खूबसूरत नहीं हू मैं..यह मान कर उस ने आईने के सौ टुकड़े कर दिए...हर टुकड़े मे अपना ही अक्स
फिर नज़र आया...झर-झर निकले अश्क और ज़िंदगी बोझ लगने लगी...उस ने शिकायत की उस
मालिक से,क्यों किया तुम ने ऐसा...नज़र आने लगी हर और निराशा...''एक दरवाज़ा बंद होता है तो
कितने और दरवाज़े खुलते है''...कोई चाहता है उस को चुपके से,इस से बेखबर थी वो...निराशा के
गहरे बादलों मे वही था जो पास उस के आया..''खूबसरत दिल की मालकिन हो,तुम्ही मे मुझे सारे
जहां का प्यार नज़र आया..खूबसूरत चेहरे बहुत होंगे,मगर तुम सा खूबसूरत दिल कही ना होगा''..
फिर छलके उस के नैना,पर इस बार खूबसूरत थे..दोनों के पागल नैना...