मिज़ाज़ मौसम का आज बहुत गर्म सा है..रेगिस्तान की रेत की तरह उड़ता-उड़ता सा है..यह क्या,देख
हमें रेत का ग़ुबार हमी और चला आया...गुस्सा हम को भी आया...समझ गए,तेरे गर्म मिज़ाज़ का असर
यहाँ तक भी आया..सूरज की ताप को इक हल्का सा इशारा हम ने ऐसा दिया..रेत की धूल का रुख तेरे
ही शहर मोड़ दिया...अब बारी तेरे सुलगने और जलने की है..समझ जरा,यह मौसम और सूरज का ताप
कभी-कभी तेरी सुन लेता है..वरना यह तो हमेशा हमारे इशारो पे ही चला करता है...