कितने रूप है इस धरा पे औरत के..हर रूप का अपना ही मायना है..वो भी इक औरत थी,बेशक वो
तवायफ थी..सुर-ताल पे नाचते जब भी पाँव मुजरे के लिए,उस को अपना मासूम बचपन याद आ जाता..
एक शराबी पिता और फिर ना जाने कौन सा दरिंदा उस को इस माहौल मे छोड़ गया..देह बेशक उस
की मैली इन दरिंदो ने की,पर रूह का आँचल तो बिलकुल कोरा-पाक था.. शराब मे बहकते किसी के
कदम उस के पास रोज़ आने लगे,वो अभी भी इक अच्छी औरत थी..मशक्कत बहुत की उस ने बहकते
कदमो को सही राह पे लाने की..पिता की दशा याद कर के उस ने इस दरिंदे को इस नशे से मुक्त
किया..कौन कहता है,तवायफ अच्छी नहीं होती..एक साफ़ दिल उस मे भी होता है..देह मैली करने
वालो,जरा सोचो...रूह का आँचल तो इस सब से बहुत ऊपर साफ़-पाक होता है...