दिल से इक आह ...............निकली और विलीन आसमाँ मे हो गई...जाते-जाते आँखों के ढेरों आंसू
भी साथ ले गई...वो आह से कही जयदा प्रेम की तपस्या थी..सदियों से अपनी रूह से उस की रूह को
खोजती बेनाम सी कोई ज़िंदगी थी...दबे पाँव सी सारी दुनियाँ मे घूमती,वो तो कोई दिव्य आत्मा थी...फिर
किसी ने दिया हाथ अपने साथ का..झूम के अपने ही दायरे मे बेहद ही खुश थी...कितने ही सपने देख
लिए,एक ही रात मे...सपने पूरे होने की इंतज़ार मे,वो साथ तो हाथ छुड़ा कर ही चला गया...सपने रंगीन
दिखा कर,अपनी नगरी लौट गया...सैलाब बहा तो खूब ही बहा ....फिर निकली दिल से गहरी
आह .............और आसमाँ मे विलीन हो गई.....