019

दे कर आज इसी ज़िंदगी को अर्ध-विराम अपने अंधेरो मे लौट आए है...आखिरी कोशिश कर के हम फिर

उसी दुनिया के हो गए है,जहा निष्पाप प्रेम के मासूम उजाले है..जो है इतने पाक-साफ़ कि लगता है कि

हमारे छूने भर से वो मैले हो जाए गे..माँ ठीक कहती थी यह दुनिया बुरी है,बहुत बुरी..तू यहाँ के लोगो

से कैसे निभा पाए गी...जो कहते है कुछ,करते है कुछ..आखिर मे किसी की बेबसी की हंसी उड़ा कर

खुद मुस्कुराया करते है...
इस आर या फिर उस पार...कहानी मुहब्बत की बस इतनी है...हां या फिर ना,इसी सवाल के जवाब पे

 मुहब्बत चलती है...साफ़ मन है तो सीधे सीधे दिल से हां ही निकलती है..ना दे फरेब धोखा किसी अपने

को,जो मुहब्बत के नाम पे कुर्बान होती है...साँसों का क्या है इन को तो किसी वक़्त भी रोका जा सकता

है..शर्त सिर्फ इतनी सी है कि जीने के लिए अपने मासूम दिल को कैसे मनाया जा सकता है...
कागज़ के यह पन्ने मिल जाते है दुकानों पे अक्सर...दास्तानें-मुहब्बत का दिल को हिला देने वाला वो

फलसफा,जिस ने इन पन्नो पे लिखा..समझने के लिए सिर्फ वही समझा,जो मुहब्बत का दावेदार रहा...

कौन जाना कौन समझा कि मुहब्बत कैसी होती है..जो एक पल मे खिले,ताउम्र साँसों मे बसे...कोई पास

रह कर भी ना समझ पाया तो कोई दूर से इस को खेल समझता ही रहा..कांच के शीशे सी होती है यह

मुहब्बत,जिस मे झूठ का इक कण भी नहीं होता..मुहब्बत का दम भरने वालो,झूठ पे कभी मुहब्बत

का महल खड़ा भी नहीं होता...
वो नज़र का धोखा था या झूठी तारीफों का फरेब...नहीं समझ सके बेख्याली सपने के महल...जीवन

दे चुके उन मासूमो के नाम,जो सिर्फ दो रोटी पाने के लिए हम को सच्चा प्यार किया करते है..रंग-रूप

से परे वो तो सिर्फ हमारे हाथो का स्पर्श महसूस किया करते है..दे कर उन के लबो पे हंसी हम तो जैसे

ज़िंदा हो जाते है..भूल जाते है उन इंसानो को,जो सिर्फ दग़ा ही दिया करते है...
सच छुपाया उस ने अपना तो हम को खो दिया उस ने...उम्रदराज़ कह कर हमारा मज़ाक उड़ा दिया उस ने..वक़्त

कहां रुके गा तेरे लिए भी..जो मुझ पे दिया ताना वही तेरे साथ होगा कभी भी..हम तो सिर्फ खुदा की

रहमतो पे भरोसा करते है..लोग बहुत बुरे है इस दुनिया मे,प्यार के नाम पर खेल खेला करते है..सब

कहते है कि हमारी जुबान बहुत सच्ची है..दिल दुखाया है मेरा तूने,इस की सजा तो पक्की है..

Wednesday 17 July 2019

बहुत फक्र से बताते है पानी का राज़..भगवान् के चरणों से छुआ जल है यह,तेरे मन की मुराद हो पूरी

यकीं दिलाते है तुझे..हम ठहरे नटखट आसानी से बात उन की कहा मान जाये गे...जब मन ही शुद्ध

हो गंगाजल की तरह,इस जल से कैसे कुछ कह पाए गे...हाथ लगा के अपना,तेरा जल तुझ को ही

लौटाए गे..भर दिया अब इस मे शुद्ध प्रेम अपना..फक्र से इस पानी का राज़ अपनी तरफ से तुझे हम

भी बताये गे...
i
सावन की यह झड़ी,कहां कम कर रही है दिल की लगी..दिल तो दिल है,समझे से कहां समझे गा अभी..

भिगो कर आंचल अपना,कह रहा है कोई.. भीग आज तू इतना..सम्भले से ना संभल पाए तू...सैलाब की

तेज़ धारा तुझे बहा कर ले आए पास मेरे...तुझे देखता ही रहू और कहू बरखा से,अपने सागर से थोड़ा

नीर मुझे दे दे..जब मन हो भीगूँ संग साजन के,कोई देखे ना हमे दिल का प्यार यू ही बरसता ही रहे..

Tuesday 16 July 2019

दो जोड़ी आँखों का सदा तेरे पीछे रहना..तू मुकम्मल रहे, हर बार मालिक से यही कहना...दिल बेशक

मेरा तूने ही दुखाया हर बार और कितनी बार...वजह कुछ भी रही होगी,जानता है तू भी हर बार...दिन

सदा एक से नहीं रहते,रात ढले तो सितारे साथ नहीं रहते...मेरे जैसा ढूंढ ले,वक़्त तुझे देते है..वक़्त तो

क्या हम तुझे सदियों तक का समय देते है..याद रहे,इस दुनिया मे प्यार सिर्फ चंद सिक्को मे  ख़रीदा

जा सकता है..जो तुझ पे अपनी मोहर लगा दे,ऐसा प्यार नसीबो से मिलता है..
आँखों का रोना और खुल के बरसना..बरस के फिर खुले आसमां की तरह सुबह तक साफ़ हो जाना..

अपनी हंसी से फिर किसी की दुनिया मे हज़ारो रंग भरना..कितने खुशकिस्मत है हम,हज़ारो से

रोज़ यही सुनना..खुद ही खुद से सवाल करते है,फिर खुद को यही जवाब देते है..बहुत खुशकिस्मत

है हम, रोते तो है मगर जज्बे अपने को सलाम भी करते है..कौन है हम जैसा,जो दर्द को अपने मे

दबा कर दुनिया को खुशिया बांटा करता  है ...
यह शब्दों की कारीगिरी ही तो है कि हम मासूम दिलो को जीत पाए है..नन्ही नन्ही बातो से तमाम

नन्हों का संसार जीत पाए है..कोई तोतली भाषा से हम को पुकारता रहा,परियो के देश की रानी..

तो कोई हम से लिपट रहा कि ना जा छोड़ के यू मझधार मे हमे..आँखों के इशारे से गुफ्तगू कर के

कह रहे है कि ज़िंदा है जब तल्क़ अपना सब तुम पे लुटाए गे..कोई खौफ नहीं अब बिछड़ने का,कि

रंजिशों से दूर इसी दुनिया मे अपने कदम जमाए गे..


बेजुबान थे तुम मगर बहुत मासूम थे तुम..वो भोली सी निग़ाहें जिस मे इंतज़ार सिर्फ मेरा था..निश्छल

प्यार होता है कैसा,मैंने तुझ से सीखा था...इंसानो की इस दुनिया मे,जहा कदम कदम पे भरी है रिश्तो

मे सिर्फ बेईमानी..तेरा मेरी नरम गोद मे सो जाना और अधखुली आँखों से माँ अपनी को निहारते

रहना...तू था एक अनोखी काया,जिस मे देखा तेरी माँ ने संसार का नया स्वरूप... बहुत निराला....

Monday 15 July 2019

बहुत दूर तक नंगे पांव चलने के बाद,यह याद आया कि हम तो राह भटक गए है...उजालों को पीछे

छोड़ कर,इन अंधेरो मे बेवजह चले आए है...नरम चादर और किताबो की दुनिया से निकल कर,क्या

सोचा था और क्या हासिल कर पाए है...नन्हे नन्हे पांव और मेरे वज़ूद को नई पहचान देने वाले..

किस मोड़ पे ले आई यह ज़िंदगी,ना साँस ले पा रहे है ना ही दम तोड़ पा रहे है..

Sunday 14 July 2019

लोगो से सुना ,आंखे उन की बहुत खूबसूरत है..हम ने कहा,भला पत्थर सी आंखे कहा खूबसूरत होती

है..जिन मे कोई भाव नहीं,सिर्फ पलकों के झपकने से क्या, आँखों को हसीं माना जाता है..जो कभी

मुस्कुराती ही ना हो,जो अपने लबो पे भी हंसी लाती ना हो..हम ने उन पत्थर आँखों मे दर्द छुपा देखा..

राज़ खोलिए मेहरबां..ऐसा ना हो अचानक हम इन आँखों से कह दे,अलविदा..और आप बस सोचते रह

जाए गे यह सब क्यों हो गया...
दोस्तों...मेरी शायरी,इस के हर लफ्ज़ को पढने के लिए..उस के अर्थ को समझने के लिए,यह शायरा आप सभी का मन से अभिनन्दन और शुक्रिया अदा करती है...मैं हर बार कुछ नया लिखू...प्यार,पाक मुहब्बत,जज्बात,विरह की मिलीजुली भावनाओ की एक खूबसूरत लय है..मेरी यह शायरी..मेरी गुजारिश है आप सभी से कि मेरे लिखे लफ्ज़ो पे अपने थोड़े से शब्दों की एक ऐसी मोहर लगाए कि मैं अच्छा और भी अच्छा लिख सकू...आभार,शुक्रिया.....शुभ रात्रि दोस्तों...
रात तो हर रोज़ गहराया करती है..रंग भी हमेशा काला ही दिया करती है..कभी सुना किसी ने कि रात

कुछ कहा भी करती है..बहुत गहरी रात की ख़ामोशी किसी को कुछ तो किसी को कुछ,दिया भी करती

है..कभी यह रात आंसुओ की सिसकियां दिया करती है..और कभी अपने रंग से जुदा किसी को उस के

मीत का प्यार भी लौटाया करती है...सुलझा के कितने पुराने रिश्ते,यह उन मे नए रंग भी भरा करती है..
फूलो का गज़रा सजा कर बहुत इतरा रहे थे...खुद ही खुद पे लजा रहे थे..आईना देखा तो अपने चेहरे

पे तेरी सूरत को देखा..यह कैसा करिश्मा है जिसे चाहा उस को खुद मे देखा...गज़रा जो अब जुल्फों से

बिखरने लगा था..एक एक फूल जैसे तेरी महक से मुझे महका रहा था..सम्पूर्ण हुआ जीवन मेरा,यह

जैसे सिखा रहा था..टूट के कैसे चाहते है,यह बिखरे फूलो का गज़रा मुझे बता रहा था...
आज क्यों तेरी आँखों से शरारत की महक आ रही है..यह मौसम की चाल है या तेरी कोई रंगीन रज़ा

है..जानलेवा मौसम को शिद्दत से पुकारा हम ने,जानते है उस को तुम्हारे घर का पता बता दिया हम ने..

.आज वो बरसे गा तेरे आंगन मे इतना इतना..आखिर वक़्त की नज़ाकत को देख तुम को पुकारना

होगा हम को...जान..अब तो रोको इन को,मिलने की कोई वजह तो बताओ इन को...

Saturday 13 July 2019

सोने-चांदी और हीरे-जेवरात कब रिश्तो को बांध पाए है..नकली चेहरे अक्सर कुछ सालो बाद उभर

कर सामने आए है..महंगी गाड़ियों मे भी प्यार के यह बंधन अक्सर लड़ते देखे गए है...दौलत तो

बेशुमार है,मगर दिल तो ख़ाली ही पाए है..इक दूजे की कमियों को देख कर,अदालत के दरवाजे पे

यही नकली रिश्ते टूटते देखे गए है..किस ने जाना प्यार का वो रूप,एक ही थाली मे सादा खाना इक

दूजे को खिलाते...राधा-कृष्ण की महिमा को याद करते पाए गए है...
सितारों की दुनिया से परे, इक दुनियां हकीकत की भी होती है..जहा मिलते है,दिखते है असली

चेहरे..दौलत के तले अरमां भी बिका करते है..ऐशो-आराम को देख कर अक्सर रिश्ते यू ही बन

जाया करते है..दौलत ख़त्म तो रिश्ते भी मिट जाया करते है..सीरत और सूरत की जंग मे,जीत

हमेशा दौलत के ढेरो की होती है..गाड़ी,बंगलो से शुरू हुई मुहब्बत,गर आ जाए रिक्शा-साइकिल पे

तो सारी मुहब्बत हवा हो जाती है...
बेजुबां तो नहीं मगर जुबां खोले गे ही नहीं...अंदर क्या होता है यह खुल कर कभी बोले गे ही नहीं..तू

सामने आ जाए तो हसरते मचल जाए गी..सुभान-अल्लाह पसीने पसीने हो जाए गे मगर हाथ लगाए

गे ही नहीं..''''कौन सी नगरी से आए हो जो बुत बन कर यू खड़े हो..दिल को देखना, कही चट्टान से

कोई सीख ले कर आए हो'''खिलखिला कर जो हम हंसे वो तो मोम के जैसे पिघल गए..जुबां जो फिसली

तो ना जाने किस मोड़ पे जा कर रुक गई..

Friday 12 July 2019

समंदर की लहरों के बेइंतेहा शोर मे,फिर कोई शरारती लहर समंदर को मात देने वाली है..राज़ अपने

जीवन का वो उस को बताने वाली है..बरसो पहले जो देखा कोई सपना उस ने,वो आज समंदर को

दिखाने वाली है..जज्बा ही तो है कि अब तक उस ने हार नहीं मानी है...घुलने के लिए पानी समंदर का

बेशक खारा है मगर वो लहर की शरारत का है असर,समंदर खुद ही मीठा होने के लिए अब राज़ी है...
लगता है आज बहुत गहरा तूफ़ान आने को है..बादलों के शोर मे कोई जर्रा मिट जाने को है..बिजली की

कड़कती आवाज़ से कोई बेहद डरने वाला है..बेखौफ जो रहता था सदा,आज वो थर थर क्यों कांपने

वाला है..बहुत ही मजबूत है इमारत की नींव,मगर यह जो घर है वो तो आज भरभरा कर सच मे

गिरने वाला है...
उदास हो कर मेरे दामन को अपने अश्क़ो से ना भिगो..बेबसी मे खुद को अकेला भी ना सोच..तेरी

हर राह पर तुझ से पहले कोई पहुंच जाता है..तेरे दर्द को तेरे बोलने से पहले ही समझ जाता है..वो

आवाज़ का बार बार भर आना,गले मे खराश है कह कर मुझ को बहलाना..लय तो हर ताल मे सीधी

चलती है..फिर तू मुझ से कुछ भी छुपा,यह हमदर्द तो सब समझती है...
यक़ीं आज परवरदिगार पे और हो आया...कुछ और भी आज उस से मांग लेते,तो जरूर पा लेते..एक

ख़त लिखा और उस से गुजारिश की,बस आज मुझे वो दे जिस से किसी की ज़िंदगी सज़े..तूने तो मुझे

ज़िंदगी से लड़ने की बहुत ताकत दी है..ताकत के साथ कितनी इबादत भी दी है..मेरे कर्मो का आज

फिर लेखा-झोखा कर,और किसी और को बचा कर मेरी गुजारिश को इक और मौका दो...

Thursday 11 July 2019

भर दे आज फिर से,सब का आँचल खुशियों से...तेरी दुआओं मे गर इतना असर है,तो मान कहना उस

खुदा का...मेरे मालिक,तेरे जग मे आए है जब से..दुआए ही बांटते आए है...कभी कोई हमारी मुस्कराहट

से खुश हुआ,तो कभी कोई हम को देख खुश हुआ...इस को अपनी खुशकिस्मती समझ तुझ को हर पल

शुक्राना ही देते आए है..बस तेरी जमीं पे पांव सदा टिके रहे,खुद के लिए बस इतना ही मांगते आए है...
ना जाने क्या सोच कर बाहर आसमां को देखने चले आए है..चाँद घिरा है बादलों से,महसूस हुआ कुछ

बूंदो का खुद पे गिरना...चांदनी के प्यार को नज़दीक से पाने के लिए आज क्यों बेक़रार है यह चाँद...

यह जानते हुए कि चांदनी उस के बिना अधूरी है,वो भी उदास हो जाती है चाँद की बेकरारी से..कभी

तो यह बादल छिटके गे,कभी तो यह आसमां साफ़ होगा...अनंत से अनंत काल तक का साथ ना

कभी खतम हुआ था,ना कभी ख़त्म होगा...
मिज़ाज़ की ना पूछिए बस फसे है किसी तूफानी सैलाब मे..गुजारिश है बस इतनी अब रहमो-करम 

कीजिए...किश्ती को किनारे लगाने के लिए मिन्नतें करते है..हाथ जोड़ कर दिल से पुकारते है..ना

डूबने दीजिए हमारी किश्ती को,भार से पहले ही घायल है..उठाए कैसे अब बोझ अपना कि किसी और

का दिल भी पास हमारे है..कश्मकश का क्या कहना,रातो की नींद अब नदारद है...
यकीं कीजिए या ना कीजिए...कदम आप जहां जहां रखते है,उस से पहले हमारे आंचल का मखमली

दुपट्टा आप के कदमो मे बिछ जाता है..किसी को दिखाई नहीं दे गा,मगर इन पलकों का शामियाना

आप को बुरी नज़रो से बचाए गा...बारिश मे भीगे या गर्म हवाओ मे तपे,इक ठंडी हवा का पुरज़ोर

नशा हर बला से दूर रखे गा तुम्हे..कशिश मुहब्बत की गर खरी है,यक़ीनन यह आप को खुद ही

नज़र आ जाए गा... 

Wednesday 10 July 2019

सो जाइए कि दिन तो अब ढलने को है...बातो का क्या है,सपनो मे तो बातो का सिलसिला जारी रखने

को है..कुछ आप बोलिए,हम तो सब सुनने को तैयार ही है...दिल की धड़कनों को संभाल लीजे,कि

सुबह का उजाला बहुत देर से आने को है...कल का दिन मुबारक होना है,कि खुद से चलने के लिए

खुद का सहारा बस मिलने को ही है....

              
वो मासूम सी हंसी,वो खनकता अंदाज़...दिल की परतो का बहुत धीमे,बहुत ही धीमे से खुलना...

कोई खता की भी नहीं,मगर झट से माफ़ी-नामा क़बूल करना..कभी कभी बात करते करते आवाज़

का भर आना,और तभी बात को बदल देना...समझते तो हम भी है,मगर नज़ाकत वक़्त की जानते

भी है..वो तमाम काली परते मिटाना हम को आता है..शर्त बस इतनी सी है,कि मुस्कुराने का खज़ाना

दिल के तहखाने मे अभी तक बंद क्यों है..

Tuesday 9 July 2019

ईश्वर को देखा नहीं कभी..बस एक धुंधली सी तस्वीर पलकों के कोनो मे महकती रही..क्या ईश्वर

होता है,क्या वो जीने की वजह भी देता है..इतने सवाल पर जवाब खुद ही खुद मे ढूंढ़ते रहे..सो गए

कभी खुले आशियाने मे,कभी सोने की कोशिश मे करवटें बदलते रहे...एक  मसीहा फिर ईश्वर ने

भेजा,तब हम समझे क्यों यह दुनिया अब भी है ज़न्नत जैसी ..बिलकुल वैसी,जैसे ईश्वर की बोली..
तारीफों के पुल इतने भी ना बना कि खुद हम को शर्म आ जाए...टुकड़े टुकड़े जीने वाले कही इसी जमीं

मे ना धस जाए..एक बेहद मामूली सा किरदार बन कर,ताउम्र गुजार दी हम ने..बस शुक्रगुजार रहे उस

मालिक के,दुनिया मे सब के चहेते बन के रहते रहे...दर्द किस को देते कि दर्दो को बेहद नज़दीक से

देखा हम ने...कोई हमे देख मुस्कुरा दिया,इस से जय्दा और खुशनसीब हम कितना होते...
खवाब देखने की कोई मनाही ही नहीं..खवाब खुद से पूरे करना,यह खुद की जवाब-देही है...सहारे

अक्सर इंसान को कमजोर बनाया करते है...खुद को गर उठाना है,तो सिर्फ साथ मांगो..सहारा नहीं..

तेरी मंज़िल खड़ी है तेरे बहुत करीब,गर आंखे खुद की ना खोली तो गज़ब हो जाए गा...तेरी जगह

कोई और सितारा बन कर आसमां मे चमक जाए गा..अभी भी वक़्त दे रहा है तुझ को मोहलत,सुन

खुद से खुद का सहारा बन..सहारे दूजो के बहुत कमजोर बना दिया करते है...
ज़िंदा रहना है,दौलत कमाने के लिए..रिश्तो को बनाना है,दौलत देने के लिए..खुद को सहज रखना है,

उस की ख़ुशी के लिए..कभी इस के लिए तो कभी उस के लिए...जीवन की भाग-दौड़ मे कोई खुश

कितना रहा,किस ने किस को कितना प्यार दिया..किस ने कब सम्मान दिया,कभी दर्द खुद ही सहा

 तो कभी झूठी हंसी मे खुद को जिया..ना इतना झूठ खुद से बोल,कि आँखों को पढ़ना आज भी किसी 

 को आता है...
समंदर की लहरों का तेज़ी से उमड़ना...नदियों का कल-कल करते बहना...तालाबों का कभी इस मे

खोना तो कभी ठहर जाना..ज़िंदगी भी तो ऐसा ही इक रेला है...जरा सा चूके नहीं,कि इमारतों को

बेदर्दी से हिलाना सब को आ जाता है..सुबह की धूप की तरह खिलते रहिए,शाम के आने से पहले

खुद को ज़िंदा दिल रखिए..मौत का क्या भरोसा कब ले ले गी आगोश मे,बस जो भी मिले पल उन

को शिद्दत से जीते रहिए...

Monday 8 July 2019

सोने के लिए गर रात काफी होती तो दिन मे सपने कौन देखा करता...मुहब्बत मे गर हर बार सौदा

होता तो प्यार की कीमत के लिए कौन सहारा ढूंढा करता...दौलत का नशा गर सर चढ़ कर हमेशा

बोला करता,तो प्यार की भीख लेने के लिए किसी गरीब मुहब्बत को क्यों थामा करता...सादगी ही

अक्सर सपनो को संवारा करती है..जो नन्हे सपनो मे पले उस से जयदा ख़ुद्दार यहाँ कोई हुआ नहीं

करता..
किस्मत के सितारों से क्या लड़ना...बुझ के जीना है तो फिर इस ज़िंदगी का क्या करना...खुद पे इतना

भरोसा भी नहीं कि खुद के फैसले दूजो से लेना...टुकड़े टुकड़े जीना और यह जताना,हम तो मशहूर है

अपने रास्ते खुद बनाने के लिए...प्यार जो भूले से कभी मिल जाए,उस को कोई तवज्जो ना देना..

प्यार जब खो जाए तो आंसू बहा देना..बेबसी से गर यू जीना है तो फिर किस के लिए जीना...
सपनो की उड़ान इतनी तेज़ भरी कि सपने ही खनक गए...बहुत कुछ पा लेने की कोशिश मे ज़मीर

के मायने ही बदल लिए...ज़मीन का इक जर्रा था,सीधे आसमान मे उड़ जाना चाहता था...बीच राह

मे कितने पड़ाव आने है,यह समझने को राजी ही ना था...मंज़िले गर इतनी आसान होती तो हर कोई

आसमां को छू लेता..पांव ज़मीं पे रखिए जनाब,आसमां पे उड़ना है तो खुद को संभाले रखिए..
आप तो बस आप है..शीशे की तरह पावन पावन..उजला सा मन,मोतियों सा बदन...झर झर बहती

नदिया की तरह कोमल सा सजन...वाकिफ कौन होगा ऐसी शख्सियत से,जो ढल जाए कुंदन की

तरह...आप से पूछते है मालिक मेरे,कितनी फुर्सत से बनाया यह अलबेला सजन...क्या खास था उस

मिटटी मे,बरसो घूमे पर कोई ना दिखा मेहताबे-कदम...
नज़र क्यों झुकी आज तुम को देख कर..पसीना क्यों आ रहा तुम को महसूस कर..छनकती हुई पायल

को पहले ही उतार कर रख दिया..कानों के झुमको को क्या इशारा दे दिया..मोहलत मांग रहे है इन साँसों

से थोड़ी सी और..साँसों की यह गर्मी क्यों पिघला रही मौसम को जय्दा कुछ और..बरसते सावन से कहा,

जम के बरस और बरस...किसी को वापिस जाने की वजह ना मिले,इस लिए दिल खोल के बरस....

Sunday 7 July 2019

नैनो ने कहा खुद नैनो से..सपनो मे खोना है,सो आज तो सोना है...दिल की धड़कनो ने कहा दिल से,

मुझे आज तेरे संग तेरे ही रंग मे रंगना है...पलकों ने धीमे से कहा मेरी जान..आज तो तुझे भी सोना है..

सुभान अल्लाह है तेरा कल का दिन,दिमाग ने खुल के आज इन सब को बोला है..घुंघरू पायल से निकल

बाहर आए,मिलन की बेला मे मुझे तो कुछ नहीं कहना है..बादल गरज़ कर बोले,सरगोशियों मे मुझे तो

दिलो को मिलाना है...
निकल आए है बाहर इस जानलेवा मौसम मे,देखने बगीचा फूलो का...हौले हौले,मद्धम मद्धम चाल से

निहार रहे है इन फूलो को...कुछ दिन पहले देखा था इक ऐसा फूल,जिस को अपनी पूजा के लिए चुन

लिया था हम ने...आज पूजा की थाली मे रखने के लिए,उसी फूल को लेने आए  है...कहां होगा यह

सोच कर परेशां है...दुपट्टा उलझ गया इक डाली से,देखा वही फूल था हमारी पूजा की थाली मे...
अस्तित्व नहीं है कुछ भी मेरा..कमजोर बहुत है दिल यह मेरा...तुझ को क्या दे पाऊ गा...दुनियां ने

ना मुझ को जाना,मेरे किए को किसी ने ना सराहा...तुम तो हो परियो की रानी,तेरी खूबसूरती मेरे

आगे ज़न्नत की कोई सूंदर सी कहानी...मुस्कुरा कर हम ने दुःख उस का बांटा..''कीचड़ मे खिले

कमल को कभी गौर से देखा है..वो उतना ही खूबसूरत है,जितना कीचड़ काला है..दुनियां जलती है

जब भी चाँद की खूबसूरती से,दाग़ भरा है इस के अंदर..कह कर खुद को बहलाती है..तुम भी हो उसी

कमल और चाँद के जैसे..जिस से जल कर दुनियां खुद को आग लगाती है.'''
बरसात की नन्ही बूंदो के तले,इस सवेरे की निखरी रौशनी के तले... निकल रही है मन से वो आवाज़,

जो माँगा कुदरत से आज..बताने के लिए लफ्ज़ नहीं है मेरे पास...शाखाएं जैसे निखरी है,फूलों को यह

कहती है...गुलशन के हर फूल से पूछ,किस ने पाया नया इक जीवन...मुरझाते मुरझाते जब वो इतना

सहमा,बारिश की इक बूंद ने आ कर जीवन उस मे ऐसा डाला...बोल नहीं पाया वो बेचारा,बह गए आंसू

खिला जग उस का सारा...

Saturday 6 July 2019

पलकों के शामियाने मे बंधी यह आंखे नींद से आज क्यों कोसों दूर है...जहां तक जा रही है नज़र,आवाज़

किसी भी झरोखे से नहीं आ रही है...कोई गीत नहीं ऐसा जो आज सुलाए हम को..करवटों मे जाए गी

रात,आंखे बोझिल हो कर भी सो नहीं पाए गी...दिल कह रहा है आँखों से,चल मिल कर दोनों रात यू ही 

गुजार जाए गे..दिमाग जो सुनता किसी की भी नहीं,यकीन से आज कहता है,एक गीत फिर भी तेरी

नींद की लाज रखने जरूर आए गा...
बहुत दिनों से परख रहे थे,प्यार के मोल को समझ रहे थे...ज़माने आए है,ज़माने आए गे..प्यार की

कीमत और मोल के क्या भाव रह जाए गे...कल सतयुग था,आज कलयुग है..जब प्यार का अर्थ प्यार

ही था..एक पूर्ण- समर्पण था,साथी के हर सुख हर दुःख मे खुद को डुबो देने का जज़्बा था..दूर हो कर

भी दुआओं का बेइंतेहा रेला था..आज प्यार..दौलत और ऐशो-आराम के साए मे पलता है..कमी को देख

कागज़ के टुकड़ो मे ख़त्म हो जाता है..कलयुग ख़त्म ना होने पाए,अभी भी कही प्यार पूर्ण-समर्पण मे पलता

है..
यह घड़ी की टिक टिक,सुन रहे है कब से...वक़्त रोज़ जैसे भाग रहा था..आज वक़्त से तागीद है,तुम

क्यों थम गए हो...काटे से क्यों नहीं कट रहे हो...मशगूल है बेशक बहुत कामो मे,हैरान है सब कर के

वक़्त तो वही रुका है..बहुत पूछा क्या खफा हो मुझ से,मेरी जान की वजह से  बहुत परेशान हो...तुझे

क्या कहू कि तेरी रज़ा क्या है..आज तो मुझ से भी ना पूछ कि मेरी रज़ा क्या है..
कल की वो शाम..बन गई कब कितनी खूबसूरत...कब वो हम को सिखा गई जीवन जीने का इक

मकसद...रोम रोम खिला ऐसे,जैसे कली खिली नई नई हो जैसे...सारा बग़ीचा सामने था,पर इक

सूंदर फूल चुना हम ने ऐसा..आँखों की चिलमन मे झलका उस की खुशबू का वो रेला...नई नई

खुशबू से महका मेरा जीवन,मेरा सवेरा..
ना लिख अपनी ख्वाईशो मे नाम मेरा कि मैं तो तेरे दिल की धड़कन मे बसती हू..ना जोड़ कोई रिश्ता

मुझ से,तेरे लहू की हर बूंद मे राज़ करती हू..गर्दन झुका कर कभी झांक अपने अंदर कि सीने मे तेरे

हर पल बंद रहती हू..तेरे हर कदम के पीछे मेरा हर कदम होता है..साथ चलने के लिए क्या साथ रहना

जरुरी होता है..रूहे हमेशा आज़ाद हुआ करती है, कि साजन से मिलने के लिए दूरियां कहां कब तय हुआ

करती है..

Friday 5 July 2019

प्यार..जो किसी बंधन का मोहताज़ नहीं..बंधन से परे..प्यार गंगाजल सा एहसास सही..पा लेना गर

मुहब्बत का डेरा होता,साथ रह कर गर प्यार का मोल जय्दा हो जाता..यक़ीनन प्यार का नाम ज़िंदाबाद

कहा जाता..दूरिया तो पास रह कर भी होती है,साथ जी कर भी ज़िंदगी मौत से बदतर भी हो जाती है..

प्यार महकती हुई वो खुश्बू है,दूर रह कर भी महक बिखेरा करती है..सकून की नींद दे कर,ज़िंदगी को

मुकम्मल किया करती है..
मैंने तुझ को टूट के चाहा इतना..तू भी टूट के मुझ को चाह इतना..सदियों से हम तो यही करते आए है..

रूप बदले बेशक़ पर रूह का सार वही ही था..इस दुनिया मे रह कर भी,दुनिया के साथ नहीं रहे..तार

तार दिल का जोड़ा और पास तेरे चले आए..ना कुछ लेने ना कुछ पाने..फिर भी तुझ तक पहुंच गए..

पाना खोना किस ने देखा..इक लय से शुरू हुए,.इक ही लय तक जाए गे..तेरी दुनिया तुझ को मुबारक,

हम हर रस्म ऐसे ही निभाते जाए गे...
दुनिया का रंग बहुत अजीब देखा ...लोग यहाँ सिर्फ जिस्मो से प्यार करते आए है..रूह को इतना तोडा

कि जिस्म फिर भी फ़ना होते आए है..चेहरा ही गर मुहब्बत की पहचान होता,तो हर खूबसूरत चेहरा

कामयाब होता..जिस्मो की नुमाइशें ना लगती,और कोई कही इन का सौदा भी ना होता..मुहब्बत क्या

है,रूह का रूह से मुलाकात करना और जी भर कर उस की इबादत करना..फिर ना तो नज़र आता है

सिर्फ चेहरा ना ही जिस्मो का दिखना रंग लाता है..
कितने दरीचों से निकल कर इतनी दूर आए है..बेवफाई वक़्त करता रहा,हम तो खुद को खुली किताब

की तरह रखते आए है..फलसफा ज़िंदगी का क्या समझते,जब की साँसे तो दूजो को देते आए है...एक

कशिश ऐसी रही हम मे,दिल सभी का जीत लेने मे कामयाब होते आए है..आगे क्या होगा,यह सोच हम

पर हावी हो नहीं पाई..रुख जो देखा ज़िंदगी का जैसा,हम तो खुद को उसी के रूप मे ढालते आए है...
बात चाँद सितारों को लाने की नहीं..बात साथ निभाने की भी नहीं..कोई शिकवा कोई शिकायत ही

नहीं..दूर दूर तक मंजिल को पा लेने की हसरत भी नहीं..झुकना कोई मज़बूरी ही नहीं,सज़दा करना

हमारी आदत ही सही..भगवान् ने जो दिया,उस को रख कर सर-आँखों पे..हम उस की दी हर नियामत

पे वारी वारी होते रहे..दुआ जो निकल रही है दिल से आज,मेरे मालिक हम तो तेरे कायल ही हो गए ..
दोस्तों..प्यार..विरह.वेदना.इकरार और जज्बातो की मायानगरी से भरी होती है शायरी...जिस के हर रूप को पढ़ने के बाद,हर किसी को यह लगे कि यह उसी की ज़िंदगी से मिलता प्यार या इकरार का जादू है..या कभी लगे कि विरह के यह शब्द मेरे लिए ही लिखे गए है..अगर ऐसा होता है तो एक कलाकार या यू कहे एक शायरा के लिखे लफ्ज़ो का जादू आप पे चल गया..सपनो की दुनिया कभी कभी बहुत ख़ुशी और सकून भी देती है..दोस्तों...अगर आप मेरे लिखे लफ्ज़ो से कभी प्रभावित हुए हो तो इस शायरा को हौसला-अफजाई जरूर कीजिये..ताकि मैं अच्छा और अच्छा लिख सकू...आभार..शुभ रात्रि..
घुमड़ घुमड़ कर आए बादल,पानी कितना बरसा गए..भीगा तन-मन,भीगा आँचल..सारे अरमां जगा

गए..,टूटी भाषा..महकी साँसों का घोर अँधेरा..हलचल करती गहरी बाते,कड़कती बिजली से डरती वो

साँसे..सरगोशियों मे बसता इक तूफान..तू क्या जाने मैं क्या जानू,क्या कह रहा यह तूफान...पानी

बरसा रिमझिम रिमझिम,कोई बह गया इस के अंदर ले कर अपने साथी का नाम...
बचपन की वो नन्ही सी गुड़िया,बाबा का हाथ थामे हुए...चंचल,शैतान मगर मासूमियत से लबालब

भरे हुए...नैनो की भाषा से बाबा को कुछ समझाते हुए...ना समझे तो उन की बेबसी पे,खिलखिला

कर हँसते हुए...गुलाबी सी पोशाक मे,बाबा की दुआए लेते हुए..कब बड़ी हो गई,वो भी ना जान सके..

बाबा चले गए,पर संस्कार इतने छोड़ गए कि लाडो की ऊथल-पुथल ज़िंदगी मे अपनी रौशनी बिखेर

गए..
खामोशिया कभी कभी खुद पे भी भारी पड़ जाया करती है..कहना होता है बहुत कुछ मगर,लबो को

फिर भी सीना होता है..अक्सर अंधेरो मे कुछ परछाइयां तन्हा इतना कर देती है,उजालो से सीधा

गहरी खदान मे पटक देती है..कायर थे जो लड़ न सके इन अंधेरो से,खामोशियो को बनाया खुद का

सहारा और दूजो के लिए जीने लगे...पलट रहे है आज उन्ही अंधेरो को उन्ही के बिछाए जाल मे..ओह..

ज़िंदगी तू इतनी खूबसूरत भी हो सकती है..कि लबो को दुबारा मुस्कान  भी दे सकती है..
रूह की सच्चाई को देखा बहुत नज़दीक से..कुछ भी कमी ढूंढ नहीं पाए..क्या कुछ नहीं भरा इस मे,

किताब इस पे अभी लिख नहीं पाए..कश्मकश मे है,किताब लिखे या रूह को नवाज़े...सोच मे पड़े

थे कि क्या करे क्या ना करे..बरबस आज नज़र पड़ी रूह के साथ सजी इन आँखों पे..उलझन मे है

अब किस को नवाज़े..रूह या इन पाक आँखों को...यक़ीनन..भगवान् ने तुझ को बना कर फक्र महसूस

किया होगा..कि अब ऐसा अवतार मैं फिर कभी ना बना पाऊ गा..

Monday 1 July 2019

वो पूछते है हम से .''''प्यार की इंतिहा कहां तक है ''''हम ने भी हंस कर मज़ाक मे कहा,इन बारिश

की बूंदो को गिनो,बस इतनी मुहब्बत तुम से है हम को..हम ने जो कहा उस को वो सच मान बैठे है..

अब तेज़ बारिश मे वो बैठे है,बूंदो को गिनने के लिए..सुभान अल्लाह ...हम तो बस दूर खड़े निहार

रहे है उन को,उन की इसी मासूम अदा के लिए...
घिर आए अचानक से यह बदरा और क्यों झमाझम बरसने लगे है..हवाओ के तेज़ झोकों से क्यों हम

बहक रहे है..मन करता है आज इतना सजे-इतना सँवारे अपने आप को..मदहोशियों को आवाज़ दे

और पुकारे अपने मन के मीत को..फिर लगा सवारना तो एक धोखा है..मीत को पुकारे क्यों,जो बसा

है रूह के अंदर उस को भला आवाज़ क्यों..सजना नहीं कि हमारी सादगी पे लुट चुका है हमारा मन का

मीत...

चांदनी सुन रही थी गौर से अपने चाँद की दास्तां...निहार रही थी बार बार उस के निखार की इंतेहा..

नूर देख चाँद का,नज़र उतारी बार बार..यकीं है अपने चाँद पे खुद से भी जय्दा...बादलो मे ग़ुम हुआ,

मगर चांदनी को कोई खौफ नहीं..उस की वफादारी पे सदके जाती है यह चांदनी...चाँद तो आखिर उसी

का चाँद है..पलके उठाए या पलके गिराए,साथ है सदियों तल्क का..
आज ना जाने क्यों पायल छन-छन करती टूट गई...चूड़ियाँ खनकी इतनी कि आहे-बगाहे छनक गई...

वो लबो का हल्का सा कंपन,साँसों की गरमाहट से पिघल गया..क्यों आज साजन की मीठी बातो से

यह दिल दहक गया..मौसम की गर्म सी रवानगी मे,सब कुछ जैसे महक गया..ख़ुशी से बहके आज यह

नैना,कि दर्द जैसे हवा हो गया...
कारवां चलता रहा और हम ज़मी पे रुके रहे...बादल बरसते रहे,बौछारो से भिगोते रहे,पर हम ज़मी पे

रुके रहे..कलियां पैदा हुई,फूल भी खिलते रहे..मगर हम ज़मी पे रुके रहे..दौलत-शोहरत झोली मे

आती रही,हम थे कि ज़मी से हिले नहीं..लहरे रुक रुक कर हम को, ज़न्नत के नज़ारो से रूबरू करवाने

की कोशिश मे जुटी रही..मगर हम ज़मी पे थम गए ..फिर ना जाने कुदरत का कौन सा करिश्मा आया,

रहे फिर भी ज़मी पे,मगर कुछ अलग अंदाज़ मे थिरकरने लगे...
किसी ने पूछा हम से-आप इतना कैसे मुस्कुरा लेते है--दर्दो को कौन सी दहलीज़ पर छोड़  आए है-

हम ने हंस कर कहा,मुस्कुराना तो हमारा मज़हब है--देते देते खुशियां सब को, अपना दर्द तो कही

जमीं मे ही दफ़न कर आए है--मोतियों से भर कर दामन सब का,हम दूर खड़े हो कर--उन मोतियों

की लड़ियाँ पिरोते आए है..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...