सितारों से भरी चुनरी ओढ़े भरी रात मे जो हम निकले..चाँद के दीदार के लिए बहुत तड़पे...ज़ालिम इक
तो यह बादलों का शोर और ऊपर से गरजती बिजली,तौबा..मेरे भगवान्...अरसे बाद निकले थे आज इस
रात की तन्हाई मे,चाँद को उलझाए गे अपनी शरारती बातों मे..जी भर के सताए गे अपने दीदार के लिए..
कमबख़्त,यह सितारें किस काम के है..हज़ारों की तादाद मे है मगर चाँद को इन बादलों से ना निकाल
पाए है..उतार दी हम ने चुनरी सितारों वाली..पर यह क्या,चाँद निकल आया बादलों को चीर के...मिलने
हम से...