Sunday 7 February 2021

 यह कैसी सी मुहब्बत है...कही घुल रहे है सिर्फ जिस्म तो कही एक रूह से दूजी रूह जुड़ गई...कही 


वादे हुए झूठे तो कही मुहब्बत इसी मुहब्बत की अगली सीढ़ी पे बढ़ गई...कही तोहफे और दौलत से 


मुहब्बत बिक गई तो कही दौलत तोहफों से परे,मुहब्बत इबादत मे ढल गई...किसी ने इसी प्यार के 


मौसम को ही प्यार माना तो कही इक मुहब्बत,पाक पवित्र बंधन की तरह बेहद पाक हो गई...एक 


जगह था जिस्म का झूठा खेल तो दूजी तरफ यह मुहब्बत..पिया मान उस को पूर्ण समर्पित हो गई...


मुहब्बत जिस्मों का मेल नहीं,मुहब्बत दौलत का खेल भी तो नहीं...जो अलौकिक  हो गया इस 


मुहब्बत मे,बस वही मुहब्बत का शहंशाह बन गया...

दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का.... .....

 दे कर रंग इन लबो को तेरे प्यार का,हम ने अपने लबो को सिल लिया...कुछ कहते नहीं अब इस ज़माने  से कि इन से कहने को अब बाकी रह क्या गया...नज़रे चु...