Sunday 14 March 2021

  क्यों आईने ने आज चुपके से कहा..महकना ही तो जीवन है..फिर सिंगार का मायना कहाँ रहा..लबों 


पे मुस्कराहट जब है इतनी गहरी तो इन पे लालिमा का रंग जरुरी ही कहाँ..आंखे जब खुद ही ख़ुशी से 


चमक रही है इतना तो भला काजल का यहाँ काम कहाँ...दिल यू ही जब बिन बात बहक रहा है तो फिर 


किसी साथी की जरुरत ही कहाँ...जब कदम खुद ही खुद के साथ मिला लिए तो ज़माने की अब परवाह 


किस को कहाँ..हां आईने,तूने सच ही कहाँ..''महकना ही तो जीवन है ''..अब ताउम्र तेरे सिवा किसी और 


की भला सुने गे कहाँ...


दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...