Sunday 14 February 2021

 '' कभी बेबाक हू मैं..कभी बिंदास हू मैं..कभी खुद पे ही हर्षित हू मैं..कभी शब्द मेरे ख़ुशी से खिल उठे..कभी यह शब्द दुःखो के सागर मे डूब गए...कभी-कभी सिंगार से बेहद सज़ गए तो फिर कभी सादगी के रूप पे निखर गए...लिख दी कभी परिभाषा काजल की धार पे तो कभी अश्रु ने बहा दिए काजल के शब्द अपने ही सैलाब से...घुल गई कभी पिया के रंग मे तो कभी उदास हो गई विरह के रंग मे..नख से शिख तक कभी श्रृंगार-विहीन हो गई तो कभी सुहाग के रंगो से सज गई..किसी को कभी जीना सिखा दिया तो कभी कोई इन शब्दों की वफ़ा से ज़ार-ज़ार रो दिया...अलगाव भी है,प्यार भी है..मगर ''सरगोशियां'' तो वफ़ा के सब से ऊँचे पायदान पे है...नज़रे कभी चुराती नहीं..प्यार को डरना सिखाती नहीं...कभी कोठे के दर्द पे लिख देती है तो कभी उस को उसी के संसार से अलग भी कर देती है...तवायफ भी इक औरत है..बलात्कार के दर्द से बेहाल नारी भी,प्यार को पाने की अधिकारी है...समाज को पाक-प्रेम का पथ और पाठ पढ़ाती इक मार्गदर्शिता भी है..मर्द को औरत की इज़्ज़त करने का गहरा सन्देश देती है और औरत को उस का दायरा भी सिखाती है...बहुत बहुत कुछ है प्रेम पे लिखने के लिए''...मेरी ''सरगोशियां'' से जुड़ने के लिए शुक्रिया दोस्तों... आप की अपनी सी शायरा...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...