Wednesday 31 August 2016

मैै मुहबबत हू तेरी..तेरी वफाओ का सिला--मेरे नूरानी चेहरे मे बसी है तेरी किसमत की

ऱजा--तू चाहे मुुझे यह होगी तेरी मासूम अदा...मै चाहू तुझे तो मिले गी मुुझे खुदा के

रहमत की वजह--मुहबबत पाक है गर..तेरी भी और मेरी भी....तो इबादत की रसमो मे

जुडे गी किसमत मेरी भी और तेेेरी भी----

Sunday 28 August 2016

मेॅहदी रचे हाथो मे लिखा है बस तेरा ही नाम--एक बार नही हजारो बार देखते है बस

तेरा ही नाम--उलझनो को सुलझा रही है, यह तेरे नाम की मेॅहदी--दुनिया जलती हैै तो

जलती रहे,वफाए-जिॅदगी की शाम को महका रही है यह मेॅहदी--रात मिलन की आने तो

दो,फिर जानो गे कया गुल खिलाए गी तेरे नाम की यह मेॅॅहदी---

Saturday 27 August 2016

तुझे भूले कि तुझे याद करे....तुझे चाहे या सजदे मे शामिल कर ले....तेरी खामोश अदा

पे मर जाए या निगाहो मे अपनी तुझे कैद कर ले.... कशमकश मे है इतना कि यह भी

तुझे बता दे या बेताबी को खुद केे सीने मे छुपा ले....लोग कहते है तेरा अकस मेेरे चेहरे

पे झलकता है..अब तू ही बता दे तेरे हो जाए या तेरी बॅदिगी पे कायल हो जाए....
वकत को गुजरने दिया हम नेे..आजाद पॅछी की तरह--ना दरद बताए अपने,ना किसी

तकलीफ का इजहाऱ किया हम ने--मासूम सी हॅसी चेहरे पे लिए,कदम दर कदम चलते

रहे--हाथो की लकीरो मे साथ उस का पाने के  लिए,तेरी मेहरबानियो को भी नही चुना

हम ने--किसमत की दासताॅ का शिकवा कहे कयू कर,कि खुद को भी आजाद कर दिया

हम ने उडते पॅॅछी की तरह---

Monday 22 August 2016

महजबीॅॅ होने के लिए..तेरे साथ तेरा होने के लिए...जरूरी तो नही कि रब से तुझे माॅगा

जाए---शिकवो का दौर चलाने के लिए..तेरे इॅतजाऱ मे रात भर जगने के लिए...जरूरी

तो नही कि सात फेरो का साथ माॅगा जाए---तुझे हर पल देेखने के लिए..रूखसती के

खयाल सेे जब दम घुटने लगेे..आॅखे बार बार भरने लगे...तो भी यह जरूरी तो नही कि

तुझ सेे तुझी को ही माॅॅग लिया जाए---

Friday 19 August 2016

तेरे एक इशारे पे दुनिया छोड दी हम ने--रासते तो मिलते रहे मगर मजिॅल तुमही पे

रोक दी हम ने--वजूद तेरे मे सिमटने के लिए अपनी पहचान भुला दी हम ने--यकीॅ है

तुझ पे अब इतना कि अपने पे यकीॅ करना छोड दिया हम ने--शिददते-मुहबबत की बात

करे कैसे तेरी ही बाहो मे सारी जननत ढूॅढ ली हम ने----

Thursday 18 August 2016

सूखे फूलो को जो देखा..पाक मुहबबत का वो जमाना याद आया--छोटी छोटी खुशियो मे

जिॅदगी जीने का वो दीवानापन याद आया--कभी रूठना तेरा..कभी मचलना मेरा....फिर

बेबाकी से खुल कर हॅसना...कयू उन पलो को पलको पेे सजाना आज याद आया--यादो

के झरोखो से जो मन को टटोला..तेरा मासूम सा नूरानी चेहरा इबादत मे कयू नजर

आया----

Wednesday 17 August 2016

बदरा जो बरसा तो हम मुसकुरा दिया--बूॅदो ने छुआ जो बदन मेरा,तेरे छूने की सिरहन

से मन मचल मचल गया--यादो मे तेरी जो खोने लगे,पाॅव की पायल ने धडकनो को ही

बढा दिया---हाथो की लकीरो मे जो नाम तेरा दिखा,खुदा की खुदाई पे सिर झुका दिया -

रफता रफता तेरी मुहबबत की जॅजीरो मे जो जकडे,आजादी के नाम को रूखसत कर

दिया---
जुलफो का सॅवरना..सॅवर कर फिर से बिखरना---यह शरारत है तेरी या जुुलफो तले

छुपने की अदा---कॅगन को मेरी बाहो मे सजाना..सजा कर पलको से छू लेना--यह

शिददते-मुहबबत हैै या मुझे बहकाने की मासूम खता---मुड मुड कर मुझेे देखते जाना

और पलट कर मुझे बाहो मे भर लेना..मिलन की घडिया याद दिलाने की इक वजह तो

नही---------
यू ही हॅसी हॅसी मे कह दिया उन से..चले जाओ जिॅदगी से मेरी---तामील करते है आप

के हुकम की,यह कह कर...जिॅदगी से मेरी वो चले गए---अरसा हुआ उन की रूखसती

को--बेहाल है..बदहवास हैै..इॅतजाऱ मे परेशान है---रूह की कशिश मेे बॅधा यह पयार तेरा

पाॅवो की जॅजीर बना साॅसो का बिखराव मेरा---अब तामील करो इस हुकम की,बस लौट

कर आ जाओ---आ जाओ--

Monday 8 August 2016

धडकनो की गर बात सुने तो बस तेरे ही हो जाते हैै...आॅखे जो हकीकत बयाॅ करती है

यकीकन कदमो दूर चले जाते है...लिबास पहने जो तेरे एहसासो का,तो बिलकुल ही

बदल जाते हैै...पलट कर देखे जो राहेे-किसमत को बस बिखर बिखर जाते है...पूछते है

तुम से..अॅदाजे-बयाॅ कहने के लिए तेरे रूबरू हो या सब सीने मे दफन कर तेरी जिॅदगी

मे शिरकत कर जाए...

Sunday 7 August 2016

पलके ना गिरा..आॅखे ना झुका...हाथो को दुपटटे मे ना छिपा....धडकने दिल की

सॅभालने के लिए,बॅद दरवाजो मे ना जा...ऐ नूरेेे-जहाॅ मेरी..बस अब तडप के मेरी बाहो

मे आ...मिलन की घडिया अब रह गई थोडी,मेेरी पाक मुहबबत को आजमायश की

परतो मे ना जला...महजबीॅॅ मेरी..दुलहन के लिबास मे सजनेे के लिए खुद को मेरी

पनाहो मे ले आ...

Monday 1 August 2016

पलके जो भीगी..बस भीगती चली गई--तूने जो बाहो मे भरा..आॅखे छलकती चली गई--

इतने इॅॅतजाऱ के बाद तेरा आना..धडकने बढा गया--गहरी साॅसे लेना फिर खुद मे खुद

को समेट लेना..जैसे रिशते का एहसास दिला गया--लौट जाओ गे तुम मुझे छोड कर..

इसी बेबसी मे मन फिर से घबरा गया--
दोस्तों..मेरी शायरी के हर रूप को पसंद करने का शुक्रिया..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...