कुछ भी तो नहीं है हम तेरे,पर बहुत कुछ भी है...धुंध की चादर मे लिपटी इक ओस ही तो है...तेज़ धूप
की लो से जो गायब हो जाए,ऐसे ही पर्दानशीं ही तो है...कभी है बरसता सावन तो कभी बादलों की ओट
मे छुपा चाँद भी है..जिसे ढूंढे तेरी नज़र..दिखे मगर नज़र तुझे फिर भी ना आए,वही पारदर्शी रूप ही तो
है ...अब यह ना कह कि कोई जादूगर है हम..दोष तो तेरी ही नज़र मे है,वरना हम तो सदा ही तेरे दिल
के आईने मे है..अब तेरा आईना ही साफ़-पाक नहीं तो यह दोष भी तेरा ही तो है..