सिंगार सोलह ही क्यों..सिंगार अनमोल ही हो..जो भाये तेरे मन को वैसे ही बन जाए गे हम..झूमर बिना
भी हम क्या लगते है...करधनी ना भी बांधे तो भी तेरे ही तो लगते है...आँखों मे कजरा ना लगाए गे तो
क्या तेरे ना कहलाए गे...गेसू खुले या बांध ले इस गज़रे से तो क्या साजन के ना हो पाए गे...छम-छम
करती पैजनियां ना बजे तेरे द्वारे तो क्या तेरी दुल्हन ना बन पाए गे...तुझे याद सिर्फ इतना दिला दे,वो
रूप जो देखा था मेरा सादगी भरा तूने और तभी से मान लिया अपना मुझे तूने..तो आज किसलिए यह
सिंगार करे...