Sunday 28 February 2021

 '' सरगोशियां.इक प्रेम ग्रन्थ ''...ज़ाहिर सी बात है कि यह ग्रन्थ प्रेम की तमाम भावनाओं से भरपूर ही होगा...प्रेम....एक ऐसा शब्द...प्रेम एक ऐसी भावना...जो सिर्फ इंसानो मे ही नहीं,सारे जीवों मे देखने को मिलती है...दोस्तों,बहुत बार यह ''सरगोशियां'' समाज के कितने ही अच्छे-बुरे रूप को भी उजागर करती है..जिस की जानकारी सभी को है...मेरी गुजारिश है अपने उन सब दोस्तों,शुभचिन्तकों से..जो मेरी ''सरगोशियां'' पढ़ते है...वो समाज की इन कुरीतियों से इतने प्रभावित और सवेंदनशील हो जाते है कि कुछ भी समीक्षा दे डालते है...दोस्तों,मैं एक लेखिका हू,जो हर पहलू को उजागर करती है,अपनी लेखनी मे...बहुत बार लिख चुकी हू कि इन तमाम शब्दों का ना तो किसी खास इंसान से वास्ता है और ना इस समाज मे निजी तौर पे किसी ऐसी शख्सियत को जानती हू... जानती हू,लेखक / शायर की कलम मे इतनी ताकत जरूर होनी चाहिए कि लोग उन शब्दों मे अंदर तक खो जाए..पर किसी के भी निजी जीवन से ना जोड़े...अच्छा तो लगता है जब मेरे लिखे शब्दों की गहराई आप सभी के दिलो को छू जाती है..आप सब ''सरगोशियां '' को प्यार करते है तो मेरा सर श्रद्धा से झुक जाता है,आप सभी के प्यार-सम्मान के आगे...हां,अपने माता-पिता के लिए कभी-कभी जरूर लिखती हू,जो सच मे मेरे ही जीवन से जुड़ा है..उन के सिद्धांत,उन के संस्कार ही है जो आज मुझे लेखनी की ताकत देते है..लेकिन,''सरगोशियां,इक प्रेम ग्रन्थ'' मेरे जीवन का वो सपना,वो जनून है..जो मुझे रोज़ ही हज़ारो शब्द लिखने के लिए प्रेरित करता है...मेरे इस लेखन-जनून के साथ जुड़ने के लिए,आप सभी का बेहद बेहद शुक्रिया......आप की अपनी सी  ''शायरा ''.......

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...