Sunday 14 February 2021

 श्रृंगार के नाम पे उस के पास सिर्फ सूरत ही उस का गहना  था...दौलत की बात करे तो पास उस के 


 चंद लकीरों का छोटा सा मेला था...वो बोली उस से '' इतने भर से क्या मेरे बन पाओ गे ? बिन शृंगार 


 की मेरी यह सूरत क्या क़बूल कर पाओ गे ? इतनी ग़ुरबत है पास मेरे,क्या रिश्ता यह ताउम्र निभा 


 पाओ गे''? ख़ामोशी छा गई इतनी कि पत्तों की सरसराहट भी सुनाई देने लगी...नम आँखों से वो सब 


समझ गई..उठ के चल दी कि तभी एक आवाज़ सुनाई दी...''क्या साथ मेरे चल पाओ गी ? जीवन बहुत 


कठिन है मेरा,क्या राह के कांटे निकाल पाओ गी''...अब बारी थी आसमां के झुक जाने की और बरखा 


के खुल के बरस जाने की...





दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...