Monday, 15 February 2021

 प्यार मे काम क्या रंजिशों का..जो  प्यार दे गया उजाला रूह के दरवाज़े पे,उस मे नफरत का भला 


काम क्या...जैसे सूरज कभी अस्त हो कर भी अस्त नहीं होता..जैसे चाँद दिन की रौशनी के बाद रोज़ 


उदय होता...जैसे आसमां कभी धूमिल नहीं होता..सितारें जो सदियों से यू ही चमकते आए है...फिर प्रेम 


के अनमोल धागें बिखरे गे कैसे...रूह का उजाला इन मे अँधेरा क्यों दे गा..प्यार तो वो अहसास है जो 


जीवन के बाद भी कायम रहता है..जिस्म की माटी बेशक दफ़न हो जाए मगर प्यार यह सदियों तल्क़ यू 


ही चलता जाए...तभी तो कहते है,प्यार मे रंजिशों का क्या काम...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...