क्या कमी थी उस के प्यार मे,जो उसी के प्यार ने उस को तवायफ़ बना दिया...बेहद प्यार से जिस को
अपनाया, उसी ने उस के प्यार का मज़ाक बना दिया...छोड़ी सारी दुनियां जिस के लिए,उसी के बेहद
अपने ने उस को बाज़ार मे बिठा दिया..किस पे यक़ीन करती,यक़ीन वाले ने ही उस की अस्मत को दांव
पे लगा दिया..आंखे झर-झर बहते बहते सूख गई..''हां..मैं इक तवायफ़ हूँ..खुद को कचरे का सामान
मान,वो इन घटिया मर्दो को खुद को परोसती रही ''...यह सफ़ेदपोश अंदर से कितने काले है..वो सब
जान गई..अब किस का करे इंतेज़ार,जब उसी के अपने प्यार ने उस को कौड़ी के दाम बेच दिया...