Saturday 13 March 2021

 मेरे प्यारे दोस्तों..एक लेखक,एक शायर के लिए..यह बहुत फक्र और गर्व की बात होती है कि वो जो भी लिखता / लिखती है,वो तमाम शब्द सीधे पढ़ने वालो के दिलो को छू जाते है...बहुत बार तो वो शब्द दिल के अंदर रूह को रुला देते है या रूह की गहराइयों तक मे उतर जाते है...हां दोस्तों..आप सभी ने मेरे लेखन को,मेरे तमाम शब्दों / लफ्ज़ो को बेहद मान-सम्मान दिया है..जिस के लिए कुछ भी कहू,कम ही होगा..दोस्तों,बहुत बहुत शुक्रिया आप सभी का..''सरगोशियां'' इक प्रेम ग्रन्थ...जो प्रेम-प्यार,मुहब्बत,इबादत,दुःख-सुख,दर्द-तन्हाई,मिलन-जुदाई,शिकायत का सिलसिला देते लफ्ज़..और भी बहुत कुछ...मेरे दोस्तों,मैं जो भी लिखती हू,वो शायर/लेखक की कल्पना और सदियों से प्रेम की भाषा को दोहराते मधुर/पावन शब्द ही होते है...निवेदन करती हू उन सब से जो इन शब्दों को कभी अपनी ज़िंदगी से तो कभी मेरा ही दुःख-दर्द मान बैठते है...दोस्तों,शायरी को सिर्फ शायरी सोच कर पढ़े..हो सकता है,कभी कोई लफ्ज़/शब्द किसी किसी को अपनी ज़िंदगी से बंधा/जुड़ा लगे..मैं उन सब से माफ़ी चाहती हू कि मैं यानि आप की यह शायरा,किसी के लिए नहीं लिखती..ना अपनी ज़िंदगी का कोई पहलू...प्रेम-प्यार तो सभी के जीवन का एक अटूट बंधन है..बस,मेरे माता-पिता का साया/आशीष कभी-कभी इन शब्दों मे खुद ही घुल जाता है...उन के दिए संस्कार कभी-कभी उभर कर शब्दों मे झलक ही जाते है...इस के इलावा इन शब्दों का किसी भी इंसान से कोई सम्बन्ध नहीं...ना किसी के जज्बातो को ''सरगोशियां'' आहत करती है..जाने-अनजाने किसी को दुःख पंहुचा हो तो सर झुका कर,हाथ जोड़ कर माफ़ी चाहती हू...आप की अपनी शायरा ही  तो हू...आप सब के प्यार-दुलार ने ही इस शायरा को इतने ऊँचे मुकाम पे पहुंचाया है...बहुत बहुत धन्यवाद,शुक्रिया...आदाब..नमस्ते...सत श्री अकाल जी....

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...