Wednesday 10 March 2021

 नींद के गहरे खुमार मे ही थे कि इक छोटा सा टुकड़ा धूप का,खिड़की के रास्ते हमारे चेहरे पे चमक 


आया..नींद की खुमारी  मे,कब सूरज निकल आया हमारे रुखसार से मिलने..उस नन्हे से टुकड़े को 


हम ने पकड़ना चाहा,पर वो शरारत से हमारे हाथ ना आया...इतनी आंख-मिचौली और हमारे ही साथ..


कुदरत तेरे इस रंग पे हम को बेइंतिहा प्यार आया..देख के इस टुकड़े को सोचते रहे बहुत देर..कितना 


बहादुर है बेशक नन्हा सा है...फिर हम क्यों इस दुनियाँ की चालाकियों के हाथ आ जाए..कुछ तो और 


सिखा गया यह छोटा सा टुकड़ा धूप का और बहादुर अपने से जयदा हम को और बना गया...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...