Wednesday, 31 March 2021

 कहाँ कहाँ ना ढूंढा आप को..गहरी मशक्कत के बाद आप के शहर का नाम ढूंढ लिया हम ने..अब 


सवाल तो यह था कि कैसे मिले आप से और कैसे इबादत का खज़ाना लुटा दे आप पे..इक शहर आप 


का और इक हम अकेले शहर मे आप के..किस किस का घर ढूंढ़ते आप तक पहुंचने के लिए..पर हम 


तो हम ही है ना..आप तक पहुंचना जब लगा मुनासिब नहीं है तो इक ख्याल मन मे आया..दे आए पूरे ही 


शहर को दुआ का सारा खज़ाना अपना,इस उम्मीद मे कि यह दुआ खुद-ब-खुद आप तक पहुंच ही जाए 


गी...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...