यह गुलाबी फूल और बेख्याली मे तुझे यू ही छू लेना...लबों का थरथराना मगर तुझ से कुछ बता ना पाना...
यह फूल, रंग गुलाबी से क्यों चमकीले इतने हो गए...शायद तुझे मेरी बात बिन कहे समझ आ जाए,
इसलिए शोख चमक से यह भी तुझी पे क़ुरबान हो गए...पत्थर है तू,पाषाण है तू...मगर इन फूलों की
तरह हम तो तेरे प्यार मे नाज़ुक़-नाज़ुक़ से हो गए..चलते है तो यह हमारी राह मे बिछ-बिछ जाते है..
तेरी तरह पत्थर नहीं,यह तो हमारे नाज़ भी उठाते है...