परछाई तेरी बन के रहू..तेरी हमसफ़र बेशक रहू या न रहू..साँसों का मोल तो सिर्फ इतना है,जिऊ तो
तेरी सलामती के लिए ही जिऊ...बेशक बहुत क़द्र ना कर मेरे मासूम जज्बातों की...बस मेरा कहना
सिर्फ इतना ही मान,मेरे सिखाए नक़्शे-कदम पे चल...तेरी बेहतरी मुझ से जयदा और कौन जाने-समझे
गा...तुझे दर्द कही पे हो उस से पहले दर्द मेरी रूह पे होता है...कोई एहसान नहीं किया मैंने,तेरी ही
सलामती चाह कर...जो तेरा है वो ही तो मेरा है..और मेरा हर पल तेरे लिए हाज़िर है...