क्या जीना इसी का नाम है ? कुछ हुआ तो रो दिए.कुछ ना मिला तो घबरा गए..चुनौतियां देख सामने इस
ज़िंदगी की,हौसले ही पस्त हो गए...कभी डर गए किसी के विचारों से तो गुस्से से कांप-कांप गए...कभी
यू ही इस ज़िंदगी से बेज़ार हो गए,यह सोच कर कि कितनी लम्बी है अभी और यह ज़िंदगी...अरे पगले,
यू उदास पस्त और गुस्से से जिए गा तो यक़ीनन इस ज़िंदगी के दुखों से कभी मुक्त ना हो पाए गा..देख
और सोच,कोई तो होगा जो तेरे लिए फिक्रमंद होगा..कोई तो होगा जो तेरे लिए कही दुआ मांग रहा
होगा..तुझे तो शायद खबर भी न होगी,कोई दूर तुझे तेरे दुखों से निकल जाने की सच्ची इबादत मे
लीन भी होगा...