Wednesday 17 March 2021

 कितने रूप है इस धरा पे औरत के..हर रूप का अपना ही मायना है..वो भी इक औरत थी,बेशक वो 


तवायफ थी..सुर-ताल पे नाचते जब भी पाँव मुजरे के लिए,उस को अपना मासूम बचपन याद आ जाता..


एक शराबी पिता और फिर ना जाने कौन सा दरिंदा उस को इस माहौल मे छोड़ गया..देह बेशक उस 


की मैली इन दरिंदो ने की,पर रूह का आँचल तो बिलकुल कोरा-पाक था.. शराब मे बहकते किसी के 


कदम उस के पास रोज़ आने लगे,वो अभी भी इक अच्छी औरत थी..मशक्कत बहुत की उस ने बहकते 


कदमो को सही राह पे लाने की..पिता की दशा याद कर के उस ने इस दरिंदे को इस नशे से मुक्त 


किया..कौन कहता है,तवायफ अच्छी नहीं होती..एक साफ़ दिल उस मे भी होता है..देह मैली करने 


वालो,जरा सोचो...रूह का आँचल तो इस सब से बहुत ऊपर साफ़-पाक होता है...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...