Wednesday, 14 October 2020

 पहाड़ों के पास पास से गुजरती वो अल्हड़ गौरी शयामा थी..अपने ही शिव की तलाश मे वो रात-रात भर 


कंटीली राहो से गुजरी थी..कभी रही भूख से बेहाल तो कभी उस को मिलने को तरसी थी...क्या वो उस 


को पहचानती थी..क्या वो उस को जानती थी..आँखों से नहीं वो तो उस की रूह की खुशबू से पहचानती 


थी...यह कौन सी राहें है जो खत्म नहीं होती...यह कैसे फासले है जो तय नहीं होते..शिव को पाने के लिए 


 कंटीली राहों पे आज भी चल रही है वो..रूह से रूह का मिलना इतना आसां भी नहीं,यह बखूबी 


जानती समझती है वो...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...