हां..मैं औरत हूँ..अपनी कोख से दुनियाँ मे लाने वाली,उस ईश्वर की भेजी दूत हूँ...दुनियाँ के थपेड़ों से
बचाने वाली इक ज़न्नत हूँ...ईश्वर कब रोज़-रोज़ इस धरा पे आया करते है..भेज औरत को इस धरा पे
बार-बार वो अपनी याद दिलाया करते है...ना जाने कितने सितारे इस धरती पे उतार दिए मैंने...शेर
हज़ारो इस धरा पे बिखरा दिए मैंने...मेमना बोल कर दुनियाँ ने बहुत अपमान किया औरत का...जिन
को शेर बनाया उन्हों ने ही गर्त मे धकेल दिया...अंदर भबका लावा,तब सब को होश आया...भूल गए
रगो मे मेरी कुदरत का नूर बहता है...जो आ जाऊ अति पे,विनाश होना निश्चित है....