Wednesday 31 March 2021

 तक़दीर सुनाती रही अपने फ़ैसले और हम उस के फैसलों से हर बार रज़ामंद ना हो सके...तेरे दिए हर 


दर्द को,हर तकलीफ को.. क्यों सर झुका कर सज़दा कर दे जब कि उस के लिए हम कसूरवार तक 


नहीं..साँसे छीन लेने का हुक्म सुना देती तो हम हंस कर सांस तुझे समर्पित कर देते...थोड़े कम मे जीने 


को कहती तो भी कहना तेरा मान जाते...पर तेरे ग़ल्त फ़ैसले पे जंग मेरी भी जारी है...वो तो सब कुछ 


जानता है तो तुझे अब मुझ से क्या कहना है... मेरी हिम्मत को दाद दे,ऐ तक़दीर मेरी...जो तूने लकीरो मे 


लिखा तक नहीं वो भी तो मैंने उस खुदा से मांग कर पाया है..अब हारना तुझे है मुझ से क्यों कि जीतने  


का हौसला तेरे हर फ़ैसले पे भारी है...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...