दिल जो धड़का तो ऐसा धड़का कि शहनाई की गूंज तक जा पंहुचा...मिलन अधूरा ना रहे..समर्पण
की बेला मे दिल पूरे जोरों से धड़का...पिया की संगनी,प्रेम की मनमोहिनी..जो अब उस की प्रिया भी
है और है सहधर्मणी...आँखों के कोर लाज से घिर गए...जब पिया ने छू लिया उसे अपनेपन के भाव से...
प्रेम की उम्र थोड़ी ना हो,यह सोच कर वो संगनी से जयदा उस की प्रेमिका बन गई...शर्म-लाज की परतों
से दूर,उस ने पिया को रिझाने की ठान ली... समर्पण-प्रेम ऐसा रहा कि वो तो उसी का प्रेमी बन कर रह
गया...सादिया दोहराए गी तेरी-मेरी यह प्रेम-गाथा कि समर्पण की अब कोई सीमा नहीं.....