औरत...कौन है ? उस के जन्म पे कहते है लोग,ओह्ह..बेटी हुई है..कोई बात नहीं..
पूछे कोई उन से,क्या बेटा पैसों की पोटली ले कर जन्म लेता है...
और जो ना है बेटा है और ना बेटी ही..वो भी इस ज़माना मे नाम रौशन करता है..
माता-पिता के घर बड़ी होते-होते,यही याद दिलाया जाता है..तुझे अपने घर जाना है..
ब्याह के बाद पति भी हज़ारो बार एहसास दिला देता है कि यह घर भी उस का नहीं...
औरत हज़ारो काम कर के और पूर्ण-समर्पित हो,अपने पति-ससुराल के लोगो की दिल से सेवा करती है...
अपने बच्चो को किसी भी कमी का एहसास ना दिला,उन को अपने दुलार से सींचती है..
हर किसी की बीमारी-दुःख मे साथ खड़ी रहती है..
कितने दुखो-तकलीफो से जब औलाद को बड़ा करती है तो यही औलाद कहती है,तूने हमारे लिए किया ही क्या है..आंख का पानी पी कर वो फिर भी फ़र्ज़ निभा देती है...पर दिल का एक कोना तोड़ देती है..
ब्याह के बाद बेटा-बहू कहते है,यह घर तो हमारा है..
जिस को औरत अपने खून-पसीने से बनाती है..सेवा का मोल किस ने जाना...
अब उस का घर कौन सा है,यह सवाल वो खुद से बार-बार पूछ लेती है...
पति का घर है..बेटा का भी घर है..और उस का अपना घर ??
फिर भी चुप रहती है और फिर से दिल का एक कोना और तोड़ देती है...
औरत एक प्रेयसी-प्रेमिका भी तो है...पर मर्द के लिए वो सिर्फ एक जिस्म ही होती है...
मर्द अपने घर की औरत को छुपा के रखते है,पर बाहर दूसरी औरत मे सिर्फ जिस्म और उस की खूबसूरती ही ढूंढ़ते है...
औरत के पूर्ण समर्पण को प्रेमी कब समझ पाते है...वो तो उस के लिए जिस्म-हवस से जयदा कुछ भी तो नहीं...
कहते है आज,औरत के लिए दरवाज़े बहुत खुले है...
पर सच मे आज भी एक नन्हा सा झरोखा ही उस के नसीब मे है...
वो भी उस को उसी की ताकत और संघर्ष से मिला है...
हां,यह सच है..औरत जब तक कमजोर है..लोग उस का जीना दुशवार कर देते है...
उस को दबाने की कोशिश मे,उस को पागल तक करार कर देते है...
पर औरत उस ईश्वर की बनाई वो नायाब कृति है..जो बहती रहती है पाक झरने के तरह..
किस ने पूरी तरह समझा उस को...किस ने भरपूर प्यार दिया उस को...
कुछ अपवाद को छोड़ कर....औरत एक खूबसूरत कहानी है..
जान लेती है जब सब का कुलषित मन तो सब भूल कर अपने असूलों पे आ जाती है..
हर रिश्ते को ताक पे रख कर वो चंडी-रूप ले लेती है...
कमजोर नहीं वो तो आज भी झाँसी की रानी है..
औरत,जिस ने दिए ज़माने को राजा-महाराजा..भगत सिंह से पुत्र दिए..
और अहिल्या सी बुलंद नारी भी...
वो औरत जननी है..ईश्वर की इक मरज़ी है...
ना बोले तो भी तूफान उठा सकती है...बस इतना कहू....
एक अकेली औरत हज़ारो मर्दो पे भारी है......शुभ महिला दिवस.........शुभकामनाएं........