Wednesday 31 March 2021

 कहाँ कहाँ ना ढूंढा आप को..गहरी मशक्कत के बाद आप के शहर का नाम ढूंढ लिया हम ने..अब 


सवाल तो यह था कि कैसे मिले आप से और कैसे इबादत का खज़ाना लुटा दे आप पे..इक शहर आप 


का और इक हम अकेले शहर मे आप के..किस किस का घर ढूंढ़ते आप तक पहुंचने के लिए..पर हम 


तो हम ही है ना..आप तक पहुंचना जब लगा मुनासिब नहीं है तो इक ख्याल मन मे आया..दे आए पूरे ही 


शहर को दुआ का सारा खज़ाना अपना,इस उम्मीद मे कि यह दुआ खुद-ब-खुद आप तक पहुंच ही जाए 


गी...

 तक़दीर सुनाती रही अपने फ़ैसले और हम उस के फैसलों से हर बार रज़ामंद ना हो सके...तेरे दिए हर 


दर्द को,हर तकलीफ को.. क्यों सर झुका कर सज़दा कर दे जब कि उस के लिए हम कसूरवार तक 


नहीं..साँसे छीन लेने का हुक्म सुना देती तो हम हंस कर सांस तुझे समर्पित कर देते...थोड़े कम मे जीने 


को कहती तो भी कहना तेरा मान जाते...पर तेरे ग़ल्त फ़ैसले पे जंग मेरी भी जारी है...वो तो सब कुछ 


जानता है तो तुझे अब मुझ से क्या कहना है... मेरी हिम्मत को दाद दे,ऐ तक़दीर मेरी...जो तूने लकीरो मे 


लिखा तक नहीं वो भी तो मैंने उस खुदा से मांग कर पाया है..अब हारना तुझे है मुझ से क्यों कि जीतने  


का हौसला तेरे हर फ़ैसले पे भारी है...

 आ ना,फिर से लौट चले उसी सुहानी शाम मे...कुछ वादे थे तेरे और कुछ वादे थे मेरे.. तेरे-मेरे बीच मे 


अब किसी दीवार को कोई जगह ना दे..परेशानियां कितनी भी सर पे चढ़े,बस करीब रुकने की वो खास 


नियामत ख़तम ना होने दे..बहुत नसीब से ऐसे रिश्ते जुड़ा करते है..कभी राधा हू मैं तो तू कृष्ण बन संग 


है मेरे..कभी शिव की महिमा को दोहराते हुए,गौरी बन तेरे ही साथ हू मैं..सीता का रूप धर किसी रोज़ 


इसी धरा मे समा जाऊ गी मै,तेरे लिए खुद की अग्नि-परीक्षा तक दे जाऊ गी मै..तेरे लिए जन्मे तो तेरे ही 


लिए ख़तम हो जाये गे...कभी तो यकीन पे यकीन कर..एक अश्क गिरा आंख से और तेरी याद मे हम  


खो से गए..ज़िंदगानी का भरोसा क्या करना,बस लौट के अब तो आ जा..

 हसरतों को दाग दिया तो दर्द पूरे जिस्म मे उतर गया..बेहाल हो गए उस दर्द से मगर उस पे गज़ब यह,


कि हमी से गुफ्तगू करना छोड़ दिया...कैसे समझाए कि तेरे हर दर्द की मरहम तो हमारे पास है..तू खुद 


को रंग ले  बेशक हज़ारो रंगो से मगर जो रंग तुझ पे पक्का चढ़े वो खास रंग तो सिर्फ हमारे ही पास है..


वो रंग जो सदियों से तुझे मुझे रंगता आया है..हम तो भीग चुके है सिर्फ और सिर्फ तेरे रंग मे..पर शायद 


तू ही भूल चूका है उस प्रेम-रंग को जो सदिया दोहराती आई है हर जन्म,हर सांस मे..किस्मत की लकीरों 


पे क्यों हम यकीन करे,हम ने तो तुझे किस्मत की लकीरों से  ही छीना और पाया है...

Sunday 21 March 2021

 वो तूफ़ान से जयदा कही गहरा सैलाब था,बेइंतिहा जख्मों से भरा...इक जख़्म को मरहम लगाते तो दूजा 


साथ-साथ ही चला आता..उस पे सितम यह कि आंख अश्क से जरा ना भरे..और कदम रुकने की जुर्रत 


तक ना करे..पर सब करने के बावजूद तूफ़ान को आना था बहुत तेज़ी से,सो आ ही गया..गहरा तूफान 


और हिचकोलें खाते सपने हमारे...बहुत हिम्मत से उन सब सपनो को जमीं मे दफ़न कर ही दिया...अब 


तूफान के जाने के बाद की वो शांति,अक्सर हम को नींद से उठा देती है..यू लगता है जैसे आज भी वो 


तूफान हमारे जेहन मे है और हम मरहम को साथ लिए उस तूफान को,उस के जख्मों को सहला रहे  


हो..जैसे इस उम्मीद मे कि तूफान थम ही जाये गा...

 मेरी रूह को सिर्फ छू भर ही सको,इतनी भी क़ाबिलियत कहाँ होगी तुम मे..मेरे साथ-साथ इक कदम 


भी चल लो,इतनी हिम्मत भी कहाँ होगी तुम मे..इस ज़िंदगानी को यू ही हंस-बोल कर नहीं जिया हम 


 ने..हकीकत के हर पन्ने को बहुत करीब से पढ़ा है हम ने..कितने दर्द कितनी तकलीफ़े छुपी रही दिल 


 के अंदर,महसूस तो तब कर पाते जो यह दर्द-तकलीफ समझने का अहसास तक भी होता तुम मे..


तुम ने सिर्फ इक औरत ढूंढी हम मे..पर भूल गए इस देह से कही ऊपर हम अपनी रूह के मालिक 


है...जहाँ सौदा क़बूल नहीं होता,यह तुम को समझ आता कैसे..खड़े है और रुके है सदियों से प्रेम के 


उच्तम पायदान पे..ना जाने कितने जन्म तुम्हे लेने होंगे इस रूह को सिर्फ छूने भर के लिए..

Wednesday 17 March 2021

 कितने रूप है इस धरा पे औरत के..हर रूप का अपना ही मायना है..वो भी इक औरत थी,बेशक वो 


तवायफ थी..सुर-ताल पे नाचते जब भी पाँव मुजरे के लिए,उस को अपना मासूम बचपन याद आ जाता..


एक शराबी पिता और फिर ना जाने कौन सा दरिंदा उस को इस माहौल मे छोड़ गया..देह बेशक उस 


की मैली इन दरिंदो ने की,पर रूह का आँचल तो बिलकुल कोरा-पाक था.. शराब मे बहकते किसी के 


कदम उस के पास रोज़ आने लगे,वो अभी भी इक अच्छी औरत थी..मशक्कत बहुत की उस ने बहकते 


कदमो को सही राह पे लाने की..पिता की दशा याद कर के उस ने इस दरिंदे को इस नशे से मुक्त 


किया..कौन कहता है,तवायफ अच्छी नहीं होती..एक साफ़ दिल उस मे भी होता है..देह मैली करने 


वालो,जरा सोचो...रूह का आँचल तो इस सब से बहुत ऊपर साफ़-पाक होता है...

Sunday 14 March 2021

 दुनियाँ से अलग,बहुत अलग होना ही...पहचान है हमारी...उस ने क्या किया,उस ने क्यों किया..बेवजह 


वक़्त ख़राब करना,यह फ़ितरत नहीं हमारी...जो किया बस,कर दिया..ढ़िढोरा पीटना आदत भी नहीं...


खुद को वक़्त दे कर खुद को बनाया,बस इतनी पहचान होती रहे गी हमारी...उतरना है ज़िंदगी की इस 


कसौटी पे खरा तो खुद को तराशना है बेहद जरुरी...लोगो को अपने कदमों मे झुकाना,नहीं मकसद 


हमारा.. पर खुद भी बेवजह झुकना,लिखा नहीं लकीरों मे हमारी...खुद्दार होना खुदा से मिली नियामत 


है हमारी...जो मिला प्यार से,उस को रास्ता ज़िंदगी का बता दिया..जो रहा अकड़ के,उस से रास्ता ही 


अपना बदल लिया...



 माता-पिता के शब्दों का अर्थ अब सही से समझ आया..'' दुनियाँ मे जीना है सर उठा कर तो असूल जो 


मैंने सिखाए है,पल्लू से हमेशा बाँध कर रखना..जब यह दुनियाँ तुझे तेरे अस्तित्व से पहचाने,तेरे सरल


सहज होने से ही तुझे पूरी तरह जाने..जब वो लोग भी तेरे पास लौट आए जो तेरी किसी भी बात से जाने 


अनजाने दूर हो जाए..जब यह दुनियाँ तुझे सिर्फ खोने भर के डर से ही काँप जाए..बेशुमार दुलार-प्यार 


हर जगह से तेरी झोली मे आने लगे..और हां,जितना भी मिले..उस से अभिमानी मत होना..सरलता का 


रूप बन दुनियाँ को हमेशा अपने प्यार से अपना बना लेना..वो दिन जब भी आए गा,तेरे माँ-बाबा का 


सर फक्र से ऊँचा हो जाए गा''..हां माँ-बाबा दुनियाँ दे रही है प्यार हमें,हमारी सरलता के लिए..एक 


अस्तित्व बनाया है आप की बेटी ने,आप के दिए संस्कारो के तले...आप के मान की लाज यह बेटी 


निभाए गी...दुश्मनों को भी अपने अस्तित्व से यक़ीनन जीत पाए गी...''आप की गुड्डी''...

  क्यों आईने ने आज चुपके से कहा..महकना ही तो जीवन है..फिर सिंगार का मायना कहाँ रहा..लबों 


पे मुस्कराहट जब है इतनी गहरी तो इन पे लालिमा का रंग जरुरी ही कहाँ..आंखे जब खुद ही ख़ुशी से 


चमक रही है इतना तो भला काजल का यहाँ काम कहाँ...दिल यू ही जब बिन बात बहक रहा है तो फिर 


किसी साथी की जरुरत ही कहाँ...जब कदम खुद ही खुद के साथ मिला लिए तो ज़माने की अब परवाह 


किस को कहाँ..हां आईने,तूने सच ही कहाँ..''महकना ही तो जीवन है ''..अब ताउम्र तेरे सिवा किसी और 


की भला सुने गे कहाँ...


 इतना खो गए इन वादियों की खूबसूरती मे कि जहाँ के दर्द भूल गए...खुद पे ही इतना हँसे कि लोगों 


का ख़्याल तक भूल गए..यह दरख़्त भी साथ हमारे,हमारी हँसी पे जैसे खिल और गए...धूप के गहरे 


साए से डरना भी भूल गए...विदा लेने लगे जब इन से तो अपनी घनी छाँव मे रहने की ज़िद करने लगे...


क्या कमाल है,इंसा और इन के प्यार मे..दो पल के लिए इन के साथ रहे तो यह संग हमारे मुस्कुरा दिए 


और  हमें रोकने की ज़िद करने लगे..इंसानो को बहुत हंसाया मगर उन की काली नज़र से हम जैसे 


मर से गए..

 यह कौन से कदम थे जो भूले से मुहब्बत की और मुड़ गए...ना थी इस मे कोई मंज़िल ना रास्ते मजबूत 


थे...बस मुहब्बत को आना था सो दबे पाँव दस्तक दे ज़िंदगी मे आ गई...ना कोई ख़ुशी मिली ना उम्मीद 


का कोई दामन था सामने, मगर मुहब्बत तो बस ज़िद पे ही अड़ी थी..कहर तो तब गिरा जब मुहब्बत का 


दरवाजा भरभरा के गिरा..इस मुहब्बत की मिसाल देने आए तो लफ्ज़ यह लिखे..''बेमिसाल सज़ा है बस 


किसी बेकसूर के लिए..जो करता रहा इबादत पाक दिल से मगर सामने वाले ने दरवाज़े अपने बंद कर 


लिए''.... 

Saturday 13 March 2021

 किस ने बिछाए है इतने फ़ूल हमारी राहों मे...कौन है जो देख रहा है रोज़ हम को,छुप-छुप के दूर 


नज़ारो से..कौन है जो हमारे लिए इतना पशेमान और परेशान है..दिखता क्यों नहीं,बोलता क्यों नहीं..


ना बिखेर इतने फ़ूल हमारी राहों मे..ना लिख ''तुम परी हो ''..इन बेजुबान फूलों पे प्यार से..गज़ब दीवाने,


यह फ़ूल है,तुम पे ये ही फ़िदा हो जाए गे...तब ढूंढो गे हम को कैसे,जब यह फ़ूल ही उड़ के तेरी राहों 


मे बिछ जाए गे...ना कर पीछा हमारा,हम इन राहों पे अब कभी लौट के ना आए गे...

 मेरे प्यारे दोस्तों..एक लेखक,एक शायर के लिए..यह बहुत फक्र और गर्व की बात होती है कि वो जो भी लिखता / लिखती है,वो तमाम शब्द सीधे पढ़ने वालो के दिलो को छू जाते है...बहुत बार तो वो शब्द दिल के अंदर रूह को रुला देते है या रूह की गहराइयों तक मे उतर जाते है...हां दोस्तों..आप सभी ने मेरे लेखन को,मेरे तमाम शब्दों / लफ्ज़ो को बेहद मान-सम्मान दिया है..जिस के लिए कुछ भी कहू,कम ही होगा..दोस्तों,बहुत बहुत शुक्रिया आप सभी का..''सरगोशियां'' इक प्रेम ग्रन्थ...जो प्रेम-प्यार,मुहब्बत,इबादत,दुःख-सुख,दर्द-तन्हाई,मिलन-जुदाई,शिकायत का सिलसिला देते लफ्ज़..और भी बहुत कुछ...मेरे दोस्तों,मैं जो भी लिखती हू,वो शायर/लेखक की कल्पना और सदियों से प्रेम की भाषा को दोहराते मधुर/पावन शब्द ही होते है...निवेदन करती हू उन सब से जो इन शब्दों को कभी अपनी ज़िंदगी से तो कभी मेरा ही दुःख-दर्द मान बैठते है...दोस्तों,शायरी को सिर्फ शायरी सोच कर पढ़े..हो सकता है,कभी कोई लफ्ज़/शब्द किसी किसी को अपनी ज़िंदगी से बंधा/जुड़ा लगे..मैं उन सब से माफ़ी चाहती हू कि मैं यानि आप की यह शायरा,किसी के लिए नहीं लिखती..ना अपनी ज़िंदगी का कोई पहलू...प्रेम-प्यार तो सभी के जीवन का एक अटूट बंधन है..बस,मेरे माता-पिता का साया/आशीष कभी-कभी इन शब्दों मे खुद ही घुल जाता है...उन के दिए संस्कार कभी-कभी उभर कर शब्दों मे झलक ही जाते है...इस के इलावा इन शब्दों का किसी भी इंसान से कोई सम्बन्ध नहीं...ना किसी के जज्बातो को ''सरगोशियां'' आहत करती है..जाने-अनजाने किसी को दुःख पंहुचा हो तो सर झुका कर,हाथ जोड़ कर माफ़ी चाहती हू...आप की अपनी शायरा ही  तो हू...आप सब के प्यार-दुलार ने ही इस शायरा को इतने ऊँचे मुकाम पे पहुंचाया है...बहुत बहुत धन्यवाद,शुक्रिया...आदाब..नमस्ते...सत श्री अकाल जी....

 इस पत्थर दिल दुनियाँ मे..तेरे दिल को हम ने सच्चा समझा..सब से अलग और जुदा सा देखा...वक़्त 


की धार दिखाई तूने ऐसी कि तू भी और तेरा दिल भी दुनियाँ जैसा पत्थर ही निकला...नैना बार-बार 


भर आते है..पलकों के किनारे अक्सर गीले हो जाते है...सर्वस्व वार दिया तुझ पे मैंने अपना..तेरे कदमों 


को ज़न्नत अपना माना...याद नहीं कि हम गलत कहाँ थे..याद है इतना कि तेरी रूह के संग जुड़े थे...


फिर तेरे दिल का यू पत्थर होना...मेरे होते तुझ पे, इस गन्दी दुनियाँ का रंग चढ़ गया कैसे..सवाल बहुत 

 

है मेरे पास..पर तू कुछ तो बोले..................

 शाम फिर से घिर आई है..फिर होगा धुंदलका और रात ख़ामोशी का लबादा ओढ़े,चाँद की आस मे 


अकेले वीरान हो जाए गी...हम साथ होंगे उस के,उस के वीरानेपन मे..और अपने चाँद को देखने के 


के लिए तेरे संग-संग जागे गे..अश्क बेशक गिरे गा आंख के इस कोर से..मगर तुझे तेरे दर्द मे रोने ना 


दे गे...शाम को शाम रंगीन ही कहे गे और रात को रात का वो नूर कहे गे,जो उदास तो होती है मगर 


अपने दर्द के साथ  गुजरने के बाद भी  दुनियाँ को नए उजाले से भर जाती है..

 ख़ुशी अंगना उतरी कि बेटा हुआ है..हवा महक उठी कि बेटी लक्ष्मी बन घर अंगना उतरी है..पर यह 


क्या ??जो बेटा नहीं और बेटी भी नहीं..उस के आने से क्यों सब के चेहरे पे परेशानी छाई है..आखिर 


वो भी तो इस दुनियाँ मे मालिक की मरज़ी से ही तो आई है..फिर क्यों नहीं बजे ढोल-नगाड़े..क्यों सब 


के चेहरे ख़ुशी से नहीं चमके..कभी सोचा..सच्ची दुआ लेनी हो तो अपने घर इन को बुलाते है..इन के 


आशीष से हम बेहद खुश हो जाते है..जिन को घर के लोग और माता-पिता तक शर्म के मारे छोड़ देते 


है..भूल रहे है आप सब,बदनसीब वो नहीं,आप सभी है..जरुरत से ज्यादा प्यार-दुलार इन को दीजिए..


इन के लाड़ और नखरे वैसे ही उठाइए,जैसे बेटा-बेटी के उठाते है...इन की आंख से गिरा एक आंसू 


भी,आप को तबाह तक कर सकता है..सोचिये जरा,जिन की दुआ इतनी पाक मानते है आप..उन की 


आह कितनी दूर तक जा सकती है.....याद रहे,कुदरत की लाठी मे कभी आवाज़ तक नहीं होती...

 बहुत दूर तक चलने का वादा किया था तुम से..पर बीच राह साथ तुम्ही ने छोड़ दिया...हर बात पे हर 


बार यही कहना तेरा ''दूर कभी जाना ना मुझ से''...तुझे देने के लिए हर ख़ुशी,हम ने दुनियाँ से नाता सा 


तोड़ लिया...तेरी ही बाहों मे दम निकले,यह ख़्वाब खुद से ही देख लिया..पर देखो ना,आज तुम साथ 


छोड़ चुके हो मेरा और हम को इल्ज़ाम के घेरे मे तुम्ही ने डाल दिया...आंख बरस जाती है यू ही अक्सर 


कि तेरे ही कहे लफ्ज़ो से तू ही मुकर गया...

Thursday 11 March 2021

 यू तो रोज़ ही ज़िंदगी के रंगो से रूबरू होते रहते है...आज सोचा,ज़माने को भी याद दिला दे कि ज़िंदगी 


का रूप असल क्या है...नरम नरम पत्ते,जो भरे है मासूमियत से..उन को एक दिन ऐसे ही ज़िंदगी को 


छोड़ देना है...यू ही किसी रोज़ ज़िंदगी को छोड़ देना है..तो क्यों करे इस से शिकवा,क्यों कहे तूने कुछ 


नहीं दिया..अरे पगले,कितना कुछ तो दिया है..अब तेरी ही समझ ना आए तो यह ज़िंदगी क्या करे..रोनी 


सूरत लिए मरा-मरा जीता है..ईंट-पत्थर-दौलत को पाने के लिए खुद को बर्बाद कर लेता है..बिन नसीब 


कब किसी को कुछ मिलता है..मेरे बाबा-माँ सच ही कहते थे '' जितना है अभी पास तेरे,उस मे जीना 


सीख..बस अपने असूल मरने से इक मिनट पहले भी ना छोड़..हिम्मत को साथ रख के चलना नहीं 


तो यह ज़माना तुझे नोच के खा जाए गा..सर उठा के जी...दौलत-पत्थर का लालच कभी ना कर ''...

Wednesday 10 March 2021

 लिख रहे लफ्ज़ तो पन्ने क्यों तेरे आने की आहट से,बस मे हमारे नहीं  है आज...हर लफ्ज़ पे जैसे तेरा 


नाम पुकार रहे हो..तेरी हर शरारत,तेरी हर अदा चुपके से इन पन्नों पे कैद कर रहे है आज...सुभान 


अल्लाह,यह भी तेरे ही हो गए है आज...अब बता तेरी शिकायत कहा लिखें,यह तो तेरे ही रंग मे रंग 


गए है आज...हम जानते है कि इतने सरल भी नहीं है आप..पर हमारे ही पन्नों पे राज़ करने की कोशिश 


इस तरह करे गे आप..जनाब,किसी ग़लतफ़हमी मे ना रहे,इन पन्नों को कस के थामा है हम ने,तुझ से 


मिलने के बाद...

 वो बोले तो कुछ नहीं,हमेशा की तरह...मगर उन की ख़ामोशी की जुबां हम समझ गए,हमेशा की तरह..


यू ही चुप रहना..लबों की मुस्कराहट को हमेशा लबों मे कैद रखना...''दिल की गिरह कभी तो संग 


हमारे खोलिए..खोले गे नहीं तो दर्द से  यू ही बेहाल रहे गे,हमेशा के लिए ''...फैसला छोड़ दिया अब 


मरज़ी पे तेरी..तुझे दर्द से रिहा होना है या दर्द के साए मे खो जाना है...हसरतें भी कभी कभी बोल जाती 


है..एक तू ही पागल है जो लबों को सी कर रखता है..हमेशा की तरह...

 नींद के गहरे खुमार मे ही थे कि इक छोटा सा टुकड़ा धूप का,खिड़की के रास्ते हमारे चेहरे पे चमक 


आया..नींद की खुमारी  मे,कब सूरज निकल आया हमारे रुखसार से मिलने..उस नन्हे से टुकड़े को 


हम ने पकड़ना चाहा,पर वो शरारत से हमारे हाथ ना आया...इतनी आंख-मिचौली और हमारे ही साथ..


कुदरत तेरे इस रंग पे हम को बेइंतिहा प्यार आया..देख के इस टुकड़े को सोचते रहे बहुत देर..कितना 


बहादुर है बेशक नन्हा सा है...फिर हम क्यों इस दुनियाँ की चालाकियों के हाथ आ जाए..कुछ तो और 


सिखा गया यह छोटा सा टुकड़ा धूप का और बहादुर अपने से जयदा हम को और बना गया...

Monday 8 March 2021

  बदल रहा है मौसम तो क्या गम है..कम से कम इस के बदलने का कोई वक़्त तो है...इंसानो से इस 


को मिलाए कैसे,यह इंसानो की तरह दोहरे चेहरे का तो नहीं है...यह इंसान वक़्त-बेवक़्त यू ही बदल 


जाया करते है..कुछ थोड़ा सा भी बुरा लग जाए,मौसम से भी जयदा पलट जाया करते है...मन-मुताबिक 


इन के चलते रहो,इन की हर अच्छी-बुरी बात मानते रहो तो यह साथ चलने का वादा भी कर लेते है...


बेशक वो वादा, वादा रहे ना रहे..यह बेमौसम बरस भी जाया करते है..कभी बिठा देते है सर पे तो कभी 


यू ही राह बीच पटक भी दिया करते है...

 दिल से इक आह ...............निकली और विलीन आसमाँ मे हो गई...जाते-जाते आँखों के ढेरों आंसू 


भी साथ ले गई...वो आह से कही जयदा प्रेम की तपस्या थी..सदियों से अपनी रूह से उस की रूह को 


खोजती बेनाम सी कोई ज़िंदगी थी...दबे पाँव सी सारी दुनियाँ मे घूमती,वो तो कोई दिव्य आत्मा थी...फिर 


किसी ने दिया हाथ अपने साथ का..झूम के अपने ही दायरे मे बेहद ही खुश थी...कितने ही सपने देख 


लिए,एक ही रात मे...सपने पूरे होने की इंतज़ार मे,वो साथ तो हाथ छुड़ा कर ही चला गया...सपने रंगीन 


दिखा कर,अपनी नगरी लौट गया...सैलाब बहा तो खूब ही बहा ....फिर निकली दिल से गहरी 


आह .............और आसमाँ मे विलीन हो गई.....

Sunday 7 March 2021

 हां..मैं औरत हूँ..अपनी कोख से दुनियाँ मे लाने वाली,उस ईश्वर की भेजी दूत हूँ...दुनियाँ के थपेड़ों से 


बचाने वाली इक ज़न्नत हूँ...ईश्वर कब रोज़-रोज़ इस धरा पे आया करते है..भेज औरत को इस धरा पे 


बार-बार वो अपनी याद दिलाया करते है...ना जाने कितने सितारे इस धरती पे उतार दिए मैंने...शेर 


हज़ारो इस धरा पे बिखरा दिए मैंने...मेमना बोल कर दुनियाँ ने बहुत अपमान किया औरत का...जिन 


को शेर बनाया उन्हों ने ही गर्त मे धकेल दिया...अंदर भबका लावा,तब सब को होश आया...भूल गए 


रगो मे मेरी कुदरत का नूर बहता है...जो आ जाऊ अति पे,विनाश होना निश्चित है....

 औरत...कौन है ? उस के जन्म पे कहते है लोग,ओह्ह..बेटी हुई है..कोई बात नहीं..

पूछे कोई उन से,क्या बेटा पैसों की पोटली ले कर जन्म लेता है...

और जो ना है बेटा है और ना बेटी ही..वो भी इस ज़माना मे नाम रौशन करता है..

माता-पिता के घर बड़ी होते-होते,यही याद दिलाया जाता है..तुझे अपने घर जाना है..

ब्याह के बाद पति भी हज़ारो बार एहसास दिला देता है कि यह घर भी उस का नहीं...

औरत हज़ारो काम कर के और पूर्ण-समर्पित हो,अपने पति-ससुराल के लोगो की दिल से सेवा करती है...

अपने बच्चो को किसी भी कमी का एहसास ना दिला,उन को अपने दुलार से सींचती है..

हर किसी की बीमारी-दुःख मे साथ खड़ी रहती है..

कितने दुखो-तकलीफो से जब औलाद को बड़ा करती है तो यही औलाद कहती है,तूने हमारे लिए किया ही क्या है..आंख का पानी पी कर वो फिर भी फ़र्ज़ निभा देती है...पर दिल का एक कोना तोड़ देती है..

ब्याह के बाद बेटा-बहू कहते है,यह घर तो हमारा है..

जिस को औरत अपने खून-पसीने से बनाती है..सेवा का मोल किस ने जाना...

अब उस का घर कौन सा है,यह सवाल वो खुद से बार-बार पूछ लेती है...

पति का घर है..बेटा का भी घर है..और उस का अपना घर ??

फिर भी चुप रहती है और फिर से दिल का एक कोना और तोड़ देती है...

औरत एक प्रेयसी-प्रेमिका भी तो है...पर मर्द के लिए वो सिर्फ एक जिस्म ही होती है...

मर्द अपने घर की औरत को छुपा के रखते है,पर बाहर दूसरी औरत मे सिर्फ जिस्म और उस की खूबसूरती ही ढूंढ़ते है...

औरत के पूर्ण समर्पण को प्रेमी कब समझ पाते है...वो तो उस के लिए जिस्म-हवस से जयदा कुछ भी तो नहीं...

 कहते है आज,औरत के लिए दरवाज़े बहुत खुले है...

पर सच मे आज भी एक नन्हा सा झरोखा ही उस के नसीब मे है...

वो भी उस को उसी की ताकत और संघर्ष से मिला है...

हां,यह सच है..औरत जब तक कमजोर है..लोग उस का जीना दुशवार कर देते है...

उस को दबाने की कोशिश मे,उस को पागल तक करार कर देते है...

पर औरत उस ईश्वर की बनाई वो नायाब कृति है..जो बहती रहती है पाक झरने के तरह..

किस ने पूरी तरह समझा उस को...किस ने भरपूर प्यार दिया उस को...

कुछ अपवाद को छोड़ कर....औरत एक खूबसूरत कहानी है..

जान लेती है जब सब का कुलषित मन तो सब भूल कर अपने असूलों पे आ जाती है..

हर रिश्ते को ताक पे रख कर वो चंडी-रूप ले लेती है...

कमजोर नहीं वो तो आज भी झाँसी की रानी है..

औरत,जिस ने दिए ज़माने को राजा-महाराजा..भगत सिंह से पुत्र दिए..

और अहिल्या सी बुलंद नारी भी...

वो औरत जननी है..ईश्वर की इक मरज़ी है...

ना बोले तो भी तूफान उठा सकती है...बस इतना कहू....

एक अकेली औरत हज़ारो मर्दो पे भारी है......शुभ महिला दिवस.........शुभकामनाएं........



 मुहब्बत के जिस दर्द से बेहाल है आप...वो दर्द भी हम से पाया है आप ने..कितनी ही रातें गुजारी हम ने 


बदल-बदल के करवटें,यह आप का दिल कब जान पाया...बदहवासी के चलते,किस वक़्त हम ने खुदा 


से तेरे लिए ऐसा दर्द मांग लिया..जिस दर्द से हम गुजर रहे है,बस उस से जयदा दर्द हम ने खुदा से तेरे 


लिए भी मांग लिया..सोच जरा,हमारी यह मुहब्बत रूह के दरीचों से इतनी जुड़ गई कि खुदा ने तुझे दे 


कर दर्द,हमारी इल्तिज़ा मंजूर कर ली..संभल जा अब तो जरा..खुदा ने जब इतनी हमारी सुनी,तो कुछ 


इल्तिज़ा तू भी उस से कर...मुहब्बत को दे नया रास्ता और मेरे संग-संग चल..

 किसी भी खूबसूरत चेहरे की तारीफ कर देना,शौक था उस का..किसी को अपनी मेहबूबा यू ही कह 


देना,जनून था उस का..फ़िदा है आप पे,ऐसे ही  कितने गज़ब लफ्ज़, कितनों को बोल कर उन्हें रिझा 


देना..बस यही कातिलाना अंदाज़ था उस का..किसी का दिल कितना टूटा होगा,उस से जिस्मानी प्यार 


कर के..यह कब कहाँ सोचा था उस ने..फिर दिन एक ऐसा भी आया..दिल्लगी कितनों से करने वाला 


अब खुद किसी पे सच मे दिल हार बैठा..बेपनाह मुहब्बत हो गई इस बार उस को किसी ऐसे से,जो उस 


से उस का ही दिल चुरा पाया...कुदरत,तेरे रंग हज़ार...दिल्लगी करते-करते अब जा कर उसे,मुहब्बत 


का मायना समझ आया..

Saturday 6 March 2021

 बेहद ही प्यार से वो लिख रहे थे,हमारी खूबसूरती पे इक खूबसूरत सी उन की पहली नज़्म..पढ़ कर 


आंख हमारी नम हो गई..गला रूँघ गया यह सोच कर कि कोई हम को भी इतना प्यार कर सकता है..


लग गए सीने से उन के और मुश्किल से इतना बोले,''नज़्म बेशक कभी ना लिखना हम पे..मगर हमारे 


सिवा किसी और से कभी ना प्यार करना..मेरे और सिर्फ मेरे ही बन कर रहना..दिल मे मेरे मेरी ही 


धड़कन बन कर सदा रहना..वफ़ा की जोत मेरे संग-संग तुम भी जलाए रखना..ज़िंदगी खत्म भी हो 


जाए तो रूह के साथ बंधे रहना''...






Wednesday 3 March 2021

 कजरारे नैना बिन काजल ही वार कर गए...पलकों के तीखे किनारे उन के दिल को चीर-चीर गए...कहा 


तो कुछ भी नहीं इन लबों ने मगर बिन कहे वो सब समझ गए..हम ने लहराई चुनरी हवा मे और वो हंस 


के हमारे सदके खुद ही पास हमारे चले आए...अचानक से बादल आए और बरसा कर बौछारें हम दोनों 


को प्यार के सैलाब मे भिगो-भिगो गए...क्या कहिए गा ऐसे प्रेम को..जो बिन जुबान दिए प्रेम को साबित 


कर गया..तभी तो कहते है ''प्रेम की कोई भाषा होती कहां है..जो ख़ामोशी को भी सुन ले,यह इबादत की 


वो चरम सीमा होती है''.....

 अपने दिल पे लगा के ताला और चाबी दे कर हमें वो बोले...आज के बाद तुम्हारे सिवा इस दिल मे कोई 


और ना आ पाए गा..रहे गे तुम्हारे सदा,किसी और के कभी ना अब हो पाए गे...सातवें आसमां पे जैसे 


हम पहुंच गए..प्यार मे बस उन्ही के जैसे ग़ुम ही हो गए...अरसा कुछ ही बीता तो एहसास हुआ,कितना 


बदल गए है वो...जो हर पल मे कभी साथ हमारे थे वो महीनों कही खो गए थे अब..वक़्त की कमी का 


एहसास दिला दूरी बना ली हम से और काम का रोना रो कर महीनों गायब से हो गए..अब समझे हम 


कि चाबियां तो इक ताले की और भी बन जाती है..नीयत गर साफ़ ना हो तो दूरियाँ और बड़ जाती है..

 सोलह सिंगार करते-करते मिलन की बेला तो निकल गई...रूप की झंकार जब तक महकी,भोर अपना 


आंचल लिए आंगन मे पसर गई...आईना देखा,सूरत तो संवर गई...किस काम के रहे यह सोलह सिंगार,


जब साजन उस से गुफ्तगू किए बिना नींद मे खो गए..भोर के आंचल मे जब वो मिले हम से...यू एहसास 


हुआ कि हम तो उन के लिए कुछ भी नहीं...'' सोलह सिंगार की क्या जरुरत है,जब हम ने आप को 


सादगी मे चाहा है...मिटे थे सिर्फ तुम्हारे भोलेपन पे,यह सिंगार तो हमारी दुश्मन है''....आंख भर आई 


सुन पिया की बात..अब सादगी और भोलापन ही समर्पण की बेला है....

Tuesday 2 March 2021

 देती रह कितनी ही उथल-पुथल ऐ ज़िंदगी..तुझ से हार जाए,यह कब सीखा है हम ने...कोशिश भी ना 


करना,हम को अपने क़दमों मे झुकाने की..क्यों कि हम ने तो तुझे हर पल अपने सर-आँखों पे ही 


बिठाया है...तूने बेइंतिहा दर्द-तकलीफ़े दे कर भी हम को देख लिया ना...शिकन भी तू देख ना पाई 


हमारे रुखसार पे..आगाह तुझे ही कर रहे है,संभल जा ऐ ज़िंदगी..क्यों कि साथ हमारे हर पल उस 


मालिक का साया साथ रहता है..तू देती है दर्द तो वो साथ-साथ हम को ढेरों नियामतें देता रहता है..


अब देखना तो यह है कि जीते गा हमारा विश्वास उस मालिक के लिए या तेरा झूठा गरूर  जीते गा..

Monday 1 March 2021

 बहुत सज़-धज़ के वो निकलने लगे, घर से किसी नए साथी की तलाश मे...खुद को देखते रहे आईने मे  


थोड़ी थोड़ी देर मे...अंदर तक जानते है उन को..शरारती मुस्कान बिखरी हमारे रुखसार पे,जो बोल 


उठी...सिर्फ दो पल का साथ पाने के लिए,क्यों मशक्क्त इतनी..मौसम के वो फूल दूर तक आप का 


साथ नहीं निभा पाए गे...तो क्यों इतने सज़े-धज़े उन पे निसार होने चले...हर किसी को बाबू,जानू और 


हीरो कह कर बुलाए गे तो इश्क के बाज़ार मे आप के भाव कौड़ियों के  हो जाए गे..









 '' दिल अपना लुटा दिया आप की मुस्कराहट पे हम ने ''...सुन के यह, हमारी मुस्कुराहट और भी गहरी 


हो गई..जनाब,मुस्कराहट पे फ़िदा है,जरा हमारी ज़िंदगी मे,हमारे साथ मुश्किल रास्तों पे भी फ़िदा हो 


कर चलिए ना..जान जाए गे कि यह खूबसूरत सी मुस्कराहट हम ने हज़ारो कष्ट सह कर पाई है...वो 


तमाम दर्द जो झेले हम ने,वो बेनूर रातें जो रो कर काटी हम ने..उन का इतिहास नहीं सुने गे,इतने ही  


फ़िदा हो कर...यह मुस्कराहट तब भी थी और आज भी कायम है..फर्क सिर्फ इतना सा है..तब आंसुओ 


के घेरे मे  रहते मुस्कुराते थे और आज दिल के खुश होने से मुस्कुराते है...

 देख परेशानी मे हम को वो प्यार से बोले..''मैं हू ना साथ तेरे''...सुन के यह लफ्ज़,हम परेशानी भूल गए 


अपनी...यह बावरा मन हमारा साथ क्या दे पाए गा...जिस को ज़िंदगी के हर मोड़ पे हम ही सँभालते 


आए है,वो....? मुस्कुराए और बोले उन से,''तुम जैसों को कब से सँभालते आए है..तेरे दर्द को समझ 


तेरे अश्क तक पोंछते आए है..सुन के हमारी परेशानी,तुम तो अंदर से हिल जाओ गे..बस खुश हुए यह 


सुन के कि इतनी ही लफ्ज़ बोलने की ताकत जुटा ली तुम ने..हां,जाना..अब हम खुद ही संभल जाए गे''..

 कैसे कह दे कि यह हवाएं सिर्फ गेसुओं को ही उलझा देती है...इन की ताकत तो है इतनी कि यह अपने 


तेज़ बहाव से यादें तक उड़ा देती है...संभाल कर रख लेती है सिर्फ मीठी यादें और ताकत से अपनी, दिल 


को और मजबूत बना देती है...खुश रहने की,खुश होने की कोई वजह ना भी हो तो वजह भी हज़ारो बना 


देती है...अब क्यों ना चले संग-संग इन के..यह तो हम को हमी से मिलवाती रहती है...गज़ब पे गज़ब तो 


यह भी कि छुप के रो भी दे तो आंसू भी सुखा देती है...

 कितनी ही रंगबिरंगी तेरी यादें ज़ेहन मे है मेरे....अक्सर गुदगुदा जाती है मुझे...यूं ही कभी तेरी किसी 


बात पे हंस दिए..यूं ही कभी-कभी तेरी किसी गुस्ताखी पे ही मुस्कुरा दिए..चलते-चलते कदम ठिठक 


जाते है,यूं लगता है आज भी तू मेरे पीछे-पीछे है...तेरा इंतज़ार करते रहते है,दीवाने बादल की तरह..


तू मिले तो जम के बरस जाए तेरे ही रुखसार पे सावन की तरह...हम सा कोई ना मिले गा तुझे..जो 


अजीब सी कशिश हम मे है,वो तुझ जैसे पागल को मिले गी भी नहीं..जानती हू,तेरी तलाश किसी और 


के लिए आज भी ज़ारी है..ढूंढ -ढूंढ के जब थक जाए तो लौट आना पास मेरे....

  कुछ भी तो नहीं है हम तेरे,पर बहुत कुछ भी है...धुंध की चादर मे लिपटी इक ओस ही तो है...तेज़ धूप 


की लो से जो गायब हो जाए,ऐसे ही पर्दानशीं ही तो है...कभी है बरसता सावन तो कभी बादलों की ओट 


मे छुपा चाँद भी है..जिसे ढूंढे तेरी नज़र..दिखे मगर नज़र तुझे फिर भी ना आए,वही पारदर्शी रूप ही तो  


है ...अब यह ना कह कि कोई जादूगर है हम..दोष तो तेरी ही नज़र मे है,वरना हम तो सदा ही तेरे दिल 


के आईने मे है..अब तेरा आईना ही साफ़-पाक नहीं तो यह दोष भी तेरा ही तो है..

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...